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शिक्षा माफिया पर नकेल कसने की कवायद

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कनक
सिटी पोस्ट लाइव : अगर एनसीईआरटी सभी कक्षाओं के लिए कुल किताबें छापे तो ज्यादा से ज्यादा 650 करोड़ रुपये में काम हो जाएगा. लेकिन समय से एनसीईआरटी की किताबों के उपलब्ध नहीं होने के कारण छात्रों को निजी प्रकाशकों की किताबों पर निर्भर रहना पड़ता है .निजी प्रकाशकों की किताबें छात्र खरीदने में करीब 4000 खर्च करते हैं. यानी छात्रों को सीधे सवा तीन करोड़ का नुकशान एनसीईआरटी की किताब उपलब्ध नहीं होने के कारण होता है. केंद्र सरकार अब शिक्षा माफिया के ऊपर लगाम कसने की तैयारी कर रही है.सरकार अब फर्जी डिग्री देनेवाले,, नक़ल कराकर ,महँगी पुस्तकें और स्कूल यूनिफार्म बेंचकर हजारों करोड़ हर साल कमाने वाले तमाम शिक्षा माफियाओं की लगाम कसने जा रही है. सरकार की योजना अगले तीन-चार महीनों में शिक्षा माफिया के ईन तमाम कारोबार पर रोक लगाकर जनता के हर साल लगभग दस हजार करोड़ रुपये बचाने की है.

पहलीबार इस साल सीबीएसई की अध्यक्ष अनीता करवाल एनसीईआरटी पर दबाव डालकर सभी किताब फरवरी में ही छपवाने में कामयाब रहीं. उन्होंने ये किताबें ऑनलाइन खरीदने के लिए एक पोर्टल भी बनवाया जिससे लोगों को स्टेशनरी की दुकान पर लाइन लगाने की जरूरत नहीं होगी.इस कारवाई से परेशान शिक्षा माफियाओं ने सत्ता के गलियारे में खूब जोर लगाया लेकिन वो कामयाब नहीं हो पाए. सरकार अगला कदम फर्जी बीएड कॉलेजों के खिलाफ उठाने जा रही है.ये फर्जी बीएड कॉलेज वाले बिना पढ़ाई कराए और बिना परीक्षा लिए डिग्री बांट रहे हैं और सरकारी नौकरी दिलाने के नाम पर एक एक व्यक्ति से दस दस लाख वसूल रहे हैं. सरकार ने जब देश के 16000 बीएड कॉलेजों से जानकारी मांगी तो सैकड़ों ने इनकार कर दिया .

उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्य में नकल कराना एक उद्योग बन गया है.बिहार और उत्तर प्रदेश में नक़ल माफिया हर साल 500 करोड़ का धंधा कर रहा है. सीसीटीवी कैमरे जैसी तकनीक के इस्तेमाल से उत्तर प्रदेश सरकार ने नकल पर किसी हद तक रोक लगा देने की व्यवस्था की तो इस साल लगभग 20 फीसदी छात्र परीक्षा देने से ही भाग गए.
पेपर लीक से बचने के लिए सरकार ने सैटेलाइट के जरिए देश के 4000 परीक्षा केंद्रों पर परीक्षा पत्र अंतिम समय पर भेजने के विकल्प पर विचार किया था लेकिन हर सेंटर पर इंटरनेट उपलब्ध नहीं होने के कारण सीडी भेजने का विकल्प चुना गया.

फीस बढ़ाने पर रोक लगाने के लिए राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और उत्तर प्रदेश ने अलग-अलग कानून बनाए हैं. गुजरात के कानून पर तो वहां के हाईकोर्ट ने भी मुहर लगा दी है. इसके अनुसार प्राइमरी और सेकेंडरी के लिए 15000 और 25000 रुपये साल की फीस निर्धारित कर दी गई है. वहीं, राजस्थान में फीस बढ़ाने के लिए बनाई समिति में अभिभावकों की मंजूरी जरूरी की गई है. जबकि मध्य प्रदेश में 10 फीसदी की सीमा तय की गई है.बिहार में अभीतक इस दिशा में कुछ ख़ास नहीं हुआ है.

योगी आदित्यनाथ की सरकार एक अध्यादेश के जरिए पांच साल से पहले यूनिफॉर्म बदलने पर भी रोक लगा चुकी है.नए नियम के अनुसार किसी दुकान विशेष से किताब और यूनिफार्म खरीदने के निर्देश देनेवाले स्कूलों के खिलाफ सख्त कारवाई का प्रावधान है . एक साल में पांच फीसदी से ज्यादा फीस नहीं बढ़ाई जा सकती . इससे अभिभावकों को दो हजार करोड़ रुपये साल की बचत होने का अनुमान है.

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