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धर्म के इस बड़े बाजार में कहां है ब्रह्म विद्या और आत्म-ज्ञान ?

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(गुप्तेश्वर पाण्डेय) हिमालय में एक साधु मिले थे. उनका कहना था की साधु को किसी से ना सम्बंध बनाना चाहिए ना किसी सम्बंध के निर्वाह की परवाह करनी चाहिए. इसका मतलब कठोर या निष्ठुर होना नहीं. भीतर हृदय करुणा से लबालब भरा होना चाहिए. यदि करुणा किसी व्यक्ति विशेष मात्र के लिए हुयी तो यह बाँधने वाली होगी यानी माया होगी किंतु यदि इसका विस्तार ऋष्टि के सभी जीवों के लिए समान रूप से होगा तो ये मुक्त करने वाली होगी. किसी व्यक्ति विशेष या  वस्तु विशेष में मन का आकर्षण या लगाव तो बंधनकारी ही है क्योंकि ये सब जड़ हैं. केवल चेतन के प्रति आकर्षण या अटैचमेंट ही कल्याण कारी है. चेतन सिर्फ़ आत्मा है और परमात्मा है. प्रकृति जड़ है और उस से उत्पन्न सब कुछ जड़ ही है. जीवों के शरीर भी प्रकृति के पंचभूतों से निर्मित होने के कारण जड़ है. जो व्यक्ति या वस्तु इन पाँच भौतिक इंद्रियों से दिखती या महसूस होती है,सब जड़ हैं और जो जड़ है वह नश्वर है. जो चेतन है ,वही शाश्वत है. शरीर से शरीर का सम्बंध,मन से मन का सम्बंध सब अस्थायी हैं,बंधनकारी हैं और बेमतलब हैं.

आत्मा से आत्मा का,आत्मा से परमात्मा का सम्बंध ही सच  है,शाश्वत है.हमें परमात्मा को जानना है तो पहले अपने स्वरूप को जानना होगा. यानि आत्मदर्शन के बिना परमात्मा-दर्शन असम्भव है.आत्म दर्शन और परमात्मा-दर्शन की प्यास सबको है.इसीलिए आत्म ज्ञान देनेवाले बाबाओं की हज़ारों लाखों दुकाने खुली हैं.कलियुग में तो ऐसी दुकानों की बाढ़ आ गयी है. हर शहर, हर गली, हर एक चौक चौराहे पर कोई ना कोई बाबा लोगों को ब्रह्म विद्या सिखाने और आत्म-दर्शन कराने की दुकान खोलकर कर बैठा है.भक्तों की भीड़ लगी है. जितना ज्यादा बाबा का ऐश्वर्य दीखता है,उतने  बड़े सिद्ध बाबा माने जाते हैं. बड़े बड़े नौकरशाह,राजनेता,बड़े बड़े व्यवसायी लाईन लगाकर ऐसे बाबा के दर्शन को बेचैन लाईन में खड़े दीखते हैं. जिस बाबा के दर्शन के लिए जितने बड़े लोग आयेगें ,बाबा का क़द उतना ही बड़ा होता जाएगा.धीरे धीरे ईन बाबाओं के आस पास एक अपना अर्थ तंत्र भी विकसित होते जाएगा. लाखों-करोड़ का धंधा पानी शुरू हो जाएगा .फिर जाल जाल ! माल माल !! बाबा को ही भगवान या भगवान का अवतार घोषित कर दिया जाएगा. फिर उसी बाबा लोग में से कोई आशा राम निकलेगा ,कोई राम रहीम  तो कोई नित्यानंद निकलेगा. कोई पायल छनकाती , नृत्य करती भक्तों की गोद में बैठकर राधा कहलायेगी. खूब थू-थू होगी लेकिन ब्रम्ह विद्या का और आत्मज्ञान का ये बाज़ार चलता रहेगा.उसकी चमक कम नहीं होगी. फिर नए बाबा ,नये भक्त,नए ग्राहक नयी व्यवस्था और नया बाज़ार ! फिर चकाचक!

लेकिन इस बाज़ार में ब्रम्ह विद्या कहाँ है ? आत्म ज्ञान कहाँ है ? इन बाज़ारू बाबाओं ने अपने अपने दर्शन,अपने अपने सिद्धांत बना लिए और दुस्साहस ये की उसी को वेद सम्मत बता देते हैं.शास्त्रों और सनातन ग्रंथों  की या तो अपरोक्ष रूप से निंदा करते हैं या उसकी मनोमुखी रजोगुणी अनर्थकारी व्याख्या कर  मंद बुद्धि तथा अज्ञानी लोगों को अपने मोह जाल में फांस लेते हैं. इन्हें शिष्य और शिष्या बना कर ख़ुद नर्क मे और शिष्य को भी नर्क ले जाने का पूरा इंतज़ाम कर देते हैं. ज़रा कोई पूछे इन बाबा लोगों से कि क्या कभी समाधि लगी आपकी ? क्या संप्र्ग्यात असंप्र्ग्यात समाधि के अनुभव हुए आपको? क्या उस ब्रह्मानन्द की अनुभूति हुई कभी ? क्या वो ईश्वरीय आनंद का रस छलका आपके ह्रदय में? अगर नहीं तो फिर क्या बाँट रहे हैं ये बाबा अपने भक्तों को ?

गुप्तेश्वरपाण्डेय

 

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