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सबसे बड़ी चोटी सरुअत पहाड़ पर बसा सरुअत गांव

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सबसे बड़ी चोटी सरुअत पहाड़ पर बसा सरुअत गांव

सिटी पोस्ट लाइव, पलामू: पलामू प्रमंडल अंतर्गत भंडरिया प्रखंड का एक गांव सरुअत है । सरुअत गांव भंडरिया प्रखंड मुख्यालय से करीब 40 कि.मी दूर पर स्थित है । यह गांव भंडरिया प्रखंड के टेहरी पंचायत में स्थित है। झारखंड की दूसरी सबसे बड़ी चोटी के रूप में मशहूर सरुअत पहाड़ है। इस गांव के लोग सरुअत पहाड़ी की करीब 46 सौ फुट उंची पहाड़ी को घुमावदार पांच कि.मी की चढ़ाई चढ़कर आवागमन करते हैं। गांव में जाने के लिए एक मात्र रास्ता हेसातू है। सरुअत पहाड़ी की चढ़ाई गांव के लोग करीब एक घंटे में पूरा करते हैं। जबकि सामान्य लोगों के लिए यह चढ़ाई करीब तीन घंटे की होती है। घने जंगलों व पहाड़ों के इस दुर्गम रास्ते को तय करने के बाद पहाड़ की चोटी पर छह टोला का एक गांव सरुअत दिखाई देता है। वैसे गांव के लोग अब सामान्य रुप से आम लोगों से जुड़ गए हैं बावजूद इसके अभी भी किसी नए आदमी को देखकर लोग आश्चर्य चकित हो जाते हैं। सरुअत गांव के एक भी व्यक्ति को इस बात की जानकारी नहीं हैं कि उनका विधायक कौन है व उनके सांसद का क्या नाम है। डीसी कौन हैं, एसपी कौन हैं। लोग कभी कभी पहाड़ी से उतर कर अपनी जरुरत की सामानों की खरीदारी के लिए बडगड़ गांव या फिर भंडरिया प्रखंड मुख्यालय तक जाते हैं। गांव के लोग किसी भी बाहरी व्यक्ति को देखकर अचंभित हो जाते हैं। 46 सौ फुट उंची पहाड़ी की घुमावदार पांच किमी की चढ़ाई चढकर इस गांव में पहुंचना भी कठिन होता है। यह इलाका अति नक्सल प्रभावित क्षेत्र होने के कारण उनके गांव या आसपास के किसी भी गांव में मतदान केंद्र नहीं बनाया जाता है। जो मतदान केंद्र बनाए जाते हैं वह गांव से काफी दूर होते हैं। वहां तक पहुंचकर मतदान कर पाना उनके लिए संभव नहीं हो पता है। यहां के ग्रामीणों का कहना है कि यदि वे मतदान के लिए जाएंगे तो उनका पूरा दिन खराब हो जाएगा। वापस घर लौटने में रात हो जाएगी। बताते चलें की गांव की खासियत है की पहाड़ी की चढ़ाई पूरा करने में कपड़े तरबतर हो जाते हैं। लेकिन इसके बाद जब सरुअत की पहाड़ी चोटी पर पहुंचते हैं तो वहां ठंड़ी हवाओं के झोके आपकी पूरी थकाना मिटा देते हैं। जेठ-असाढ़ के महीने में भी सरुअत गांव में कम से कम एक चादर ओढने की आवश्यकता पड़ती है। पहाड़ी पर बने कुएं का पानी सामान्य रुप से फ्रिज के पानी जैसा होता है। पहाड़ी पर कलकल करती नदी लोगों के सिंचाई व आम जिंदगी में जरुरत के काम करने में सहायक होती है। सरुअत गांव सभी तरफ से बिहड़ो से घिरा हुआ है। झारखंड राज्य के भंडरिया प्रखंड की ओर से जाएं तब भी या छतीसगढ़ के बलरामपुर जिला की ओर से होकर जाएं तब भी करीब दस कि.मी का सफर आपको पैदल तय करना होगा। इतना ही नहीं यह क्षेत्र झारखंड का अति नक्सल प्रभावित क्षेत्र है। यह इस क्षेत्र के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। पहाड़ी की चढ़ाई चढ़ जाने के बाद ऊपर में आपको किसी तरह का कोई दुकान नहीं मिलेगा। यदि आपको खाने पीने की जरुरत पड़ी तो गांव के ग्रामीणों के भरोसे ही रहना पड़ेगा। अन्यथा किसी तरह के खाने की जरुरत के लिए आपकों पुनः करीब 17 किमी का सफर पैदल तय करना होगा। गांव के लोगों को जंगली जानवर बंदर, भालू व कभी कभी हाथी के आतंक का भी सामना करना पड़ता है। सरुअत गांव के बारे में कहा जाता है कि करीब दो सौ साल से भी अधिक पुराना है यह गांव। पहले यहां अधिकांश आदिवासी रहते थे। लेकिन बाद में कुछ अन्य जाति के लोग भी रहने लगे। यहां के लोगों के जीविकोपार्जन का साधन खेती व पशुपालन है। इसी के सहारे वे लोग अपना जीवन बसर करते हैं।

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