सिटी पोस्ट लाइव, रांची: आजसू पार्टी के केंद्रीय महासचिव और विधायक लंबोदर महतो ने कहा है कि झारखंड में लाल खून का काला धंधा चल रहा है। राज्य के सबसे बड़े अस्पताल राजेंद्र आयुर्विज्ञान संस्थान( रिम्स) से खून नि:शुल्क बाहर निजी अस्पतालों में जा रहा है और गैर सरकारी ब्लड बैंक का खून रिम्स में भी आ रहा है। यह सब दलालों के माध्यम से आश्चर्यजनक तरीके से चल रहा है। लंबोदर महतो ने इस विषय पर राज्य के स्वास्थ्य, चिकित्सा शिक्षा एवं परिवार कल्याण मंत्री बन्ना गुप्ता को रविवार को पत्र लिखा है। उन्होंने स्वास्थ्य मंत्री को सुझाव दिया है कि रिम्स, पीएमसीएच, एमजीएम एवं अन्य सरकारी अस्पतालों में दिल्ली एम्स ब्लड बैंक की तर्ज पर काम करने की आवश्यकता आ पड़ी है।
उन्होंने कहा कि दिल्ली एम्स के ब्लड बैंक से किसी भी परिस्थिति में ब्लड बाहर नहीं जाता है और बाहर का ब्लड भी एम्स में नहीं आता है। मरीज के परिजन एम्स के ब्लड बैंक में रिप्लेसमेंट के आधार पर नि:शुल्क ब्लड प्राप्त करते हैं। जबकि रिम्स एवं अन्य सरकारी ब्लड बैंकों से ब्लड निजी अस्पतालों में भर्ती आर्थिक दृष्टिकोण से संपन्न मरीजों को नि:शुल्क रूप से उपलब्ध कराया जाता है। जबकि भारत सरकार के स्वास्थ्य परिवार कल्याण मंत्रालय एवं नेशनल एड्स कंट्रोल सोसाईटी के गाइडलाइन के अनुसार सरकारी ब्लड बैंक को भी प्रोसेसिंग चार्ज के रूप में ₹1050 रुपये प्रति यूनिट की दर से राशि की वसूली करना है।
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लेकिन रिम्स एवं अन्य सरकारी ब्लड बैंक ऐसा नहीं कर रहे हैं। फलस्वरुप सरकार को प्रतिवर्ष लाखों करोड़ों रुपए के राजस्व की क्षति भी हो रही है। दूसरी ओर निजी अस्पतालों में खून भेजे जाने के कारण सरकारी ब्लड बैंकों में हमेशा खून की कमी रहती है और हाल ही में खून नहीं मिलने की वजह से सिमडेगा के कोलेबिरा गांव निवासी 15 वर्षीय दीपू सिंह गुमला के सदर अस्पताल में अपनी मां की गोद में दम तोड़ दिया, जो अत्यंत ही दुखद एवं चिंतनीय है। इस संदर्भ में झारखंड एड्स कंट्रोल सोसाईटी जिसका काम ब्लड बैंक का नियंत्रण एवं पर्यवेक्षण करना है वह भी मूकदर्शक बना हुआ है। राज्य के गरीब मरीज खून के अभाव में दम तोड़ रहे हैं।
उन्होंने स्वास्थ्य मंत्री से इस विषय पर एम्स की तर्ज पर सरकार ब्लड बैंकों का संचालन नियंत्रण एवं पर्यवेक्षण करने का भी आग्रह किया है ताकि अस्पतालों में खून की उपलब्धता जहां बनी रहेगी और सरकारी ब्लड बैंक दलालों के चंगुल से मुक्त हो सकेगा। उन्होंने इस दिशा में तत्काल सख्त कदम उठाने की अपेक्षा भी जताई है। उन्होंने अतारांकित प्रश्न के माध्यम से सरकार से पूछा है कि एक जनवरी 2019 से 31 दिसंबर 2019 तक रिम्स में कितने यूनिट ब्लड निजी अस्पतालों को आपूर्ति की गई है तथा कितने यूनिट ब्लड गैर सरकारी ब्लड बैंक से प्राप्त किया गया है। यह भी पूछा है कि भारत सरकार के गाइडलाइन का उल्लंघन करके प्रोसेसिंग शुल्क वसूल नहीं किए जाने के कारण कितने रुपए की राजस्व की क्षति हुई है।
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