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आर्यभट – 3 : दे दान तो छूटे गिरान! 

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आर्यभट – 3
दे दान तो छूटे गिरान! 
सूर्य ग्रहण के दिन सुबह से ही पाटलिपुत्र में हंगामा शुरू हो गया! नदी किनारे ब्राह्मण-पुरोहित लोग-बाग को यह समझाने में आकाश-पाताल एक कर रहे थे कि राहु पुनः सूर्य को निगलने जा रहा है। यह तो हमारे धर्म-ग्रंथों में साफ लिखा है कि उसने समुद्र-मंथन से निकले अमृत को चोरी से चख लिया था। राहु राक्षस था, लेकिन अमृत ग्रहण करने के लिए चुपके से देवताओं के पंगत में बैठ गया था। उसने जैसे ही अमृत के प्याले को मुंह से लगाया, वैसे ही सूर्य और चंद्र ने उसे पहचान लिया। उन्होंने तुरंत विष्णु को बताया। विष्णु ने तत्काल अपने चक्र से राहु का सिर काट दिया। लेकिन उसने थोड़ा-सा अमृत चख लिया था, इसलिए उसका सिर अमर हो गया। उसे सूर्य और चंद्रमा पर बड़ा क्रोध आया। तब से वह जब मौका मिलता है चंद्र और सूरज को निगलता रहता है। सो आज भी ऐसा ही होनेवाला है!
उनकी बातों से तट पर उपस्थित जन समुदाय में डर की लहर दौड़ने लगी। पंडे-पुरोहित डर की लहरों पर सवार होकर खुद को रक्षक के रूप में पेश करने लगे – “हां, हमारे धर्मशास्त्रों के अनुसार भरी दोपहरी में धरती पर अंधेरा छा जायेगा। ऐसा अवश्य होगा क्योंकि हमारे धर्मग्रंथों में यह लिखा हुआ है। हमारे पुरखों ने इसका अनुभव किया है कि हमारे धर्म-ग्रंथों में जो लिखा गया, वह अक्षरशः घटित हुआ है!”
बेचारी जनता के बीच से आवाज उठी – “महाराज, आपलोग तो त्रिाकालदर्शी हैं, धर्म और धर्मशास्त्र के ज्ञाता हैं। आप ही बतायें, इस अनिष्ट से बचने का क्या उपाय है? आप लोगों के कहे अनुसार तो हम यहां आये हैं। हमने उपवास रखा है। अपनी शक्ति भर दान-पुन्न कर रहे हैं। और क्या करें?”
ब्राह्मण-पुरोहित चिल्लाने लगे – “दान-पुन्न में कोई कंजूसी न करे। ब्राह्मणों को दिल खोलकर दान-दक्षिणा दो। खूब दान-पुन्न कर दिखा दो कि अपने धर्मग्रंथों और शास्त्रों पर तुम्हारा विश्वास कितना अडिग है। तभी राहु के चंगुल से सूर्य देवता को जल्द से जल्द मुक्ति मिलेगी। तभी मानव समाज पर छाया अनिष्ट कटेगा।”
फिर क्या था! नदी के किनारे नारा गूंज उठा – ‘दे दान तो छूटे गिरान!’
दूसरी ओर आश्रम की वेधशाला में हंगामा मचा हुआ था आर्यभट नये वक्तव्य पर। वह तो कई दिनों से यह खुलेआम कहता आ रहा था कि वह यह मानने के लिए तैयार नहीं कि किसी राहु के कारण ग्रहण लगता है। और आज! आज वह अपने गणित-ज्ञान के बल पर यह बता रहा है कि ग्रहण क्यों और कैसे लगता है। ऊपर से वह यह दावा कर रहा है कि उसका गणित-ज्ञान जो कुछ कह रहा है, उसे आज आकाश में घटित रूप में देखा जा सकता है! इसमें कुछ भी डरने जैसी बात नहीं है। पूरी घटना को वेधशाला में मौजूद यंत्र से देखा जा सकता है। अनिष्ट की आशंका से ग्रस्त होकर मंत्र-जाप करने की बजाय आज की घटना को सृष्टि के रहस्य को समझने के सुअवसर के रूप में ग्रहण करना चाहिए। यह अवसर है ग्रहों और तारों के बारे में सही-सही जानकारी हासिल कर आकाश में निरंतर हो रही घटनाओं को समझने का और परंपरागत ज्ञान को प्रयोगों के माध्यम से नया विस्तार देने का। जनकल्याण के लिए यह जरूरी है!
लेकिन आर्यभट के सहपाठी और गुरु कई गुटों में बंट गये थे। उनमें से वह गुट आज वेधशाला की बजाय राजदरबार में था, जो आर्यभट को ‘धर्मेविरोधी’ साबित करने के लिए कमर कसे हुए था। हालांकि वह गुट इतना अवश्य समझ रहा था कि धर्मशास्त्रों में जिस राहु की चर्चा की गयी है, उसका आज के सूर्य-ग्रहण से कोई लेना-देना नहीं है। लेकिन आर्यभट जो कुछ समझा जा रहा है, उससे तो देव-दानव की उस मूल अवधारणा पर सवालिया निशान लग जायेगा, जिसके आधार पर राजनीति और धर्म की सत्ता चल रही है! पिछले कुछ दिनों से तो आर्यभट ने अपने गणित-ज्ञान के बल पर जन्म-कुंडली देखकर भविष्य बतानेवाले ज्योतिषियों को चुनौती दे रखी है। वह पाटलिपुत्र आया ज्योतिष और गणित का अध्ययन करने, लेकिन आते ही यहां के ज्योतिष-विद्या के गुरुओं के नाक में दम कर दिया है। वह कहता है कि सच्चा और सही ज्योतिष होने के लिए किसी भी विद्यार्थी को कुशल गणितज्ञ होना जरूरी है। गणित का पंडित होकर ही आकाश के ग्रहों और नक्षत्रों की गतियों का ठीक-ठीक हिसाब लगाया जा सकता है।
आर्यभट के गणित-ज्ञान से आश्रम के विद्यार्थी और गुरुओं के कुछ गुट चमत्कृत थे। लेकिन उनमें से भी कुछ लोग आज वेधशाला में नहीं थे। दरअसल, जब से आर्यभट ने खुलकर कहा कि वह आंख मूंदकर शास्त्रों की पुरानी बातें मानने को तैयार नहीं है, तब से उन गुटों के कुछ पुराणपंथी लोग तिलमिला उठे थे, क्योंकि पाटलिपुत्र के आम निरक्षर लेकिन समझदार नागरिकों पर तरुण पंडित के प्रति आकर्षण बढ़ता जा रहा है। (अगला पाठ – आर्यभट – 4 : पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है)

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