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सरकारी फरमान पर भारी पड़ रही है मां गंगा के भक्तों की आस्था और उमंग

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सिटी पोस्ट लाइव, बेगूसराय: कोरोना संक्रमण के मद्देनजर सरकार और प्रशासन ने सभी सार्वजनिक पूजा पर रोक लगा दी है।बेगूसराय के सिमरिया में गंगा तट पर लगने वाले एशिया प्रसिद्ध कल्पवास मेला भी नहीं लगने दिया गया, लेकिन सरकार और प्रशासन अपनी ही कमियों के कारण श्रद्धालुओं के भक्ति और आस्था पर रोक लगाने में पूरी तरह से विफल रही। गंगा स्नान एवं पूजन के लिए सबसे पवित्र माने जाने वाले कार्तिक माह में यहां रोज हजारों-हजार श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है। सोमवार को भी बिहार के विभिन्न हिस्से से 50 हजार से अधिक श्रद्धालु सिमरिया में जुटे और गंगा स्नान एवं गंगा पूजन के बाद लक्ष्मी-गणेश पूजन पर्व दीपावली और सूर्य उपासना के महापर्व छठ के लिए जल लेकर अपने-अपने घर गए।
मधुबनी से आए देवकांत झा, राधा कांत झा, सोहन झा एवं लीला देवी, जयनगर से आए रामप्रताप चौधरी, विनोद चौधरी, गोविंद झा, सीता देवी, सुलेखा देवी आदि ने बताया कि हम लोग दस वर्षों से अधिक समय से कार्तिक में सिमरिया में रहकर एक माह तक कल्पवास करते थे।इस बार सरकार और प्रशासन ने कोरोना वायरस का डर दिखाकर मेला नहीं लगने दिया, हम लोगों को कल्पवास करने नहीं दिया। यहां कुटिया बनाने पर केस करने की बातें कही गई। चुनाव में नेताओं के सभा में हजारों हजार की भीड़ जुटी तो उसमें कोरोना वायरस नहीं फैला। लेकिन हम लोग एक महीने तक यहां रहकर गंगा, धर्म एवं अध्यात्म की त्रिवेणी में डुबकी लगाते तो उससे कोरोना फैल जाता। यह हिटलर शाही व्यवस्था सत्य सनातन धर्म पर प्रहार किया जा रहा है, जिसका फल सबको भोगना ही होगा।
नेपाल से आए जनक एवं फुलटुन आदि ने कहा कि हम सब मिथिला के पड़ोसी हैं। हमारे यहां गंगाजल से ही छठ पूजा होती है। कार्तिक में नेपाल से बड़ी संख्या में लोग सिमरिया आकर त्रिपिंडी श्राद्ध करते थे,लेकिन सरकार और प्रशासन की मनमानी से जलालत झेलनी पड़ रही है। हम लोग आएंगे, गंगा स्नान करेंगे, गंगा पूजन और पिंडदान करेंगे, कुछ नहीं होगा। इधर, श्रद्धालुओं की उमड़ रही भीड़ के कारण तैनात किए गए स्थानीय गोताखोरों को 24 घंटे ड्यूटी देनी पड़ रही है। रात दो बजे से ही श्रद्धालुओं का गंगा स्नान शुरू हो जाता है तथा यह सिलसिला देर शाम तक चलते रहता है। जिसके कारण हमेशा मोटर और नाव के साथ रहकर श्रद्धालुओं को गहरे पानी में जाने से रोकते रहते हैं। लेकिन कई पर्व बीत जाने के बाद भी बगैर मजदूरी के काम कर रहे हैं, भूखे पेट रहकर काम कर रहे हैं।

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