न भवन, न फैकल्टी, फिर भी देवघर एम्स में शुरू हो गयी मेडिकल की पढ़ाई
सिटी पोस्ट लाइव, देवघर: वर्षों से स्थान चयन के विवाद में लटका बहुप्रतीक्षित मेडिकल संस्थान- एम्स झारखंड के देवघर में खुल तो गया, लेकिन एम्स के नाम पर लोगों को निराशा ही हाथ लगी है। चुनाव को ध्यान में रख कर एम्स की शुरुआत इतनी हड़बड़ी में हुई कि इसका न अपना भवन है और न यहां पढ़ने वाले छात्रों को सुविधाएं ही मिल पाई हैं। एम्स के नाम पर यहां एडमिशन लेने वाले छात्र खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं। नामांकन कराने वाले छात्रों में कोई उत्तर प्रदेश से आया है तो कोई राजस्थान से। उनके मन में खुशी थी कि वे देवघर में बन रहे एम्स में पढ़ाई कर डॉक्टर बनेंगे। एम्स का नाम ही उनके आकर्षण का बड़ा कारण था। विद्यार्थियों ने सोचा था कि सब कुछ दिल्ली जैसे एम्स की तरह ही बेहतरीन संस्थान होगा। मगर यहां पहुंच कर लगा जैसे ख्वाब टूट गया। किसी भी संस्थान के लिए पहला बैच यादगार होता है। ना सिर्फ संस्थान के लिए, बल्कि छात्रों के जीवन के लिए कभी न भूलने वाला। पहला बैच, पहली क्लास और झारखंड का पहला एम्स। सबकुछ पहला है, लेकिन चुनावी साल में शुरू हुए देवघर एम्स का पहला बैच ही किराए के मकान या कहें पंचायत प्रशिक्षण संस्थान में चल रहा है। जैसे तैसे क्लास शुरू हो गई है। जहां एसी होना चाहिए था, वहां पंखे से काम चल रहा है। 50 छात्रों के बैठने के लिए प्राथमिक विद्यालय टाइप डेस्क-बेंच है। सामने ब्लैक बोर्ड का रंग ग्रीन भले ही हो गया हो, लेकिन स्मार्ट क्लास के जमाने में इस तरह के बोर्ड भी संसाधनों का मजाक ही माना जाता है। एम्स शब्द ही देश की स्वास्थ्य व्यवस्था की शान है। लेकिन जिस संस्थान में मेडिकल के छात्रों का पहला बैच इस तरीके से डॉक्टर बनेगा तो मरीज का इलाज कैसे होगा, ये बताने की जरूरत नहीं। संस्थान की ऐसी व्यवस्था के बारे में पूछने पर शिक्षक भी हिचकते हुए बताते हैं कि अभी न तो फैकल्टी ही है और न ही प्रैक्टिल रुम। किराए के मकान में चल रहे एम्स के छात्रों के हॉस्टल में एक-एक कमरे में तीन-तीन चौकियां लगी हैं। सोचिए देश में मेडिकल के छात्र इन हालात में डॉक्टर कैसे बनेंगे। ना अपना कमरा, ना कमरे में एसी। ऊपर से पानी की भी सुविधा नहीं। देवघर में एम्स खोलने की वाहवाही प्रधानमंत्री से लेकर गृहमंत्री तक लूट रहे हैं। मुख्यमंत्री रघुवर दास तो अपने हर भाषण में इसका श्रेय लेते हैं। 1103 करोड़ की लागत से बन रहे एम्स की चहारदीवारी ही अभी तैयार हो पाई है। हड़बड़ी में शैक्षणिक सत्र भी शुरू कर दिया गया है। परमानेंट फैकल्टी का अभी तक अता-पता नहीं है। जिस इमारत में अभी क्लासेस चल रही हैं, उसका इस्तेमाल चुनाव के दौरान वज्रगृह के तौर पर होता था। यहां तक कि लाइब्रेरी भी प्रेस कॉन्फ्रेंस के कमरे में है। सवाल यह कि क्या मेडिकल की पढ़ाई इन हालात में कराना उचित है। वह भी तब, जब झारखंड के मेडिकल कालेजों- रिस्म और एमजीएम में इससे बेहतर सुविधाओं के बावजूद एमसीआई सीटें बढ़ाने में आनाकानी करता रहा है । सवाल तो यह भी उठता है कि एमसीआई ने पढ़ाई की इजाजत कैसे दे दी।
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