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झारखंड विधानसभा में भी पारा शिक्षकों की सेवा स्थायी करने का मामला उठा

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झारखंड विधानसभा में भी पारा शिक्षकों की सेवा स्थायी करने का मामला उठा

सिटी पोस्ट लाइव, रांची: `शोक जताने तो बहुत लोग आ रहे हैं… झारखंड विधानसभा में भी पारा शिक्षकों की सेवा स्थायी करने का मामला उठा। सरकार पारा शिक्षकों से बातचीत भी कर रही है… लेकिन बहुत देर हो गई। पारा शिक्षकों के आंदोलन में अब तक दस की जान जा चुकी … दुमका में मंत्री आवास पर धरना- प्रदर्शन में मेरा छोटा भाई भी चल बसा। आज (27 दिसम्बर ) को उसका श्राद्धकर्म भी हो गया।’ यह कहना है धरने के दौरान मृत पारा शिक्षक कंचन दा़े भाई रंजन कुमार दास का। रंजन पारा शिक्षक कंचन दास (35) के बड़े भाई हैं। वे दुमका के नोनीहाट स्थित भदवारी गांव के रहने वाले हैं। कोलकाता के इंडियन बैंक में कार्यरत हैं। बातचीत में वे भावुक हो जाते हैं। भारी मन से वे कहते हैं कि छोटे भाई के निधन के बाद बुजुर्ग पिता की हालत बेहद ख़राब है। वे खुद नौकरी पर कोलकाता लौट जाएंगे तो उन्हें पिता की देखभाल की चिंता सता रही है। उनकी मां का 2004 में ही निधन हो चुका है। हालांकि उसके बाद पिता ने दूसरी शादी कर ली थी और सौतेली मां ही पिता का ध्यान रखती हैं। उनकी शिकायत है कि उनका भाई तो चला गया लेकिन सरकार ने ध्यान नहीं दिया। कोई अधिकारी उनके परिवार का हाल जानने नहीं आया। झारखंड मुक्ति मोर्चा के विधायक विजय हंसदा और झारखंड विकास मोर्चा के विधायक प्रदीप यादव आए थे जिन्होंने मामले को विधानसभा में उठाने का भरोसा दिया।
`नौकरी परमानेंट होने पर शादी करने को कहता था’ रंजन बताते हैं कि छोटे भाई कंचन की शादी की बात चल रही थी। उसके लिए लड़की भी देख रहे थे लेकिन वह अक्सर कहता था कि नौकरी परमानेंट होने पर शादी करेंगे। नौकरी स्थायी तो नहीं हुई, वहीं सदा के लिए चला गया। कहते-कहते रंजन की आवाज भर्रा जाती है।
अब दस हजार रुपये लेकर क्या करेंगे?
पिता अखिलेश दास कहते हैं कि 15 दिसम्बर की रात दस बजे कंचन से अंतिम बार बातचीत हुई थी। मैंने ही उसे दुमका में रोक दिया था। कहा था, बहुत रात हो गई है इसलिए वहीं रुक जाओ। बहुत ठंड है और रास्ता भी ठीक नहीं है। रात में 28 किमी मोटरसाइकिल चला कर आना ठीक नहीं रहेगा। 16 दिसम्बर की दोपहर तक कंचन नहीं आया। फोन करने पर किसी दूसरे की आवाज आई जिसने उन्हें जल्दी दुमका आने के लिए कहा। उसने कंचन के सदर अस्पताल में भर्ती होने की बात कहते हुए कहा कि उसकी हालत बहुत ख़राब है।आनन-फानन में दुमका सदर अस्पताल पहुंचने तक बहुत देर हो चुकी थी। उनके बेटे की मौत हो चुकी थी। इस दौरान वहां कई अधिकारी भी पहुंचे थे। उन्होंने दस हजार रुपये आर्थिक सहायता देने की पेशकश की जिसे उन्होंने यह कहते हुए ठुकरा दिया कि -बेटा तो चला गया अब ये रुपये लेकर वे क्या करेंगे?
गढ़वा : बच्चे-पत्नी को स्कूल छोड़कर आए और सीने में दर्द हुआ, फिर मौत
गढ़वा जिला के रंका अनुमंडल अंतर्गत उत्क्रमित प्राथमिक विद्यालय तेनुडीह रंका के सहयोगी शिक्षक उदय शंकर पांडेय (40) का निधन हार्ट अटैक से हो गया। उनके भाई व विद्यालय के प्रधानाध्यापक बिंदु पांडे कहते हैं कि पारा शिक्षकों की हड़ताल की वजह से उदय डिप्रेशन में थे। सुबह में अपने बच्चे को स्कूल छोड़ने के बाद पत्नी को कस्तूरबा गांधी आवासीय विद्यालय पहुंचाया। उसके बाद उसके सीने में दर्द शुरू हुआ। गढ़वा ले जाने के दौरान रास्ते में मृत्यु हो गई। परिजन वहीं से लौट गये और शव को रंका ले आये। उदय शंकर पांडेय वर्ष 2007 में प्राथमिक विद्यालय तेनुडीह में पारा शिक्षक के रूप में बहाल हुए थे, तब से वे निरंतर विद्यालय में सेवा दे रहे थे।
राज्य के 67 हजार पारा शिक्षक सेवा स्थायी करने को आंदोलन कर रहे हैं 
राज्य में 67 हजार पारा शिक्षक सेवा स्थायी करने समेत अन्य मांगों को लेकर आंदोलन कर रहे हैं। इसी दौरान अलग-अलग जगहों पर सरकार के मंत्रियों के आवास के सामने धरना देने का कार्यक्रम चलाया गया। पारा शिक्षकों की हड़ताल की वजह से राज्य के अधिकतर स्कूलों में पढ़ाई ठप है। इसी सिलसिले में राज्य की आदिवासी कल्याण मंत्री डॉ. लुईस मरांडी के दुमका स्थित आवास के सामने पारा शिक्षक धरने पर बैठे थे। इनमें कंचन दास भी शामिल थे। 16 दिसम्बर की सुबह उनकी मौत हो गई। वे नोनीहाट के पास चिना डंगाल गांव के स्कूल में कार्यरत थे। कंचन की मौत के बाद हड़ताली पारा शिक्षकों का गुस्सा उबाल पर है।
दरअसल, एक महीने में इस आंदोलन के दौरान अलग-अलग जगहों पर गढ़वा जिला के रंका के उदय शंकर पांडेय, देवघर जिला के सारठ थाना क्षेत्र के पारबाद गांव निवासी उज्जवल कुमार राय सहित 10 शिक्षकों की मौत हो चुकी है तथा एक लापता है। एकीकृत पारा शिक्षक संघर्ष मोर्चा के संजय दूबे बताते हैं कि सरकार की हठधर्मिता से राज्य के 67 हजार पारा शिक्षक बेहद कठिन दौर से गुजर रहे हैं।

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