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जयंती विशेष : भगवान परशुराम ने सहस्त्रबाहु की हजारों भुजाएं और धड़ काटकर किया था वध

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सिटी पोस्ट लाइव : भगवान परशुराम जी और हनुमान जी अभी भी अन्य छ: चिरंजीवियों के साथ पृथ्वी पर विराजमान हैं। कल अक्षय तृतीया है भगवान परशुराम जी एवं भगवान हयग्रीव का प्राकट्य दिवस है। भगवान दत्तात्रेय का उपासक सहत्रबाहु अजेय था।उसने रावण तक को बन्दी बना लिया था। पुलस्त्य ऋषि के आने पर छोड़ा। आप उसकी ताकत का अनुमान लगा सकते हैं। उसने इतना शक्तिशाली होने पर भी ब्राह्मण और धर्म का संरक्षण की जगह दोहन किया। उसे इस ब्रह्म द्रोह का दण्ड मिलना ही था। ब्राह्मण ईश्वर को अत्यंत प्रिय है कारण वे धर्म के लिए जीते हैं । इसलिए ब्राह्मण पर आक्रमण सीधे सनातन धर्म पर आक्रमण माना जाता है।जिससे श्री विष्णु कुपित हो जाते हैं।

भगवान श्री परशुराम जी ने भगवान शिव की तपस्या की एवं विभिन्न शस्त्रास्त्रो के साथ दिव्य परशु प्राप्त की। उन्होंने ब्राह्मणों की एक गुरिल्ला युद्ध प्रवीण सेना तैयार की और सहस्त्रबाहु को ललकारा। कभी जमीन मे चले जाते थे तो कभी भूमि आसमान से प्रहार करते थे। साक्षात कालमूर्ति बन चुके। स्वभावतः अहिंसक और भक्त जगतहितकारी ब्राह्मण ऋषि जमदग्नि पर हुए अत्याचार से भगवान अत्यन्त कुपित थे। उन्होंने सहस्त्ररबाहु की भुजाएं काट डाली और उसे मार डाला। वे अवतारी थे। ब्राह्मण ऋषि अपने धर्म पर थे इसलिए धर्म चक्र के प्रभाव से भगवान परशुराम का अवतरण हुआ और सहस्त्रबाहु मारा गया। आज ब्राह्मण भ्रमित होकर खुद को उनके नक्शे कदम पर चलना चाह रहे हैं। श्री परशुराम और श्रीकृष्ण भजनीय हैं किन्तु मर्यादा पुरुषोत्तम राम अनुकरणीय हैं।

ब्राह्मण धर्म हथियार उठाना नहीं जगत कल्याण हेतु तप, त्याग, यज्ञ और धर्म प्रचार होता है। अगर जमदग्नि ऋषि के अन्य पुत्र हथियार लेकर ब्राह्मण सेना तैयार करते तो सबके सब मारे जाते। अपनी बुद्धि और स्वभावज चेष्टाओं के विपरीत आचरण दुखद होता है। उसमे जीतने की जगह हारने की संभावना अधिक होती है। ऋषि अगस्त्य क्या कम शक्तिशाली थे। रावण से भीड़ नहीं सकते थे।जिन्होंने भगवान श्री राम को शस्त्रास्त्र दिये। सभी वर्णों को वर्णानुकूल धर्म का आचरण करना चाहिए। धर्मारूढ व्यक्ति का धर्म चक्र जागृत हो जाता है। उसके कुपित होते ही सृष्टि हील जाती है। उसके संकल्पो से सृष्टि की आयु बढ़ जाती है। अत: धर्मारूढ होकर धर्म चक्र को जागृत करें। ब्राह्मणो के लिए इस अवसर पर यही मेरा संदेश है।

ऊँ जामदग्याय विद्महे महावीराय धीमहि तन्नो परशुराम: प्रचोदयात्।

आलेखक : प्रभाकर चौबे

अखिल भारतीय बहुभाषीय ब्राह्मण महासंघ

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