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जीडीपी 40 साल में पहली बार निगेटिव ग्रोथ की ओर अग्रसर: सूर्यकांत शुक्ला

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सिटी पोस्ट लाइव, रांची: आर्थिक मामलों के जानकार सूर्यकांत शुक्ला ने कहा है कि लेखा महानियंत्रक के ताजा आंकड़ों से केंद्र सरकार के राजस्व आय में आयी भारी गिरावट से पता चलता है कि चालू वित्त वर्ष की शुरुआती दो महीनों अप्रैल-मई में ही फिस्कल घाटा 4.7 ट्रिलियन रुपये पहुंच गया है,जबकि पूरे साल के लिए यह 7.96 ट्रिलियन रुपये निर्धारित है। यह टैक्स , गैर और पूंजी प्राप्तियों में आयी कमी के कारण हुआ है। सूर्यकांत शुक्ला ने कहा कि कोरोना महामारी से निपटने के लिए स्वास्थ्य और कल्याण जनित खर्चां की बढ़ोत्तरी को देखते हुए केंद्र सरकार ने अपनी उधारी की सीमा 7.8 ट्रिलियन रुपये को बढ़कर 12 ट्रिलियन रुपये करने की घोषणा 8 मई को ही कर दी है, हालांकि इस कर्ज प्रबंधन के संबंध में कोई स्वरूप अभी तक सामने नहीं आया है। ब्लूम्बवर्ग सर्वे, नोमुरा होल्डिंग्स के अनुमान में भारत के फिस्कल घाटा को डीजीपी की तुलना में 7 प्रतिशत बताया गया है, जबकि केयर रेटिंग्य ने 8 प्रतिशत का अनुमान लगाया है। सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार के. सुब्रमनियन कहते हैं कि बजट में तय घाटे 3.5 प्रतिशत से 1.8प्रतिशत तक ज्यादा हो सकता है। नीति आयोग के वाईस चेयरमैन राजीव कुमार का कहना है कि इस साल के लिए फिस्कल घाटा की कोई सीमा तय नहीं की जा सकती,क्योंकि महामारी को लेकर अभी तक कुछ निश्चित नहीं है।

सूर्यकांत शुक्ला ने बताया कि कोरोना महामारी के नियंत्रण के लिए लगाये गये लॉकडाउन और अनलॉक के दौर में अर्थव्यवस्था को कड़े प्रतिबंधों से गुजरना पड़ रहा है, जिसके कारण जीडीपी 40 साल में पहली बार निगेटिव ग्रोथ की ओर से बढ़ रही है, जिससे निपटने के लिए सरकार को ज्यादा खर्च करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि सरकार के सामने आज सबसे बड़ी समस्या अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना और इसके लिए जरुरी पैसे की व्यवस्था करना है। आर्थिक जानकार बताते है कि घाटे के मौद्रीकरण का रास्ता अपनाया जा सकता है, जिसमें आरबीआई रुपया छापकर सरकार की जरूरतों को पूरा करती है। दुनिया के कई देशों के सेंट्रल बैंक अपनी सरकारों को आर्थिक प्रोत्साहनों की जरूरत के लिए मनी प्रिंटिंग कर रहे है। अमेरिका, जापान जैसे विकसित देश और इंडोनेशिया जो उभरती अर्थव्यवस्था हैं, में सेंट्रल बैंक ऐसा करने के लिए कर रहे है।

आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कहा है कि सार्वजनिक खर्च की राह में मौद्रीकरण कोई अड़चन नहीं होना चाहिए। इस तरह मनी प्रिटिंग का एक सीमा में समर्थन किया है। 1997 तक आरबीआई घाटे की भरपाई मनी प्रिटिंग करके, सरकार के बांड खरीद कर करती रही है, परंतु अभी एफआरबीएम कानून सरकार से सीधे सावरेन बांड खरीदी की इजाजत आरबीआई को नहीं देती है। परंतु इसके एस्केप क्लॉज में विषम संकट के लिए छूट का प्रावधान है। हालांकि मनी प्रिंटिंग के कई जोखिम है, जैसे मुद्रास्फीति का बढ़ना, रुपये में गिरावट, निवेशकों का भागना और इससे भी बढ़कर क्रेडिट रेटिंग का गिरना। भारत का क्रेडिट रेटिंग स्कोर पहले से निवेश के न्यूनतम ग्रेड पर है और इससे नीचे गिरने का खतरा केंद्र सरकार लेना नहीं चाहेगी। अर्थव्यवस्था को सपोर्ट करने के लिए सरकार को हर हालत में खर्च तो बढ़ाना ही होगा, साथ ही कर्ज का वित्त पोषण कैसे होगा, यह सरकार को तय करना है कि बाजार से कर्ज लेगी या आरबीआई से लाभांश लेगी या मौद्रीकरण में जाएगी।

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