स्वतंत्रता आन्दोलन की लड़ाई में बिरसा मुण्डा का अविस्मरणीय योगदान : राज्यपाल
सिटी पोस्ट लाइव : झारखंड की राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि स्वतंत्रता आन्दोलन की लम्बी लड़ाई में राज्य के महान देशभक्तों का अविस्मरणीय योगदान रहा है| इसमें अमर शहीद बिरसा मुण्डा, वीर बुधु भगत, सिदो-कान्हू, चाँद-भैरव, ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव, शेख भिखारी जैसे कई वीर सपूतों ने अपनी देशभक्ति की भावना से इस राष्ट्र के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। राज्यपाल ने आज यहां बिरसा मुण्डा कारागार के जीर्णोद्धार, संरक्षण एवं संग्रहालय के शिलान्यास के अवसर पर कहा कि हमारा देश वीरों की भूमि है| उन्होंने राष्ट्र की संतान होने के दायित्वों का निःस्वार्थ भाव से निर्वहन किया और बाह्य ताकतों से इस देश को आजाद कराया। राष्ट्र के प्रति असीम त्याग करने वाले एवं बलिदानी देशभक्तों को हृदय की गहराई से नमन करती हूं। राज्यपाल ने कहा कि झारखण्ड राज्य में पुरानी जेल जिसका नाम बिरसा मुण्डा कारागार रखा गया है। इसका जीर्णोद्धार, संरक्षण एवं संग्रहालय की दिशा में नींव रखना अत्यन्त शुभ है। हिन्दुस्तान की धरती पर समय-समय पर महान और साहसी लोगों ने जन्म लिया है। भारतभूमि पर ऐसे कई क्रांतिकारियों ने जन्म लिया है, जिन्होंने अपने बल पर अंग्रेजी हुकूमत के दांत खट्टे कर दिए थे। ऐसे ही एक वीर थे बिरसा मुंडा। राज्यपाल ने कहा कि बिहार और झारखण्ड की धरती पर बिरसा मुंडा को भगवान का दर्जा अगर दिया जाता है तो उसके पीछे एक बहुत बड़ी वजह भी है। अल्प आयु में ही उन्होंने लोगों को एकत्रित कर एक ऐसे आंदोलन का संचालन किया जिसने देश की स्वतंत्रता में अहम योगदान दिया। जनजाति समाज में एकता लाकर दमन के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने लोगों को नई सोच दी, जिसका आधार सात्विकता, आध्यात्मिकता, परस्पर सहयोग, एकता व बंधुता था। बिरसा मुंडा ने न केवल राजनीतिक जागृति के बारे में संकल्प लिया बल्कि अपने लोगों में सामाजिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक जागृति पैदा करने का भी संकल्प लिया। राज्यपाल ने कहा कि बिरसा के इस प्रकार लोगों को संगठित करने, अंग्रेज हुकूमत के खिलाफ भड़काने के कारण बौखलाई अंग्रेजी हुकूमत ने कई प्रयत्नों के बाद 24 अगस्त 1895 को रात के अंधेरे में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उन पर ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ विद्रोह उकसाने का आरोप लगाया। मुंडा और कोल समाज ने बिरसाइतों के नेतृत्व में सरकार के साथ असहयोग करने का ऐलान कर दिया। विरोध के तेवर में फर्क नहीं पड़ने के कारण मुकदमे की कार्रवाई रोककर उन्हें तुरंत जेल भेज दिया गया तथा उन्हें दो साल सश्रम कारावास की सजा सुनाई गई। राज्यपाल ने कहा कि 1897 में झारखंड में भीषण अकाल पड़ा तथा चेचक की महामारी भी फैली। 30 नवम्बर 1897 को बिरसा जेल से छूटे और अकाल तथा महामारी से पीड़ित लोगों की सेवा में जुट गए। उनका यह कदम अपने अनुयायियों को संगठित करने का आधार बना। फरवरी 1898 में डोम्बारी पहाड़ी पर मुंडारी क्षेत्र से आये मुंडाओं की सभा में उन्होंने आंदोलन की नई नीति की घोषणा की। सन् 1898 के अंत में यह अभियान रंग लाया और अधिकार हासिल करने, खोए राज्य की प्राप्ति का लक्ष्य, जमीन को मालगुजारी से मुक्त करने तथा जंगल के अधिकार को वापस लेने के लिए व्यापक गोलबंदी शुरु हुई। डोमबाड़ी पहाड़ी पर ही मुंडाओं की बैठक में बिरसा के द्वारा ’उलगुलान’ का ऐलान किया गया।
राज्यपाल ने कहा कि बिरसा के इस आंदोलन की तुलना आजादी के आंदोलन के बहुत बाद सन् 1942 के अगस्त क्रांति के काल से की जा सकती है। तीन फरवरी 1900 को सेंतरा के पश्चिम जंगल में बने शिविर से बिरसा को गिरफ्तार कर उन्हें तत्काल रांची कारागार में बंद कर दिया गया। एक जून को जेल अस्पताल के चिकित्सक ने सूचना दी कि बिरसा को हैजा हो गया है और उनके जीवित रहने की संभावना नहीं है। 9 जून 1900 की सुबह सूचना दी गई कि बिरसा अब इस दुनिया में नहीं रहे। इस तरह एक क्रांतिकारी जीवन का अंत हो गया। उन्होंने जनजातियों को एकजुट कर उन्हें अंग्रेजी शासन के खिलाफ संघर्ष करने के लिए तैयार किया। अपने 25 साल के छोटे जीवन काल में ही उन्होंने जो क्रांति पैदा की वह अतुलनीय है। राज्यपाल ने कहा कि उनके लिए यह सौभाग्य का विषय रहा है कि उन्हें धरती आबा बिरसा मुण्डा के पैतृक ग्राम जाने का सुअवसर प्राप्त हुआ है। मैंने खूँटी जिला अन्तर्गत उलिहातू जाकर उनके परिजनों और ग्रामीणों से मुलाकात की। वहां की विकास योजनाओं की भी जानकारी प्राप्त की। सुखद है कि धरती आबा बिरसा मुण्डा की मृत्यु जिस कारागार में हुई, सरकार उसके जीर्णोद्धार एवं संरक्षण की दिशा में व्यापक प्रयास करने जा रही है। इसे संग्रहालय के रूप में विकसित किया जा रहा है। राज्यपाल ने कहा कि इसके अन्तर्गत पुराने कारागार भवन तथा उसके चहारदीवारी का जीर्णोद्धार किया जा रहा है। बिरसा मुण्डा समेत झारखण्ड के अन्य स्वतंत्रता सेनानियों की जीवनी एवं संस्कृति का प्रदर्शन एक सराहनीय पहल है। इस पहल से हमारे युवा एवं भावी पीढ़ी इन महान स्वतंत्रता सेनानियों से प्रेरित होंगे। उनमें देशभक्ति की भावना और प्रबल होगी।
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