सिटी पोस्ट लाइव : 13 अप्रैल से चैत नवरात्र की शुरुवात हो रही है.मां भगवती दुर्गा जगत-जननी हैं, अपरा हैं, प्रकृति हैं, मूल रूप से सबकी चेतना में उनकी ऊर्जा ही संचरित होती है. वे ममत्व की पराकाष्ठा हैं. 9 देवियों की संयुक्त शक्तियां नवरात्र के रूप में पूजित होती हैं. साल में 4 नवरात्र होते हैं. बसंत नवरात्र, शारदीय नवरात्र एवं आषाढ़ व माघ के गुप्त नवरात्र. बसंत नवरात्र चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक, बसंत नवरात्र आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक, आषाढ़ गुप्त नवरात्र आषाढ़ शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक एवं माघ गुप्त नवरात्र माघ शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक माने गए हैं.
साधना का अर्थ अपने को सीधा करना है अर्थात अपने मनोगत विचारों एवं अंतरात्मा की भाव संवेदनाओं के स्तर को ऊंचा उठाना है. नवरात्रि साधना का मुख्य उद्देश्य हमारे अंदर की पशुता को बिंदुरूप कर विराट देवत्व की प्रतिस्थापना है.भारतीय गृहस्थ जीवन शक्तिपूजन, व्यक्तित्व संवर्धन एवं आध्यात्मिक चेतना जाग्रत करने का एक विराट संकल्प है. मां दुर्गा की पूजन से हमारे समाज में स्त्रियों को माता, देवी एवं पूज्य का स्थान प्राप्त होता है. नवरात्रों में देवी की पूजन से काम, क्रोध, मोह एवं लोभ पर नियंत्रण संभव है. मन अंत:करण, चित्त बुद्धि, अहंकार आदि का शोधन होकर बुरे संस्कारों का शमन होता है. हमारे तन और मन में रहने वाले राक्षसों, जो कि रोग, अहंकार, भय, बंधन, पाप, शोक, दु:ख एवं महामारी के स्वरूप में हमें प्रताड़ित करते हैं, इन सभी का दमन और शमन का उपाय नवरात्रि साधना है.
नवरात्रि साधना आध्यात्मिकता की ओर ले जाने वाली वह प्रक्रिया है जिससे हमारी चेतना पर छाई धुंध छंट जाती है एवं आंतरिक अवसाद नष्ट हो जाते हैं. नवरात्र साधना व्यक्तित्व का परिशोधन है. इससे चेतना की प्रखरता प्रगाढ़ होती है. पशु संस्कार देवत्व में बदलने लगते हैं। यह साधना मनुष्य को सामान्य से दैवीय स्तर प्रदान करती है.
वस्तुत: नवदुर्गा साधना आत्मचेतन की गहरी परतों को खोलकर प्रसुप्त शक्तियों को ऊर्जावान एवं जाग्रत बनाने की प्रक्रिया है. साधना का उद्देश्य कामनापूर्ति न होकर अंत:करण की निर्मलता की प्राप्ति है. श्रेष्ठ साधक सदा ही लोकहित में अपनी साधना का समर्पण करते हैं. हमारी 9 इन्द्रियों में निवास करने वाली साक्षात पराम्बा मां दुर्गा ही हैं. इन्हीं की साधना से ये 9 इन्द्रियां संयमित होती हैं एवं अंत में मन, शरीर और आत्मा को गति प्राप्त होती है.
कूर्म पुराण के अनुसार धरती पर स्त्री का जीवन नवदुर्गा के स्वरूपों में प्रतिबिम्बित है. जन्म ग्रहण करने वाली कन्या का रूप शैलपुत्री, कौमार्य तक ब्रह्मचारिणी, विवाह के पूर्व तक षोडशी चन्द्रघंटा, नए जीवन को धारण करने वाली कूष्माण्डा, संतान को जन्म देने वाली स्कंदमाता, संयम और साधनारत कात्यायनी, पति की अकारण मृत्यु को जीतने वाली कालरात्रि, संसार का उपकार करने वाली महागौरी एवं सर्वसिद्धि प्रदायिनी सिद्धिदात्री हैं.
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