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17 साल बाद अब बिहार में पूरा होने जा रहा है अटल बिहारी वाजपेयी का ड्रीम प्रोजेक्ट

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सिटी पोस्ट लाइव : कोसी नदी पर बनने वाले दो किमी लंबे जिस रेलवे मेगा ब्रिज (Railway Bridge over Kosi River) का शिलान्यास 17 साल पहले पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) ने किया था वह बनकर तैयार है.2003 से बन रहे इस पुल का उद्घाटन 16 अगस्त को उनकी दूसरी पुण्यतिथि पर करने की तैयारी चल रही है. यह महासेतु न सिर्फ बिहार के मिथिलांचल (Mithila) और कोसी क्षेत्र को जोड़ने का काम करेगा, बल्कि भारत के लिए बेहद रणनीतिक महत्व का है. क्योंकि ये उत्तर भारत को पूर्वोत्तर से जोड़ने का सबसे छोटा रास्ता होगा. रेलवे प्रशासन ने रेल ब्रिज के दोनों सिरों को जोड़ने के लिए मिट्टी भराव का काम तेज कर दिया है. केंद्र सरकार द्वारा अगस्त तक इसे चालू करने के लिए पुल के काम को समय पर पूरा करने की कोशिश की जा रही है.

गौरतलब है कि पुल का शिलान्यास वाजपेयी ने 2003 में पूर्वोत्तर सीमा रेलवे को रणनीतिक संपर्क प्रदान करने के सरकार के फैसले के तहत किया था. योजना के अनुसार, इस रूट में रेल परिचालन से पूर्वोत्तर तक पहुंचना बेहद आसान हो जाएगा और एक वैकल्पिक मार्ग के माध्यम से लोगों के आवागमन और माल ढुलाई का एक वैकल्पिक रास्ता भी होगा. कोसी पर बन रहा यह महासेतु भारत और नेपाल के बीच करीब 1700 किमी से अधिक की विस्तारित सीमा पर करीब-करीब चारों ओर एक वैकल्पिक मार्ग बनाता है. अभी पूर्वोत्तर, जिसके प्रवेश द्वार को हम ‘चिकन नेक’ के नाम से भी जानते हैं, से आने वाली ट्रेनों को कटिहार और मालदा होकर आना पड़ता है. लेकिन, इस रेल पूल से  ट्रेनों के परिचालन शुरू होने के साथ ही पूर्वोत्तर पहुंचना आसान हो जाएगा. इस रेल महासेतु के कारण दरभंगा, निर्मली और अंत में न्यू जलपाईगुड़ी के रास्ते असम का नया रास्ता खुल जाएगा और वहां आना-जाना सुगम हो जाएगा.

गौरतलब है कि यह रेल महासेतु 7 साल पहले ही बन गया था. लेकिन इस पर पटरी नहीं बिछाई गई थी. पूरे पुल को बनाने में करीब 17 साल लग गए. इस पुल की कुल लंबाई 1.88 किलोमीटर है. इसमें 45.7 मीटर लंबाई के ओपन वेब गार्डर वाले 39 स्पेन हैं. नए पुल का स्ट्रक्चर एमबीजी लोडिंग क्षमता के अनुरूप डिजाइन किया गया है.

गौरतलब है कि रणनीतिक दृष्टि से इस महत्वपूर्ण पुल को 2003 में 323.41 करोड़ रुपये की लागत से बनाने का प्रस्ताव स्वीकृत किया गया था. इसके बाद के 17 वर्षों में लागत में इजाफा हुआ है और यह लगभग 516.02 करोड़ रुपये में पूरा होने की उम्मीद है. यह पुल निर्मली-सरायगढ़ ब्रॉडगेज लाइन का हिस्सा है, जिसे मूल रूप से 1970 के दशक में 1887 में निर्मित एक पुरानी मीटर-गेज लाइन को बदलने के लिए स्वीकृत किया गया था. उस समय, कोसी नदी इन दो स्टेशनों के बीच नहीं बहती थी और एक छोटा पुल सुपौल जिले में निर्मली के पास सहायक नदी तिलजुगा के पार बनाया गया था.1934 में आए प्रलयंकारी भूकंप में कोसी पर बने पुल ध्वस्त हो जाने के कारण रेल मार्ग पूर्णतः बंद हो गया था.

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