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रघुवर सरकार के दिल में बसता है आदिवासी समाज : समीर उरांव

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रघुवर सरकार के दिल में बसता है आदिवासी समाज : समीर उरांव

सिटी पोस्ट लाइव, रांची: भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष और सांसद समीर उरांव ने कहा कि झारखंड में पहली बार आदिवासी नेतृत्व को सम्मान राशि देने की पहल रघुवर सरकार ने की है। रघुवर सरकार के दिल में आदिवासी समाज बसता है। उरांव ने गुरूवार को पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा कि इसके तहत मानकी को तीन हज़ार, मुंडा, ग्राम प्रधान को दो हज़ार और डाकुवा, परगनैत, जोगमांझी, कुड़ाम नाइकी, नाइकी, गोड़ेत, पड़हा राजा, ग्राम सभा के प्रधान, घटवाल एवं तावेदर को एक हज़ार रुपये प्रति माह दी जा रही है। उरांव ने कहा कि आदिवासी बहुल गांवों में आदिवासी ग्राम विकास समिति का गठन किया गया है। पांच लाख तक के विकास कार्य समिति ही कराती है। गैर आदिवासी गाँवों में ग्राम विकास समिति के जरिए पांच लाख रुपये तक के विकास कार्य कराए जाते हैं। झारखंड पुलिस में पहाड़िया आदिवासी समुदाय के लिए दो बटालियन का गठन किया गया है। उन्होंने कहा कि प्री मैट्रिक और पोस्ट मैट्रिक के तहत एसटी/एससी एवं अन्य पिछड़ा वर्ग के 30 लाख से ज्यादा बच्चों को 527 करोड़ रुपये की छात्रवृत्ति प्रदान की गई। उन्होंने कहा कि पहली बार रघुवर सरकार ने ही राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग का गठन करने का फैसला लिया। पहली बार शहीद ग्राम योजना के तहत शहीदों के सात जिलों के अंतर्गत 20 गांव में 1125 घर बन रहे है। जिसमें 490 घरों का निर्माण पूरा हो चुका है। शहीदों के गांवों को सभी सुविधा देकर आदर्श गांव बनाया जा रहा है। र बिरसा मुंडा जेल को संग्रहालय के रूप में विकसित किया जा रहा है। इसमें भगवान बिरसा मुंडा के साथ साथ सभी महापुरुषों की प्रतिमा लगाई जाएगी। आदिम जनजाति समाज को ग्राम डाकिया योजना के तहत प्रतिमा 35 किलो अनाज घर तक पहुचाए जाते है। यूपीएससी की प्रारंभिक परीक्षा पास करने वाले एसटी/एसी के विद्यार्थी को मुख्य परीक्षा के लिए एक लाख रुपये की सहायता दी जाती है। लुगुबुरु मेला को राजकीय मेला का दर्ज़ दिया गया। वृद्धा-विधवा पेंशन की राशि 600 से 1000 रूपये की गयी। उन्होंने कहा कि 2014 में जनजाति उपयोजना बजट 11,997 करोड़ रुपये था, जबकि 2019 में जनजाति उपयोजना बजट 20,764 करोड़ रुपये है। 2014 में  647 सरना मसना स्थलों की घेराबंदी की गई थी, जबकि पिछले पांच सालों में 1550 से ज्यादा योजनाओं की मंजूरी दी गई। 2014 में आदिवासियों के लिए सिर्फ 18,943 वनाधिकार पट्टो का वितरण हुआ था, जबकि पिछले पांच सालों में 61,970 लोगों को वनाधिकार पट्टे दिये गये।

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