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BJP और LALU YADAV दोनों के लिए है सबसे बड़ी चुनावी संजीवनी है राम मंदिर

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BJP और LALU YADAV दोनों के लिए है सबसे बड़ी चुनावी संजीवनी है राम मंदिर

सिटी पोस्ट लाइव : आज देश में दो ही विचारधारा के राजनीतिक दलों के गठबंधन के बीच राजनीतिक लड़ाई है. एक है यूपीए और दूसरा है एनडीए .तीसरा बाम दल है जिसका अलग से कोई ख़ास वजूद नहीं है. इसलिए उसे भी आज यूपीए के साथ आना पड़ा है. लेकिन सबसे बड़ा सवाल देश की राजनीति को दो धाराओं  में किसने बांटा. दरअसल, मुद्दा बना  अयोध्या के राम मंदिर का निर्माण और नायक बने लालू यादव और लालकृष्ण आडवाणी . राम मंदिर के मुद्दे की वजह से बीजेपी और लालू यादव का देश में एक मजबूत राजनीतिक ताकत के रूप में उभार हुआ. इस राम मंदिर की वजह से ही लालू यादव की देश की राजनीति में एक अलग पहचान बनी.वहीं बीजेपी मुख्यधारा की पार्टी बनी .एकबार  फिर से चुनाव के पहले राम मंदिर का मुद्दा गरमाया हुआ है.ऐसे में इसपर चर्चा बेहद लाजिमी है.

राम मंदिर को लेकर देश में जिस राजनीति की 28 वर्ष पहले शुरुवात हुई थी उसका  ताप बिहार तक भी पहुंचा था. इस ताप ने  न केवल बिहार की राजनीति को गहरे रूप से प्रभावित किया, बल्कि पूरे देश की राजनीति को भी दो धाराओं में विभाजित कर दिया.इसी मुद्दे ने भाजपा के उत्थान, कांग्रेस के पतन और लालू प्रसाद के राष्ट्रीय स्तर पर उभार का रास्ता साफ़ किया . राम मंदिर की राजनीति से देश आज भी बाहर नहीं निकल पाया है फिर बिहार कैसे बाहर निकल सकता है.इसी राम मंदिर के मुद्दे ने देशभर में जितना बीजेपी का कल्याण किया  उतना ही बिहार में लालू की सियासत को भी ऊंचाई दी. गुजरात के सोमनाथ मंदिर से अयोध्या के लिए निकले लालकृष्ण आडवाणी के रथ को 23 अक्टूबर 1990 को समस्तीपुर में रोककर लालू ने देश की राजनीति को दो धड़ों में बांट दिया.इसी के साथ कांग्रेस के पतन और लालू यादव और बीजेपी के उभार की शुरुवात हुई. बीजेपी और लालू यादव दोनों का उभार साथ साथ हुआ.  दोनों ने एक दुसरे के लिए संजीवनी का काम किया.

बीजेपी के समर्थन से पहली बार 10 मार्च 1990 में बिहार के मुख्यमंत्री बने लालू की राजनीति को राम मंदिर आंदोलन ने फ़ोकट में खाद पानी उपलब्ध करा दिया. संयोग से मुख्यमंत्री बने लालू यादव बिहार की ही नहीं बल्कि दूसरी धरा की राजनीति की सबसे बड़ी पहचान बन गए. 1989 में केंद्र में कांग्रेस सरकार के पतन के बाद 1990 में 324 सदस्यीय बिहार विधानसभा का चुनाव हुआ था, जिसमें लालू की पार्टी जनता दल के 122 विधायक जीत कर आए. कांग्रेस का ग्राफ तेजी से गिरा और 71 सीटों से ही संतोस करना पड़ा.

39 विधायकों वाली बीजेपी और दूसरे दलों के समर्थन से गैर-कांग्रेसी सरकार बनाने की  पहल शुरू हुई तो तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने अपने चहेते रामसुंदर दास का नाम  मुख्यमंत्री पद के लिए आगे कर दिया. लेकिन शरद यादव और देवीलाल की पसंद लालू थे. चंद्रशेखर के खासमखास रघुनाथ झा ने तीसरे प्रत्याशी के रूप में वोट काटकर लालू की जीत का मार्ग प्रशस्त कर दिया था. यानी बीजेपी के सहारे लालू सत्ता पर काबिज हुए लालू प्रसाद बीजेपी के ही अयोध्या राम मंदिर के मुद्दे की वजह से बिहार से लेकर देश की राजनीति में छ गए. केंद्र की तर्ज पर बिहार में भी गैर कांग्रेसी सरकार की नीव पड़ गई. किंतु आडवाणी की गिरफ्तारी के बाद बीजेपी  ने केंद्र के साथ बिहार की लालू सरकार से भी समर्थन वापस ले लिया.

बीजेपी के निशाने पर आने के बाद  लालू यादव कांग्रेस के सबसे बड़े चहेते बन गए. लालू ने भी कांग्रेस का हाथ लिया और अपनी सरकार को सुरक्षित कर लिया. फिर लालू यादव ने कांग्रेस की दुकान बंद करवा देने की पटकथा लिख दी. कांग्रेस के हिस्से का पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक वोटर लालू यादव के साथ खड़ा हो गया. कांग्रेस सरकार के दौरान 1989 में हुए भागलपुर दंगे से नाराज अल्पसंख्यकों को लालू यादव ने आडवाणी  के राम मंदिर रथ को बिहार में रोक कर अपने साथ कर लिया. आडवाणी के रथ का पहिया रोक कर  मुस्लिमों के सबसे बड़े चहेता लालू यादव बन गए. तबसे इसी मुस्लिम-यादव  समीकरण के बूते लालू ने बिहार में 15 साल राज किया और आज भी एक बड़ी राजनीतिक ताकत बिहार म बने हुए हैं.

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