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अपने को मिटा देने की शाजिष से सावधान नीतीश ,काट की खोज में जुटे हैं महीनों से

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सिटी पोस्ट लाईव: (आकाश प्रत्यूष ) “. ‘कुछ लोग हमें एलीमिनेट करना चाहते हैं, मगर मंसूबे में कामयाब नहीं होंगे , मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के इस बयान को लेकर बिहार की राजनीति गरमा गई है.कांग्रेस और आरजेडी के नेता मुख्यमंत्री से पूछ रहे हैं –भई ! हमें भी जरा खुलकर बता दीजिये आपको कौन एलिमिनेट करना चाहता है.? ऐसा नहीं है कि विपक्ष को नीटीश कुमार के इस बयान का मतलब नहीं पता है.विपक्ष को भी पता है कि विपक्ष से विरोधी से इस तरह की शिकवा शिकायत का कोई मतलब ही नहीं निकलता.ऐसी शिकायतें तो अपना बनकर दुश्मन जैसा काम करनेवाले से ही हो सकती है. जाहिर है मुख्यमंत्री का ईशारा किसी अपने सहयोगी की तरफ है ,जो उन्हें ख़त्म कर देने की शाजिष कर रहा है. वैसे नीतीश कुमार का रिकॉर्ड राजनीतिक दुर्ग में घिर जानेवाले नेता की नहीं बल्कि दुर्ग की घेराबंदी करनेवाले नेता की रही है.उन्हें पहलीबार ऐसा लग रहा है कि कोई अपना ही उन्हें इस राजनीतिक दुर्ग में फंसाना चाहता है .

नीतीश कुमार को राजनीति के दुर्ग में फंसाने की कोशिश तो साफ़ दिख रही है.फिर नीतीश कुमार  इतने अनाडी नेता थोड़े हे हैं,जो अपनी घेराबंदी की कोशिश का अंदाजा न लगा सकें.जब पहलीबार वो बीजेपी के साथ सत्ता में आये तो इस बात का पूरा ध्यान रखा कि बीजेपी के साथ सरकार चलाने भर से उनके सेक्यूलर क्रेडेंशियल को कोई नुकशान नहीं पहुंचे. वो इसमे पूरी तरफ सफल भी रहे.लेकिन दूसरी बार बीजेपी के साथ सरकार बनाने के साथ ही जिस तरह से बिहार में रामनवमी के दौरान भागलपुर में और फिर जो कुछ कई जिलों में हुआ ,नीतीश कुमार को अहसास हो गया कि उनके सेक्यूलर क्रेडेंशियल जो उनकी सबसे बड़ी पूंजी और बड़ी राजनीतिक ताकत भी है,उसे मिटाने की कोशिश की जा रही है.एडी चोटी का जोर लगाकर स्थिति को तो उन्होंने ज्यादा बिगड़ने से संभाल लिया लेकिन आगामी चुनाव से ठीक पहले आनेवाले रामनवमी में अपने सेक्यूलर क्रेडेंशियल को बर्बाद करा देने के संभावित खतरे से भी वो अनजान नहीं है.

एनडीए पार्ट वन में भी नीतीश कुमार मुख्यमंत्री हे और एनडीए पार्ट टू में भी उसी कुर्सी पर कायम हैं.लेकिन जो हैसियत उनकी एनडीए पार्ट वन में थी आज एनडीए पार्ट टू में नहीं है.अगर रहता तो पीएम नरेन्द्र मोदी पीयू को केंद्रीय विवि का दर्जा देने की उनकी छोटी मांग को नजर-अंदाज नहीं कर पाते.इसके पहले भी केन्द्रीय मंत्रिमंडल के गठन में  उनकी पार्टी को नजर-अंदाज कर मोदी उन्हें झटका दे चुके थे.

नीतीश कुमार को अपने सेक्यूलर क्रेडेंशियल के साथ साथ ईमानदार छवि से भी बेहद प्यार है.ऐसा नहीं होता तो वो लालू यादव का साथ छोड़ दुबारा बीजेपी के साथ नहीं गए होते.सोंचा था जिस तरह से अपने सेक्यूलर क्रेडेंशियल को बचाने के लिए उन्होंने बीजेपी का साथ छोड़ा था उसी तरह से अपने ईमानदार छवि को बनाए रखने के लिए लालू यादव का साथ बिहार को केंद्र सरकार के बूते बिहार को विकास की पटरी पर दौड़ाकर सारे गिलवे -शिकवे दूर कर देगें .  राज्य के विकास के लिए धन लेने के वास्ते नीतीश कुमार ने क्या-क्या जतन नहीं किये .उनके  सर्जिकल स्ट्राइक का समर्थन किया. राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष के बदले एनडीए के उम्मीदवार का समर्थन तक कर दिया.नोट्बंदी का समर्थन किया.साथ आ जाने के बाद भी केंद्र के मंत्रिमंडल में अपनी पार्टी की उपेक्षा पर उफ़ तक नहीं की .पटना से लेकर दिल्ली तक पीएम का चक्कर इस उम्मीद के साथ लगाते  रहे कि इसी बहाने राज्य को कुछ लाभ मिल जाएगा .लेकिन कुछ नहीं मिला .नीतीश को अब बुरी तरह फंस जाने का अहसास होने लगा .

नीतीश कुमार समझ गए यहाँ खतरा के सिवाय उनके लिए कुछ नहीं है.इसलिए हो गए सावधान ! फिर से अपने पुराने अंदाज में उस राजनीतिक दुर्ग की घेराबंदी में नीतीश कुमार जुट गए हैं जिसमे उन्हें घेरने की कोशिश चल रही है.उन्होंने “बिहार को विशेष दर्जा “देने की उस मांग को फिर से तेज कर दिया जिसको लेकर लोक सभा चुनाव से पहले उन्होंने मोदी की नींद उड़ा दी थी. फिर उन्होंने नोट्बंदी पर निशाना साधा .कहा कि आम जनता को इसका कोई फायदा नहीं मिला.फिर खुद को फिर से मजबूत करने के लिए ताबड़तोड़ दलितों ,पिछड़ों और अति-पिछड़ों से जुड़े कई महत्वपूर्ण फैसले लिए.पासवान जाति को महा-दलित वर्ग में शामिल कर अपने साथ पासवान को खड़ा करने की कोशिश की .इतना ही नहीं उन्होंने पीएम की फसल बिमा योजना को रद्द करते हुए किसानों के लिए अपना खुद का फसल बिमा योजना भी अब शुरू कर बीजेपी को यह संदेश दे दिया है वो अब ज्यादा बर्दाश्त करनेवाले नहीं .ये सच है कि नीतीश से थोड़ी देर हो गई वर्ना जोकीहाट में उनकी पार्टी को मुसलमानों ने इस तरह का झटका नहीं दिया होता .अब नीतीश कुमार एकबार फिर से मुकाबले के लिए तैयार दिख रहे हैं.इस मुकाबले का परिणाम कुछ भी हो सकता है .लेकिन मरता क्या न करता

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