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आलोक कुमार .

सिटीपोस्टलाईव :दिन के दो बजे हैं.हजारों लोग मैदान में जमा हैं. सबके हाथ में घातक हथियार हैं.किसी के हाथ में तीर धनुष तो किसी के हाथ में लाठी-डंडा और पत्थर .एक दूसरे  के खून के ऐसे प्यासे हैं ये लोग कि इन्हें देख रोंगटें खड़े हो जायेगें .ये लोग एक दूसरे  का  खून बहाने को बेताब  हैं. कोई गुलेल से निशाना साध रहा  है तो कोई तीर धनुष से .किसी के हाथ में पत्थर  है तो किसी के हाथ में लाठी डंडा .बिना किसी को छुए दूर से ही एक दूसरे  पर निशाना साधना इस खेल का नियम  है.इस दिन खूब खून बहता है .खून से लथपथ  लोग ऐसे नजर आते हैं मानों होली है.इस खेल में किसी की जान भी जा सकती है .लेकिन परंपरा यहीं है कि कोई किसी के खिलाफ कोई मुक़दमा दायर नहीं करेगा. सबको अपनी लड़ाई यहाँ खुद लड़नी होती है.

दरअसल ,यह इस  ईलाके का सबसे महत्वपूर्ण पर्व है.लोग इसे  बड़े हर्षौल्लास के साथ मनाते हैं.इस दिन का सबको साल भर बेसब्री से इंतज़ार रहता है. एक दूसरे  का खून बहाने का यह खेल दोपहर दो बजे शुरू होता है और शाम सात बजे तक चलता रहता है.इस खूनी  खेल में अबतक कई लोगों की जानें जा चुकी हैं लेकिन कोई मुक़दमा दर्ज नहीं हुआ है.पिछले पांच साल से प्रशासन का ध्यान इस खतरनाक परंपरा की तरफ गया है  लेकिन वह भी इसे रोक नहीं पाया है.प्रशानिक व्यवस्था होती है उस दिन. पुलिस के अधिकारी और जवान तैनात होते हैं और उनके सामने परंपरा की आड़ में यह खूनी  खेल चलता है.यह परंपरा  मधुबनी जिले में सौ साल से  चलती आ रही है.हर साल 15 अप्रैल को यहाँ के लोग  एक दूसरे  के खून के प्यासे बन जाते हैं.इस दिन लोग मिटटी में धुरखेल खेलते हैं यानी एक दुसरे के ऊपर धूल फेंकते हैं और उसके बाद खेतों में जाकर  एक दुसरे का  खून बहाते हैं.

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