श्रीकांत प्रत्यूष .
सिटीपोस्टलाईव : कांग्रेस विहीन संसद के और विपक्ष विहीन संसद बनाने की दिशा में काफी हदतक सफल हो चुके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब पुरे देश में विपक्ष विहीन राजनीति स्थापित करने की योजना पर काम कर रहे हैं.इस योजना के तहत मोदी पूरे देश में लोक सभा और विधान सभा के चुनाव एक साथ कराने की योजना पर काम कर रहे हैं.इसमे शक की कोई गुंजाइश नहीं कि लोकसभा और विधानसभा के चुनाव अलग-अलग कराने पर ज्यादा खर्च होने के अलावा विकास कार्य भी प्रभावित होते हैं.लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि यह किसके हक़ में होगा बीजेपी के हक़ में या फिर देश और्देश की जनता के हक़ में. देश की जनता का भला तो तभी होगा जबसत्ता पक्ष मजबूत हो और विपक्ष उससे और भी ज्यादा मजबूत.नीति और विधि आयोग मोदी सरकार की एक साथ चुनाव कराने की योजना से सहमत है लेकिन राजनीतिक पंडितों का कुछ और ही मानना है.उनके अनुसार इससे विपक्ष के अस्तित्व पर संकट उत्पन्न हो जायेगा .
आईडीएफसी इंस्टिट्यूट के अध्ययन की रिपोर्ट के अनुसार एकसाथ लोक सभा विधान सभा का चुनाव कराये जाने पर ज्यादा संभावना है कि मतदाता राज्यों में उसी पार्टी की सरकार चुनेगें ,जिसकी केंद्र में चुनेगें .ऐसे में अगर उन्होंने केंद्र में बीजेपी सरकार बनाने का फैसला किया तो राज्यों में तमाम क्षेत्रीय दलों की राजनीति ख़त्म हो जायेगी क्योंकि राज्यों में भी वो बीजेपी की सरकार ही चुनेगें.यानी पुरे देश में विपक्ष का खासतौर पर क्षेत्रीय दलों का वजूद ही ख़त्म हो जाएगा .एक बड़े थिंकटैंक माने जानेवाले सीएसडीएस के निदेशक संजय कुमार का मानना है कि इससे देश का संघीय ढांचा तबाह हो जाएगा .
विपक्ष के साथ साथ एनडीए के सहयोगी दलों को भी इस खतरे का आभास है .बिहार में एनडीए के सहयोगी दल जेडीयू के राष्ट्रिय अध्यक्ष ,बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक साथ चुनाव कराये जाने का समर्थन तो किया लेकिन साथ ही यह भी कह दिया कि अभी यह संभव नहीं है.विधि आयोग के साथ साथ साथ चुनाव आयोग भी एकसाथ चुनाव कराने की तैयारी में जूता है लेकिन पूर्व चुनाव आयुक्त एस.वाई कुरैशी लोक सभा और विधान सभा चुनाव एकसाथ कराये जाने को एक कठिन प्रोजेक्ट मान रहे हैं.उनका कहना है कि क्षेत्रीय पार्टियाँ जिस तरह से अपनी संघीय स्वायतत्ता और राजनीतिक स्वच्छंदता की बात उठा रहे हैं अगले साल एकसाथ चुनाव करा पाना आसान काम नहीं होगा.गौरतलब है कि अपने देश में बहुदलीय प्रणाली है और ऐसे में लोक सभा विधान सभा का चुनाव एकसाथ कराने के लिए संविधान में संशोधन की दरकार होगी.संसद के साथ साथ दो तिहाई राज्यों की विधान सभाओं का समर्थन भी अनिवार्य होगा .यह सबकुछ सरकार के लिए आसान नहीं होगा.
केवल राज्यों के चुनाव पर ९० अरब से ज्यादा का खर्च आता है.पिछले लोक सभा चनाव पर अकेले ३८.७ अरब रुपये का खर्च आया था . जबकि लोक सभा और विधान सभा का चुनाव एकसाथ कराये जाने पर केवल ४५ अरब रुपये का खर्च आएगा .जाहिर अबतक लोक सभा के चुनाव पर जो खर्च होता है उसमे केवल और ७ अरब जोड़ देने से विधान सभा का चुनाव भी संपन्न हो जाएगा.मोदी सरकार इसी आंकड़े को आधार बनाकर एक साथ चुनाव कराये जाने के लिए जोर लगा रही है.
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