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बढती महंगाई दर और अर्थ व्यवस्था की सुस्ती का रहेगा नया साल.

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बढती महंगाई दर और अर्थ व्यवस्था की सुस्ती का रहेगा नया साल.

सिटी पोस्ट लाइव :प्याज, टमाटर की बढ़ती कीमतों के कारण दिसंबर में रिटेल महंगाई दर 7.35 पर्सेंट तक पहुँच गई है.इस बढती महंगाई दर और अर्थ व्यवस्था में आ रही सुस्ती ने लोगों की चिंता बढ़ा दी है. सोमवार को सामने को महंगाई के आंकड़े आए हैं उसके अनुसार दिसंबर के महीने में महंगाई दर बढ़कर 7.35 पर्सेंट पर पहुंच गई. फूड इन्फ्लेशन नवंबर में जो 10.01 पर्सेंट था, वह दिसंबर में बढ़कर 14.12 पर्सेंट हो गया.  सब्जियों के दामों में 60.5% तक का इजाफा हुआ है. एक महीने पीछे जाएं तो नवंबर 2019 में खुदरा महंगाई दर 5.54% थी. हालांकि अक्टूबर के मुकाबले यह भी ऊंचे लेवल पर थी. अक्टूबर में इन्फ्लेशन 4.62% था. मार्च के महीने से फूड इन्फ्लेशन लगातार बढ़ रहा है, जिसका मुख्य कारण प्याज की बढ़ती कीमतें रहीं.

जुलाई 2016 के बाद पहली बार महंगाई दर ने RBI के 2-6% के टारगेट बैंड को तोड़ा है. कीमत स्थिरता केंद्रीय बैंक की मुख्य प्राथमिकता है. पिछले महीने पेश की गई मौद्रिक समीक्षा में RBI ने नीतिगत दरों में कोई बदलाव नहीं किया था, जो अप्रत्याशित था क्योंकि लगातार 5 बार केंद्रीय बैंक कटौती कर चुका था. 5 बार में आरबीआई ने रीपो रेट में 1.35% की कटौती की, लेकिन छठी बार रेट नहीं बदले. महंगाई दर स्थायी है या अस्थायी, यह तय करने को लेकर आरबीआई सिर्फ कुल महंगाई दर को नहीं देखता बल्कि कोर इन्फ्लेशन का भी ध्यान रखता है. कोर इन्फ्लेशन 3.7 पर्सेंट रहा, जो 4% के नीचे बना हुआ है. लिहाजा, संभव है कि 6 फरवरी को होने वाली अगली मौद्रिक नीति समीक्षा में दिसंबर की महंगाई के आधार पर नीतिगत दरों में कटौती न हो.

आर्थिक सुस्ती के कारण मौजूदा वित्त वर्ष में 16 लाख कम मौकरियों के सृजन का अनुमान है. बीते वित्त वर्ष में 90 लाख नई नौकरियां पैदा हुई थीं, लिकिन इस साल यह आंकड़ा काफी कम रह सकता है. यह बात एसबीआई की रीसर्च रिपोर्ट में सामने आई है. EPFO द्वारा नए पेरोल्स का हवाला देते हुए यह आंकड़ा पेश किया गया है. EPFO के डेटा में सरकारी सरकारी, राज्य सरकारों के तहत आने वाली नौकरियां और प्राइवेट जॉब्स का डेटा नहीं शामिल होता क्योंकि साल 2004 से यह डेटा नैशनल पेंशन स्कीम के तहत आने लगा है.

 रिपोर्ट के मुताबिक 2019-20 में NPS कैटिगरी में भी केंद्र और राज्य सरकारें 39000 कम रोजगार पैदा करेंगी.’ पिछले 5 वर्षों के दौरान प्रॉडक्टिविटी ग्रोथ तकरीबन समान रही, जिसकी वजह से सैलरी ग्रोथ भई कम रही. मार्केट में कम जॉब्स का मतलब है कि इन्किमेंट भी कम होगा.ऐसा समय जब इकॉनमी में खपत और निवेश के लिए मांग घट रही है, बढ़ती महंगाई ने RBI के सामने और संकट खड़े कर दिए हैं. नीतिगत दरों में बदलाव के लिए काफी कम गुंजाइश बचती है. सभी की नजरें अब 1 फरवरी को पेश होने वाले बजट पर हैं. जनता देखना चाहती है कि 10 सालों में पहली बार 5% की दर से बढ़ रही इकॉनमी की ग्रोथ बूस्ट करने के लिए सरकार क्या कदम उठाने वाली है.

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