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लॉक डाउन के पक्ष और विपक्ष में दलील, आपकी क्या राय है, जरुर बताइए

लॉकडाउन बढ़ाना मजबूरी है या फिर ग़ैर-ज़रूरी, बहस कर रहे हैं सिटी पोस्ट लाइव के दो सहयोगी.

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लॉक डाउन के पक्ष और विपक्ष में दलील, आपकी क्या राय है, जरुर बताइए.

अभिषेक  मिश्र : भारत में कोरोना बहुत तेजी से फ़ैल रहा है. अबतक भारत में कोरोना वायरस के 6412 मामले सामने आ चुके हैं.लगभग 200 मौतें हो चुकी हैं और केवल 504 लोग ही ईलाज के बाद स्वस्थ हो पाए हैं. इस बीच कोरोना वायरस को लेकर इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च की ताजा रिपोर्ट से सरकार की नींद उड़ गई है. ICMR की ने अपने ताजा रिपोर्ट में कहा है कि भारत में कम्युनिटी ट्रांसमिशन का खतरा तेजी से बढ़ रहा है. जिन जिलों में इस तरह के मरीज ज्यादा देखने को मिल रहे हैं वहां और ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है. कम्युनिटी ट्रांसमिशन मतलब भारत तीसरे फेज में पहुँचाने वाला है, जहाँ नियंत्रण मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन हो जाएगा.

श्रीकांत प्रत्यूष  :दूसरी तरफ 14 अप्रैल को 21 दिन का लॉकडाउन ख़त्म होने वाला है. इसको आगे बढ़ाया जाए या नहीं इसे लेकर अलग-अलग पक्ष सामने आ रहे हैं.देश के ज़्यादातर राज्य इसे बढ़ाने की बात कह रहें हैं. कर्नाटक ने ही केवल सामने आकर ये बात कही है कि जिन इलाक़ों में कोरोना संक्रमण के एक भी मामले सामने नहीं आए हैं, उनमें लॉकडाउन खोल देना चाहिए.हालांकि बाक़ी कोरोना संक्रमित ज़िलों में चरणबद्ध तरीक़े से लॉकडाउन लागू रहे, इसके पक्ष में वो भी है.लॉकडाउन बढ़े या ख़त्म हो जाए – इसको लेकर कम्यूनिटी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म लोकल सर्कल ने आज एक सर्वे जारी किया है. इस सर्वे में तकरीबन 26000 लोगों ने ऑनलाइन हिस्सा लिया. इसमें से तकरीबन 63 फ़ीसदी लोगों की राय थी कि लॉकडाउन कुछ प्रतिबंध के साथ ख़त्म कर दिया जाना चाहिए.

अभिषेक मिश्र  :देश के के कुछ लोग पूर्ण लॉकडाउन ख़त्म करने के पक्ष में हैं  जबकि कुछ लोग इसे और आगे बढ़ाने की बात कर रहें हैं. दोनों पक्ष के पास अपने तर्क हैं.आज हम लॉक डाउन  को जारी रखने के पक्ष और विपक्ष  दलील पेश करेगें ..इस तर्क वितर्क का मकसद अपने दर्शकों की राय यानी आपकी लेना है.इसलिए इसे ध्यान से सुनिए और अपना विचार जरुर दीजिये कि लॉक पूर्ण लॉक  डाउन जरुरी है या गैर-जरुरी..

श्रीकांत प्रत्यूष  :केंद्र सरकार ने जब पूर्ण लॉकडाउन की घोषणा की थी उसे पीछे तीन मक़सद थे. पहला चेन ऑफ़ ट्रांसमिशन को ब्रेक करना, दूसरा लोगों को इस बीमारी की गंभीरता समझाना और  तीसरा, तीसरे चरण के लिए तैयारी करना.21 दिन का  लॉकडाउन ही सही है इसे आगे नहीं बढ़ाया जाना चाहिए.क्योंकि इतने दिनों में ये  तीनों उद्देश्य  पूरे हो जाने चाहिए और अगर सरकार को लगता है कि जनता अब तक इसे नहीं समझ पाई है, तो आगे लॉकडाउन बढ़ा कर इसे हासिल कर लेगी इसका कोई प्रमाण नहीं मिलता.सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ़ डेवलपिंग सोसाइटीज़ (सीएसडीएस) का अध्ययन बताता है कि बड़े शहरों में कमाने -खाने वाली आबादी में से 29 फीसदी लोग दिहाड़ी मज़दूर होते हैं. उपनगरीय इलाक़ों की खाने-कमाने वाली आबादी में दिहाड़ी मज़दूर 36 फ़ीसदी हैं.गाँवों में ये आँकड़ा 47 फ़ीसदी है जिनमें से ज़्यादातर खेतिहर मज़दूर हैं.इन आँकड़ों से साफ़ जाहिर है कि देश में इतनी बड़ी आबादी को लॉकडाउन बढ़ने पर रोज़गार नहीं मिलेगा. ऐसे में उनकी परेशानी और बढ़ेगी. सरकार ने बेशक इनके लिए आर्थिक पैकेज की घोषणा की है लेकिन वो कितने पर्याप्त हैं, इस पर भी सवाल है.रोज़ कमा कर खाना ही दिहाड़ी मज़दूरों के लिए एकमात्र विकल्प है. इनके कामकाज का अभाव इन्हें जीते जी मार रहा है. सरकार राहत पैकेज की जितनी मर्जी घोषणा कर लें, लोगों तक पहुंचाने के लिए उनके पास संसाधन नहीं है.ज़रूरी सामान की सप्लाई चेन बहाल रखने में भी इनका योगदान ज़रूरी है. आख़िर सामान बनेंगे नहीं तो हम तक पहुंचेंगे कैसे?

अभिषेक मिश्र : मैं तो लॉकडाउन को बढ़ाने के पक्ष में हूँ.मेरे हिसाब से  पूर्ण लॉकडाउन का मक़सद अभी पूरा नहीं हुआ है. मज़दूरों के पलायन और दिल्ली के मरक़ज़ की घटना के बाद स्थिति वो नहीं रही जैसी उन्हें उम्मीद थी.इसलिए कम से कम 30 अप्रैल तक इसे आगे बढ़ाने की ज़रूरत है. चीन के वुहान में जब लॉकडाउन जनवरी में लगा था, तभी वहां डॉक्टरों और वैज्ञानिकों ने कई मॉडल स्टडी के ज़रिए ये बताया था कि अप्रैल में लॉकडाउन खोलना ही उचित होगा.भारत में भी ऐसी स्टडी चल रही है. उसी में से एक स्टडी में पता चला है कि भारत में ये वायरस एक संक्रमित मरीज़ से 30 दिन में 400 से अधिक लोगों को संक्रमित कर सकता है.लॉकडाउन नहीं हुआ होता तो आज कोरोना के मरीज़ देश में कहीं ज़्यादा होते और ग्राफ कहीं और होता इसलिए लॉकडाउन को आगे के दिनों में जारी रखना भारत के लिहाज़ से फायदेमंद होगा.

श्रीकांत प्रत्यूष : विश्व की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है भारत और आज भी भारत की गिनती विकासशील देशों में ही होती है ना कि विकसित देशों में.इस बीमारी से लड़ने के लिए सरकार ने 1.7 लाख करोड़ रुपए की आर्थिक मदद की घोषणा की. और दूसरी तरफ़ 15000 करोड़ स्वास्थ्य प्रणाली में सुधार करने के लिए. ये हमारी जीडीपी का महज़ 0.8 फ़ीसदी हिस्सा है.साफ़ है सरकार के पास ना तो बीमारी से लड़ने के पैसे हैं और ना ही उद्योग जगत की मदद करने के लिए पैसे.अभी बात मज़दूरों की हो रही है क्योंकि वो सबसे ज़्यादा प्रभावित हैं. CII ने अपने सर्वे में माना है कि तकरीबन 80 फ़ीसदी उद्योग में लॉकडाउन की वजह से काम बंद हैं जिसका सीधा असर नौकरियों पर पड़ने वाला है.अगर लॉकडाउन बढ़ा, और ज़्यादा नौकरियां गईं तो आने वाले दिनों में मध्यम वर्ग के लिए सरकार को पैकेज की घोषणा करनी पड़ेगी.

अभिषेक मिश्र :लॉकडाउन को ख़त्म करने के पहले एक अहम बात का ख्याल रखना होगा.फिलहाल ये कोरोना के संक्रमण का  डबलिंग रेट भारत में 4 दिन से थोड़ा ज्यादा है. डॉक्टर और एक्सपर्ट की राय में ये अगर भारत में कोरोना के मामले हर दिन 8-10 में दोगुने होंगे तो इसे बेहतर स्थिति कह सकते हैं. इसलिए इंतज़ार करने की ज़रूरत है.लॉकडाउन ख़त्म करते ही लोगों की आवाजाही एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश में शुरू हो सकती है. जिससे अब तक के केंद्र और राज्य सरकारों के प्रयासों पर पानी फिर सकता है.उनके मुताबिक़ लोगों से एक दूसरे में फैल रही है बीमारी. अगर लोगों की आवाजाही शुरू हो गई तो भारत की जनसंख्या इतनी है और आबादी इतनी ज्यादा घनी है कि तब इसे काबू में करना मुश्किल हो जाएगा.केवल हॉटस्पॉट पर लॉकडाउन करके कुछ हद तक इसे काबू में किया जा सकता है. लेकिन एक बार लोगों की आवाजाही शुरू हो जाएगी तो जिन इलाक़ों में आज नहीं है वहां भी कोरोना संक्रमण पहुंच सकता है. निकट भविष्य में इस बीमारी से निपटने का कोई समाधान भी नज़र नहीं आ रहा.किसी भी तरह का कोई टीका बनने में कम से 6-8 महीने लगेंगे ही और कोई कारग़र दवा भी नहीं मिल पर रही है.ऐसे में उचित होगा कि लॉकडाउन में ज्यादा से ज्यादा रहने की आदत डाल लें.

श्रीकांत प्रत्यूष : संक्रमण के दौर में मौत को भी लोग दो तरीक़े से देख रहे हैं.एक जो कोरोना से मर रहे हैं. हर टीवी चैनल और अख़बार में रोज़ उनकी गिनती पहले दिखती है.दूसरे वो जो कोरोना से इतर दूसरी बीमारी से मर रहें है जैसे किडनी, हार्ट फेल, डायबटीज़. पहले जैसी स्थिति होती तो शायद उन्हें इलाज थोड़ा बेहतर मिल पाता.सरकार आज कोरोना से हुई मौत को लेकर ज्यादा संजीदा है. लेकिन दूसरी तरह की मौत से भी इस समय मुंह नहीं मोड़ा जा सकता. ना तो सरकार के पास ये आँकड़े हैं कि लॉकडाउन बढ़ाने से वो कितनी जानें बचा लेंगे ना हमारे पास ये आँकड़े है कि भूख से कितने लोग मरेंगे. समस्या दोनों ही गंभीर है. फ़र्क बस ये है कि आप किस चश्में से चीज़ो को देखते हैं.मेरे हिसाब से चरणबद्ध तरीक़े से लॉकडाउन हटाना, लॉकडाउन को बढ़ाने की तुलना में बेहतर विकल्प है. भारत को जर्मनी और दक्षिण कोरिया से ज़्यादा सबक सीखना होगा. इन दोनों देशों ने भारत की तरह पूर्ण लॉकडाउन नहीं किया है. फिर भी यहां पाए गए पॉज़िटिव केस के मुकाबले कोरोना संक्रमित मरीज़ों की मौतें कम हुई हैं.दोनों देशों ने टेस्टिंग ज़्यादा की और बिना पूर्ण लॉकडाउन के सोशल डिस्टेंसिंग को लोगों को अपनाने के लिए जागरूक किया.

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