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1942 : अगस्त क्रांति पर विशेष- इतिहास के भूले-बिसरे पन्नों के कुछ दस्तावेजी प्रमाण

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(1) 1942 : अगस्त क्रांति पर विशेष

अगस्त क्रांति-1942 से जुड़े सवालों की सही समझ और सही जवाब की तलाश के लिए – देश के युवाओं को प्रेरित करने के लिए – ‘सिटी पोस्ट लाइव’ की ओर से यहां इतिहास के भूले-बिसरे पन्नों के कुछ दस्तावेजी प्रमाण प्रस्तुत किये जा रहे हैं।

[स्रोत-सन्दर्भ :  (1) गांधीजी का भाषण, ‘महात्मा’, जिल्द 6, नेहरू स्मारक संग्रहालय तथा पुस्तकालय, नयी दिल्ली, (2) “युसुफ मेहर अली: नये क्षितिजों की खोज”, लेखक : मधु दंडवते, (3) बिहारनामा, बिहार विधान परिषद शताब्दी समारोह (2011-12) प्रकाशन]

 

सवाल

1942 में विश्वयुद्ध के विनाशकारी और आतंकित करने वाले परिदृश्य के बीच ‘अगस्त’ माह से पूरे देश में जो कुछ हुआ क्या उसे ‘क्रांति’ की संज्ञा दी जा सकती है?

अगस्त, 1942 में बिहार ने जो कुछ किया और जिस पर आज भी पूरा बिहार ‘गर्व’ करता है, क्या यह गांधी के ‘करेंगे या मरेंगे’ आह्वान का आशय प्रगट करता है?

‘अगस्त-क्रांति-1942’ को आजादी के संघर्ष में आम आदमी की भूमिका को अंहिसात्मक भूमिका की सफलता का चरमोत्कर्ष माना जाय या उसकी हिंसात्मक कार्यवाहियों की विफलता की पराकाष्ठा?

ऐसे कई सवाल हैं, जिनके विभिन्न उत्तर (दृष्टिकोण!) आज भी किसी न किसी स्तर के प्रांतीय, राष्ट्रीय अथवा अन्तर्राष्ट्रीय राजनीतिक ‘जन-विरोध, प्रतिरोध और विद्रोह’ की सीमा-संभावनाओं के विमर्श के लिए मानक की तरह प्रयुक्त किये जाते हैं।

इस मायने में 1942 की ‘अगस्त-क्रांति’ आज भी खोज, विश्लेषण और विमर्श का विषय है।

आज भी उस दौर के कई ‘तथ्य’ अज्ञात हैं, अप्रकाशित हैं। हालांकि उनके ‘होने’ के बिखरे-बिसरे संकेत हजारों सरकारी-गैरसरकारी दस्तावेजों में हैं। वे दस्तावेज अपने ऊपर पड़े रहस्य की धूल साफ करने की मांग करते हैं।

जैसे, यह संकेत कि ‘तीस के तूफान और बत्तीस की आंधी’ के दौर में ‘स्वराज्य-भवन’ (इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश) में रहकर जयप्रकाश नारायण ने ‘अभूतपूर्व सत्याग्रह का इतिहास’ लिखा था। क्या उसके बारे में आज भी यह कहना होगा कि ‘वह स्वराज्य-भवन के कागज के पुलिंदों में कहीं होगा? (यदि उसे दीमकों ने नहीं चाट लिया हो तो) क्या कभी वह इतिहास प्रकाश में आ सकेगा और देश जान सकेगा कि ‘अगस्त क्रांति के हीरो जेपी’ ने एक युग पहले के आंदोलन को किस नजर से देखा था?

और, यह सवाल, जिसके सही जवाब की आज हिंदुस्तान की नयी पीढ़ी से भी कम जानकारी देश के शासन-प्रशासन का नियमन-संचालन-नियंत्रण करने वाले वर्तमान ‘प्रभुओं’ को है कि 1942 में ‘भारत छोड़ो’ (क्विट इंडिया) का नारा किसने दिया? कांग्रेस के नेता ‘जवाहरलाल नेहरू’ ने या ‘हिंदू-राष्ट्र के हिमायती ‘वीर सावरकर’ ने या आरएसएस के नेता ‘हेडगेवार’ ने या कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के नेता ‘यूसुफ़ मेहर अली’ ने?

1942 के कई उपलब्ध लेकिन आज तक मुकम्मिल शोध व तुलनात्मक अध्ययन के दायरे से बाहर पड़े दस्तावेजी संकेत इस आशय को रेखांकित करते हैं कि अगस्त क्रांति के दौरान बिहार के कई-कई इलाकों में ‘जनता-राज’ स्थापित हो गया था! यह ‘जनता-राज’ अगस्त-क्रांति में ‘अतिवादी’ बिहार की ताकत का प्रमाण था? या पूर्ण स्वराज्य की उस जन-परिकल्पना का पहला प्रायोगिक ‘मॉडल’ भी था जो सिर्फ बिहार में साकार हुआ?

‘करेंगे या मरेंगे’ के मंत्र से बिहार जिस तरह उठ खड़ा हुआ, उस तरह से सारा हिन्दुस्तान क्यों नहीं उठ खड़ा हुआ? आज भी अगस्त-क्रांति-1942 के बिहार और शेष भारत के इतिहास के तुलनात्मक अध्ययन में कोई भी शोधार्थी इस निष्कर्ष पर पहुंचने का ‘दबाव’ महसूस करता है कि जितना बिहार की जनता ने किया उसका आधा भी हिन्दुस्तान की अधिकांश जनता एक साथ कर दिखाती तब अगस्त आंदोलन का इतिहास कुछ और होता। एक प्रांत का अकेला आजाद होकर अंगरेजी सरकार की ताकत के आगे सर उठाये रखना नामुमकिन था। उसे तो हिन्दुस्तान के पिछड़े हुए हिस्सों ने पछाड़ दिया।

 

(2) देश में दमघोंटू शून्यता

1942 में अगस्त के पहले के तीन महीने – मई, जून, जुलाई – में भारत को दम घोटने वाली भयानक शून्यता का अनुभव होने लगा था। भारतवासी हताश प्रतीत होते थे। ब्रिटिश सेनानायक, संयुक्त राज्य के जनरल स्टिलवेल की बची-खुची सेना और हजारों भारतीय शरणार्थी, जीतते हुए जापानियों से बचने के लिए बर्मा से भाग रहे थे। जापान भारत के दरवाजे तक आ पहुंचा था। भारत को धावे से बचाने के लिए इंग्लैंड के पास शक्ति नजर नहीं आ रही थी। … भारतवासी अपनी नितांत असहायता से झुंझला रहे थे और तंग आ गये थे। राष्ट्रीय संकट उपस्थित था, तनाव बढ़ता जा रहा था, खतरा सामने था, मौका पुकार रहा था…।

गांधीजी के लिए यह स्थिति असह्य थी। उन्होंने 28 मई, 1942 को अपने ‘सत्याग्रही’ सहयोगियों से कहा कि वे जल्दी ही आंदोलन शुरू करना चाहते हैं, लेकिन वे जल्दी में नहीं हैं। उनके दिमाग में कई और योजनाएं हैं। वे उचित वातावरण बनाने और जनता को शिक्षित करने की कोशिश कर रहे हैं।

उन्होंने घनश्यामदास बिड़ला से कहा कि उनका दिमाग तेजी से काम कर रहा है, उन्होंने संघर्ष की रणनीति लगभग तय कर ली है और वे कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक का इंतजार कर रहे हैं।

14 जुलाई को गांधी जी ने अपने मन की बात कांग्रेस के करीबी नेताओं को बताई कि वे खुले अहिंसात्मक विद्रोह की बात सोच रहे हैं। अगले दिन उन्होंने कुछ विदेशी संवाददाताओं को बताया कि यह उनका सबसे बड़ा आंदोलन होगा। अगर उन्हें और उनके सहयोगियों को गिरफ्तार किया गया तो आंदोलन ठप्प नहीं पड़ेगा, बल्कि वह जोर पकड़ेगा।

उन्होंने कहा कि ब्रिटिश सरकार ने उन्हें जेल में डाल दिया तो वे आमरण अनशन करेंगे। लेकिन उन्होंने अपने सहयोगियों से कहा कि अगर वे उनकी सोच में जल्दबाजी अथवा दूसरा कोई दोष देखें तो उन्हें बता दें।

अगर प्रमुख कांग्रेसी नेता गिरफ्तार कर लिये गए, तब (गिरफ्तारी होने के बाद) क्या होगा?

इसके जवाब में गांधी जी ने प्रतिरोध की भावना पर जोर दिया। और कहा – “जब नेताओं को पकड़ लिया जाएगा तो प्रत्येक भारतीय अपने को नेता मान कर बलिदान देगा और इस बात की परवाह नहीं करेगा कि उसके काम से अराजकता पैदा होगी। अराजकता का दोष सरकार पर लगेगा जो अराजकता के बहाने या किसी और बहाने से अपनी अराजकता को मजबूत कर रही है। हमारी अहिंसा तब तक लंगड़ी रहेगी, जब तक हम अराजकता के डर से पीछा नहीं छुड़ा लेते। यह मौका यह सिद्ध करने का है कि दुनिया में अहिंसा से ताकतवर कोई चीज नहीं है।”

जब पत्रकारों ने उनसे पूछा कि उनके आह्वान पर मुसलमानों की क्या प्रतिक्रिया होगी तो उन्होंने उत्तर दिया – “मैंने अंग्रेजों से यह नहीं कहा है कि वे भारत को कांग्रेस या हिंदुओं को सौंप दें। उन्हें हिंदुस्तान ईश्वर को या आधुनिक शब्दावली में ‘अराजकता’ को सौंप देना चाहिए। तब सभी पक्ष आपस में कुत्तों की तरह लड़ेंगे या जब वे वास्तविक उत्तरदायित्व के आमने-सामने होंगे तो आपस में मिल-बैठकर समझौता करेंगे। मैं अव्यवस्था से अहिंसा के प्रादुर्भाव की उम्मीद करता हूं।”

यूं कांग्रेस कार्यकारिणी के लिए गांधीजी ने निर्देशों का एक सामान्य मसौदा तैयार किया। उसमें किसी नये आंदोलन की चर्चा नहीं की। उसमें उन्होंने संक्षिप्त, फौरी, और तीव्र कार्रवाई पर जोर दिया।

 

(3) यूसुफ़ मेहर अली : भारत छोड़ो’ (क्विट इंडिया)

अगस्त आते-आते तो ऐसी परिस्थिति हो गयी कि सभी एक स्वर से ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध आंदोलन छेड़ने की आवश्यकता पर जोर देने लगे। सबों को विश्वास हो गया कि “अंगरेजी सरकार राजी-खुशी अपने पंजे से हिन्दुस्तान को निकलने न देगी, वह मिट जाएगी, पर अपने साम्राज्यवादी शिकंजे को ढीला न करेगी, अपनी ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति न छोड़ेगी, हिन्दुस्तानियों को एक न होने देगी, ताकि हम आजाद हो सकें । यदि सरकार जीत गयी तो हम जैसे पामाल हो रहे हैं, होते रहेंगे । यदि हार गयी तो विजेता आयेगा, वह हमारी फूट का फायदा उठा, हमें पामाल करना शुरू कर देगा। इसलिए आवश्यकता है कि हम तुरंत अंगरेजी सरकार को हटायें…।”

जेपी के अनन्य मित्र यूसुफ़ मेहर अली ने, जो बम्बई के मेयर के चुनाव में दिग्गजों का पछाड़ दिया था, दूसरा विश्वयुद्ध शुरू होने के पहले ‘पद्मा प्रकाशन’ की नींव डाली थी। उन्होंने अपने संपादन में दो किताबें प्रकाशित कीं – ‘युद्ध से खंडित चीन में’ (इन वार टॉर्न चाइना), लेखक – कमलादेवी चट्टोपाध्याय, और ‘भारत के नेता’ (लीडर्स ऑफ़ इंडिया), लेखक – यूसुफ़ मेहर अली।

यूसुफ़ मेहर अली ने उसी ‘पद्मा प्रकाशन’ के जरिये 1942 की अगस्त क्रांति की पूर्व संध्या पर महत्मा गांधी के आशीर्वाद से ‘भारत छोड़ो’ (क्विट इंडिया) नामक पुस्तक प्रकाशित की। चार सप्ताह की अल्प अवधि में ही उसके लगभग छः संस्करण बिक गये। पुस्तक की असाधारण लोकप्रियता ने सर्वसत्ताधारी नौकरशाही को कुपित कर दिया। उसने पुस्तक पर प्रतिबंध लगा दिया।

 

(4) जवाहरलाल नेहरू का प्रस्ताव : कंप्लीट इंडिपेंडेंस

अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटी 7 अगस्त को बंबई में बैठी। कार्यसमिति वहां 4 अगस्त से ही बैठी हुई थी। उसने ‘अगस्त प्रस्ताव’ के शब्द-शब्द पर गौर करके उसे नेहरूजी के हाथ सौंपा। नेहरू ने वह प्रस्ताव पेश किया। उसमे कहा गया कि

  1. हिन्दुस्तान की भलाई और संयुक्त राष्ट्रों की जीत इसी में है कि तुरंत यहां ब्रिटिश हुकूमत का खात्मा हो।
  2. चीन और रूस वगैरह पर जो संकट आया है उसका कारण है संयुक्त राष्ट्रों की साम्राज्यवादी नीति। उनकी साम्राज्यवादी नीति को देख दुनिया की पीड़ित जनता उनकी पीठ पर नहीं है। यदि वे उक्त नीति को त्याग दें तो संसार के अगुआ बन जायें और संसार में सच्चा प्रजातंत्र स्थापित हो जाये।
  3. हिन्दुस्तान को आजादी का हक मिल जाये तो वह सब दलों की अस्थायी सरकार बनाये, अपनी और संयुक्त राष्ट्रों की रक्षा की पूरी चेष्टा करे, फिर विधान परिषद बुलाकर वह सर्वसम्मत विधान तैयार करावे। वह विधान ‘संघ शासन’ के अनुकूल किसान और मजदूर के हाथ में ताकत की कुंजी दे। फिर आजाद हिन्दुस्तान और मित्र राष्ट्रों का भविष्य संबंध कैसा होवे इसे ये सभी एक दूसरे के लाभ को देखते हुए तय कर लेंगे।
  4. हिन्दुस्तान की आजादी को सभी पराधीन देशों की आजादी का लक्षण मानना चाहिए। इससे साम्राज्यवाद की समाप्ति का श्रीगणेश हो ।
  5. यों तो इस संकट काल में अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटी का लक्ष्य हिन्दुस्तान की हिफाजत और आजादी है पर इसका पक्का विचार है कि विश्व की शांति, सुरक्षा और सदुन्नति विश्वसंघ की स्थापना पर ही निर्भर करती है। यह विश्वसंघ शोषण और पराधीनता की समाप्ति का प्रतीक हो, तभी निरस्त्रीकरण हो सकेगा और केवल एक विश्वसंघ सेना दल संसार की लड़ाई-भिड़ाई को रोक अमन कायम रख सकेगा। हिन्दुस्तान ऐसे विश्वसंघ में सहर्ष शामिल होगा और अन्यान्य देशों के कांधे से कांधा भिड़ा बहिर्राष्ट्रीय समस्याओं को हल किया करेगा।
  6. पर ऐसे विचार को किसी को अपनाते न देख कमिटी दुःखी है। चीन, रूस और अपनी जो दुर्दशा हो रही है उससे त्राण पाने के लिए इंग्लैंड के लिए आवश्यक है कि वह तत्काल हिन्दुस्तान को आजाद करे, पर वह साम्राज्यवादी घमंड में चूर है जो सहा नहीं जाता। फिर भी उससे और संयुक्त राष्ट्रों से कमिटी की आखिरी अपील है संभल जाने की और हिन्दुस्तान को आजाद करके अपना और हिन्दुस्तान का गला बचाने की।
  7. पर अपील करके ही चुप नहीं रहा जा सकता। हक पर पहुंचने के लिए जैसी तैयारी हिन्दुस्तान कर रहा है उसे रोका नहीं जा सकता। इसलिए कमिटी निश्चय करती है कि अपने जन्म सिद्ध अधिकार ‘स्वराज्य’ (कंप्लीट इंडिपेंडेंस) की प्राप्ति के लिए हिन्दुस्तान बड़े से बड़े पैमाने पर अहिंसात्मक ढंग से जन आंदोलन शुरू करे। 22 वर्षों के शांतिपूर्ण संघर्ष से जिन शक्तियों का संचय किया है उन सबका उपयोग करे। ऐसा आंदोलन अनिवार्यतः गांधीजी के नेतृत्व में ही हो सकता है। इसलिए गांधीजी से प्रार्थना है कि देश का नेतृत्व करें और जो-जो कदम लेना है सो हिन्दुस्तान को सुझावें ।
  8. कमिटी ने जनता से अपील की है कि वह साहस तथा सहिष्णुता का परिचय दे, खतरों और कठिनाइयों का सामना करे, याद रखे कि इस आंदोलन का आधार अहिंसा ही है। कमिटी ने कहा है कि जब कांग्रेस का संगठन छिन्न-भिन्न हो जाये और ऊपर से आदेश पाने की संभावना न रहे, तब क्या स्त्री क्या पुरुष, सभी मोटा-मोटी जो आदेश मिल गया उसके आधार पर अपना कार्यक्रम आप ठीक करें और काम करते जायें जब तक भारत आजाद नहीं हो जाता ।
  9. अंत में समिति ने साफ कर दिया है कि जो जन आंदोलन होगा उसका लक्ष्य यह नहीं है कि कांग्रेस के हाथ हुकूमत आ जाये। जब हुकूमत मिलेगी हिन्दुस्तान की सारी जनता को मिलेगी ।

प्रस्ताव सुन कमिटी के प्रायः सभी सदस्य अपूर्व उत्साह में आ गये। पर कुछ नेताओं को अब भी उम्मीद थी कि अंगरेज सुलह करके रास्ते पर आ जायेंगे। कमिटी की कार्रवाई शुरू करते हुए मौलाना आजाद साहब ने कहा भी कि आजाद होते ही हिन्दुस्तान जापान का दोस्त बन जायेगा, इसका डर बेबुनियाद है ; अब बात करने का मौका नहीं है, काम करने का है, इसलिए हम और ब्रिटिश सरकार एक साथ काम करें, यानी ब्रिटिश सरकार हिन्दुस्तान को आजाद घोषित करे और हम संयुक्त राष्ट्र के साथ मैदान में दुश्मनों से लड़ने उतर पड़ें।

पर सदस्यों की भाव भंगिमा नेताओं की प्रचंड आशावादिता का समर्थन नहीं कर रही थी। सदस्यों ने संशोधनों को नामंजूर करते हुए नारे और जय-जयकार के बीच ‘अगस्त प्रस्ताव’ को पास किया। लगभग 240 सदस्यों में से सिर्फ 13 सदस्यों ने विरोध में हाथ उठाये।

(5) गांधी का मंत्र : करेंगे या मरेंगे

जवाहरलाल नेहरू द्वारा पेश प्रस्ताव पास हो जाने के बाद गांधीजी उठे। करीब ढाई घंटे उनका भाषण हुआ – हिंदी में और अंगरेजी में। गांधीजी ने कहा – “…प्रस्ताव की सूचना मैं बड़े लाट साहब को दूंगा जिनका जवाब मिलते ज्यादा देर न होगा। पर मैं चाहता हूं कि आज से सदस्य ही नहीं, बल्कि सारे हिन्दुस्तानी समझ लें कि हमने गुलामी की जंजीर तोड़ डाली और हम स्त्री-पुरुष सभी आजाद हैं। अंगरेजी में बोलते हुए उनने कहा कि देश और विदेश में मेरे कितने ही मित्र हैं। उनमें कुछ को मेरी दानाई में ही नहीं, मेरी ईमानदारी में भी शक है। मेरी दानाई की वैसी कोई कीमत नहीं, लेकिन अपनी ईमानदारी को मैं बड़ी कीमती समझता हूं। मैं अपने को लार्ड लिनलिथगो साहब का दोस्त मानता हूं। अंगरेज और संयुक्त राष्ट्रवाले अपना दिल टटोलें और बतलावें कि आजादी की मांग करके कांग्रेस कमिटी ने कौन-सा कुसूर किया है? मुझको विश्वास है, संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के सभापति कांग्रेस का अविश्वास नहीं करेंगे। अंगरेजों और संयुक्त राष्ट्रों को ऐसा मौका मिला है जैसा दुबारा नहीं मिलता कि हिन्दुस्तान को आजाद करके अपने सदुद्देश्यों को प्रमाणित कर दें…।” फिर गांधीजी ने हिन्दुस्तान के लिए दुनिया की सभी देश-समाजों का आशीर्वाद चाहा और संयुक्त राष्ट्रों से पूरी मदद मांगी ।

भाषण समाप्त करते हुए गांधीजी ने कहा – “…अहिंसा को मानते हुए हर आदमी जो चाहे करने के लिए आजाद है। वह हर तरफ जिच पैदा करे, हड़ताल करावे और अन्यान्य अहिंसात्मक साधनों से काम लेवे। सत्याग्रहियों को कार्यक्षेत्र में पिल पड़ना चाहिए, जीने के लिए नहीं, मरने के लिए। जभी लोग निकल पड़ते हैं ढूंढ़कर मौत का सामना करने के लिए तभी उनकी कौम मौत से बची रहती है। बस, हमलोग अब करेंगे वा मरेंगे।

“…आप विश्वास रखिए कि मैं मंत्रिपदों आदि के लिए वायसराय से कोई सौदा करनेवाला नहीं हूं। मैं पूर्ण स्वतंत्रता के सिवाय किसी चीज से संतुष्ट होने वाला भी नहीं। हो सकता है कि वे नमक-कर को हटाने, शराब की लत को खत्म करने आदि के बारे में सुझाव रखें। लेकिन मैं कहूंगा – ‘स्वतंत्रता के सिवाय कुछ भी नहीं।’

“..यह एक-छोटा-सा मंत्र मैं आपको देता हूं। आप इसे अपने हृदय-पटल पर अंकित कर लीजिए और हर श्वास के साथ उसका जाप किया कीजिए। वह मंत्र हैः ‘करो या मरो।’ या तो हम भारत को आजाद करेंगे या आजादी की कोशिश में प्राण दे देंगे। हम अपनी आंखों से अपने देश का सदा गुलाम और परतंत्र बना रहना नहीं देखेंगे। प्रत्येक सच्चा कांग्रेसी, चाहे वह पुरुष हो या स्त्री, इस दृढ़ निश्चय से संघर्ष में शामिल होगा कि वह देश का बंधन और दासता में बने रहने के लिए जिंदा नहीं रहेगा। ऐसी आपकी प्रतिज्ञा होनी चाहिए। जेल का ख्याल मन में न लाइए। अगर सरकार मुझे कैद न करे तो मैं आपको जेल भरने का कष्ट नहीं दूंगा। ऐसे समय में जबकि सरकार खुद मुसीबत में फंसी है, मैं उस पर भारी संख्या में कैदियों के प्रबंध् का बोझ नहीं डालूंगा। अब से हर पुरुष और हर स्त्री को अपने जीवन का हर क्षण यह जानते हुए बिताना है कि वे स्वतंत्राता की खातिर खा रहे हैं और जी रहे हैं और अगर जरूरत हुई तो वे उस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए प्राण दे देंगे। ईश्वर को और अपने अंतःकरण को साक्षी मानकर यह प्रण कीजिए कि जब तक आजादी नहीं मिलती तब तक हम दम नहीं लेंगे और आजादी लेने के लिए अपनी जान देने को भी तैयार रहेंगे। जो जान देगा उसे जीवन मिलेगा और जो जान बचायेगा वह जीवन से वंचित हो जाएगा। स्वतंत्राता कायर को या डरपोक को नहीं मिलती।

“…मैं नहीं चाहता कि मित्र-राष्ट्र अपनी स्पष्ट मर्यादाओं से बाहर जायें। मैं नहीं चाहता कि वे अहिंसा को स्वीकार करके अभी निरस्त्र हो जायें। फासीवाद में और आज मैं जिस साम्राज्यवाद के विरुद्ध लड़ रहा हूं उसमें मौलिक अंतर है। अंगरेज भारत से जो चाहते हैं क्या वह सब उन्हें मिल जाता है? आज तो उन्हें वही मिलता है जो वे उससे जबरदस्ती वसूल करते हैं। जरा सोचिए कि अगर भारत एक स्वतंत्र मित्र-राष्ट्र के रूप में अपना सहयोग देगा तो उससे कितना अंतर हो जाएगा। उस स्वतंत्रता को यदि आना है तो आज ही आना चाहिए। यदि आज आप लोग, जिनके पास मदद करने की ताकत है, अपनी उस ताकत का प्रयोग नहीं करते तो उस स्वतंत्रता का कोई आंनद नहीं रह जायेगा। यदि आप उस ताकत का प्रयोग कर सकें तो आज जो असंभव लगता है वह कल स्वतंत्रता की अरुणिमा में संभव हो जायेगा। यदि भारत उस स्वतंत्रता को अनुभव करने लगता है तो वह चीन के लिए उसी स्वतंत्रता की मांग करेगा। रूस की मदद को दौड़ पड़ने के लिए रास्ता खुल जायेगा…।

“मैं कहां जाऊंगा और भारत की इस चालीस करोड़ जनता को कहां ले जाऊंगा? मानवता के इस विशाल सागर को संसार की मुक्ति के कार्य की ओर तब तक कैसे प्रेरित किया जा सकता है जबतक कि उसे स्वयं स्वतंत्रता की अनुभूति नहीं हो जाती? आज उसमें जीवन का कोई चिन्ह शेष नहीं है। उसके जीवन के रस को निचोड़ लिया गया है। यदि उसकी आंखों की चमक को वापस लाना है तो स्वतंत्रता को कल नहीं, बल्कि आज ही आना होगा। इसलिए मैंने कांग्रेस को यह शपथ दिलवायी है और कांग्रेस ने यह शपथ ली है कि वह ‘करेगी या मरेगी’।

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