सिटी पोस्ट लाइव : बिहार के मुजफ्फरपुर बालिका गृह महा-रेपकांड पर आज सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ कर दिया कि वह इस मामले को लेकर कितना गंभीर है. सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को वह टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेस (TISS) की रिपोर्ट सार्वजनिक करने का आदेश भी दे दिया है. गौरतलब है कि अभीतक यह रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं हुआ है.इस मामले में आज बिहार सरकार की तरफ से सुप्रीम कोर्ट को बताया गया कि दिल्ली एम्स समेत तीन संस्थाएं आश्रय गृह में कथित रूप से उत्पीड़न का शिकार हुईं लड़कियों की मनोवैज्ञानिक जांच कर रही हैं. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में केंद्र से भी सवाल पूछा है कि देशभर में आश्रय गृहों में रहने वाले 1575 बच्चों के उत्पीड़न के मामले में सरकार ने क्या कार्रवाई की है?
कोर्ट ने आश्रय गृहों में रहने वाले बच्चों के उत्पीड़न पर चिंता जताते केंद्र सरकार को जमकर फटकार लगाई है. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से बाल संरक्षण नीति तैयार करने को कहा है. गौरतलब है कि जिले में सरकार द्वारा संचालित बालिका गृह में गड़बड़ी की खबरें प्रदेश सरकार को काफी समय से मिल रही थीं. सरकार द्वारा संचालित बालिका गृह में रहने वाली बालिकाओं ने अपने ही संस्थान के लोगों पर यौन शोषण और हिंसा का आरोप लगाया था. इस खबरों को पुख्ता करने के लिए सरकार ने मुंबई की प्रतिष्ठित संस्था ‘टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस’ को ऑडिट का काम दिया. 7 महीने तक रिसर्च करने के बाद आईएसएस ने 31 मई को सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपी, जिसमें ये चौंकाने वाले खुलासे हुए.
इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट के आधार पर जिला बाल कल्याण संरक्षण इकाई के सहायक निदेशक ने महिला थाने में बालिका गृह का संचालन करने वाले एनजीओ ‘सेवा संकल्प एवं विकास समिति’ के कर्ता-धर्ता और पदाधिकारियों पर केस दर्ज कराया गया था.इस रिपोर्ट के अनुसार राज्य के ज्यादातर बाल और बालिका गृह यातना घर बन गए हैं. कहीं बच्चे का गाल काट लिया गया तो कहीं अंगुली तोड़ दी गई. कहीं उनके छाती पर चढ़कर पिटा गया तो कहीं उन्हें नौकर और रसोइया बना दिया गया.
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