कोरोना रोगियों के जरिये कोरोना के रोगियों के ईलाज का क्या है सच?
सिटी पोस्ट लाइव :भारत में कोरोना का संक्रमण तेजी से बढ़ रहा है.अबतक 5865 कोरोना पॉजिटिव केस सामने आ चुके हैं.189 लोगों की मौत हो चुकी है.अबतक 478 लोग स्वस्थ हो चुके हैं.इस बीच खबर आ रही है कि कोरोना रोगियों से ही ठीक होगें कोरोना रोगी.भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने कोविड-19 मरीज़ों के इलाज के लिए केरल सरकार की ओर से सुझाई गई कॉन्व्लेसेन्ट प्लाज़्मा थेरेपी को मंज़ूरी दे दी है.
केरल सरकार की ओर से गठित एक मेडिकल टास्क फ़ोर्स ने मौजूदा महामारी से निबटने में प्लाज़्मा थेरेपी के इस्तेमाल की सिफ़ारिश की थी.इसे साधारण तरीक़े से समझा जाए तो ये इलाज इस धारणा पर आधारित है कि वे मरीज़ जो किसी संक्रमण से उबर जाते हैं उनके शरीर में संक्रमण को बेअसर करने वाले प्रतिरोधी ऐंटीबॉडीज़ विकसित हो जाते हैं.इन ऐंटीबॉडीज़ की मदद से कोविड-19 रोगी के रक्त में मौजूद वायरस को ख़त्म किया जा सकता है.
टास्क फ़ोर्स के एक सदस्य और कोझिकोड स्थित बेबी मेमोरियल हॉस्पिटल में क्रिटिकल केयर स्पेशलिस्ट डॉक्टर अनूप कुमार के अनुसार किसी मरीज़ के शरीर से ऐंटीबॉडीज़ उसके ठीक होने के 14 दिन बाद ही लिए जा सकते हैं और उस रोगी का कोविड-19 का एक बार नहीं, बल्कि दो बार टेस्ट किया जाना चाहिए.ठीक हो चुके मरीज़ का एलिज़ा (एन्ज़ाइम लिन्क्ड इम्युनोसॉर्बेन्ट ऐसे) टेस्ट किया जाता है जिससे उसके शरीर में ऐंटीबॉडीज़ की मात्रा का पता लगता है.लेकिन ठीक हो चुके मरीज़ के शरीर से रक्त लेने से पहले राष्ट्रीय मानकों के तहत उसकी शुद्धता की भी जाँच की जाएगी.
ठीक हो चुके रोगी के शरीर से ऐस्पेरेसिस विधि से ख़ून निकाला जाएगा जिसमें ख़ून से प्लाज़्मा या प्लेटलेट्स जैसे अवयवों को निकालकर बाक़ी ख़ून को फिर से उसी रोगी के शरीर में वापस डाल दिया जाता है.डॉक्टर अनूप कुमार के अनुसार ऐंटीबॉडीज़ केवल प्लाज़्मा में मौजूद होते हैं. डोनर के शरीर से लगभग 800 मिलीलीटर प्लाज़्मा लिया जाता है. इसमें से रोगी को लगभग 200 मिलीलीटर ख़ून चढ़ाने की ज़रूरत होती है. यानी एक डोनर के प्लाज़्मा का चार रोगियों में इस्तेमाल हो सकता है.ये प्लाज़्मा केवल कोविड-19 रोगियों को चढ़ाया जाएगा, और किसी को नहीं.
डॉक्टर अनूप कुमार कहते हैं, “ ऐसे लोग जिन्हें बुख़ार, कफ़ और साँस लेने में थोड़ी दिक्कत हो रही है, उन्हें प्लाज़्मा देने की ज़रूरत नहीं है. इसे केवल उन्हीं रोगियों को दिया जाना चाहिए जिनकी हालत बिगड़ रही है और पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं ले पाने की वजह से जिनकी स्थिति गंभीर हो सकती हैवो साथ ही कहते हैं कि एहतियात के तौर पर इसे स्वास्थ्यकर्मियों को भी दिया जा सकता है.इलाज के असर के बारे में वो कहते हैं, “अभी तक जो टेस्ट हुए हैं उनसे लगता है कि 48 से 72 घंटे में सुधार शुरु हो सकता है“.
आईसीएमआर से मंज़ूरी मिलने के बाद अब केरल का स्वास्थ्य मंत्रालय ड्रग्स कंट्रोलर-जनरल ऑफ़ इंडिया की मंज़ूरी का इंतज़ार कर रहा है. टास्क फ़ोर्स के सदस्यों को लगता है इसमें ज़्यादा समय नहीं लगेगा.लेकिन इस टीम के पास क्लीनिकल ट्रायल के लिए समय बहुत सीमित होगा. हालाँकि चीन और दक्षिण कोरिया में इस इलाज का इस्तेमाल हो रहा है. इस इलाज में दो से ढाई हज़ार रुपए से ज़्यादा नहीं लगेगा क्योंकि ये इलाज सरकारी अस्पताल में उपलब्ध होगा.
प्लाज़्मा थेरेपी क्यों?इसके पीछे दो बुनियादी कारण हैं.पहला ये कि कोविड-19 का अब तक कोई इलाज उपलब्ध नहीं है.दूसरा ये कि संक्रामक रोगों के इलाज के लिए सदियों से प्लाज़्मा वाला इलाज होता रहा है. इससे पहले सार्स, मर्स और एचवनएनवन जैसी महामारियों के इलाज में भी प्लाज़्मा थेरेपी का ही इस्तेमाल हुआ था.
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