जान जोखिम में डाल सफ़र करने को मजबूर हैं ग्रामीण, नाव बना सुख दुःख का सहारा
एक अदद पुल को तरसते ग्रामीण
सिटी पोस्ट लाइव : नदी में नाव की सवारी करते भले ही आप लोगों ने देखा होगा. लेकिन, यह तस्वीर वास्तविक में 21वीं सदी की है, जो बेहद डरावनी है. आपको बता दें, कि यह तस्वीर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह जिले की है. जो विहार सरकार के विकास के दावों की पोल खोल रही है. गौरतलब है कि गांव में बारात आई थी. शादी के बाद नाव पर बिठाकर बारातियों को विदा किया गया. हिचकोले खाती हुई नई नवेली दुल्हन नाव पर अपने हमसफर के साथ जिंदगी के नए सफर पर निकल पड़ी.
गांव के पास नाव खड़ी है और उसपर नया घर बसाने के लिए घर गृहस्थी का सारा साजो सामान लदा हुआ है. लेकिन बीच मजधार में नाव डोली तो क्या होगा ये सोच कर ही मन सिहर उठता है. शादी ब्याह जिंदगी का यादगार लम्हा होता है. इस खास लम्हें को सजोने के लिए कितने सारे अरमान होते हैं. लेकिन, गांव में पुल नहीं रहने के कारण सारे सुनहरे ख्वाब मटिया मेट होकर रह गए हैं. इस साथ नई नवेली दुल्हनिया को भी पानी के बीच डोलती नाव से ही नई जिंदगी की पहली सफर पर निकलना पड़ रहा है. इस समस्या से आम आदमी भी कम परेशान नहीं है.
आपको बताते चलें कि जिला मुख्यालय बिहारशरीफ़ से महज 8 किलोमीटर की दूरी पर हरगांव पंचायत के नेवाजी बिगहा से होकर गुजरने वाली सोईबा नदी में जान जोखिम में डालकर नदी पार करने को विवश हैं ग्रामीण. इस गांव के लोग अब भी सोइबा नदी को पार करने के लिए नाव का ही सहारा लेते हैं. जो बेहद डरावना और भय के साए में लोग नाव के सहारे आने जाने को मजबूर होते हैं. इस इलाके के नवाजी बिगहा, डंबर बिगहा, हरगावां, बभन बिगहा, प्रभु बिगहा, विष्णुपुर, गुलनी, नेपुरा, प्रभु बिगहा, बेरौटी, इंद्रपुर गांव के हजारों लोग इससे प्रभावित है.
पिछले चुनाव में पूल बनाने की मांग की गई थी, जिसे लेकर वोट बहिष्कार भी हुआ था. उस वक़्त आश्वासन दिया गया, लेकिन आश्वासन फाइलों में ही सिमट कर रह गया. गौरतलब है कि राजगीर विधानसभा में पिछले 45 सालों से एनडीए के विधायक अपनी कुर्सी की गद्दी पर काबिज रह चुके हैं. बावजूद इन ग्रामीणों को आज तक एक अदद पुल के लिए तरस रहे हैं.
नालंदा से मो. महमूद आलम की रिपोर्ट
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