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अंतराष्ट्रीय बाज़ार में सस्ता हो रहा कच्चा तेल, फिर भारत में क्यों महंगा हो रहा तेल, जानिए

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सिटी पोस्ट लाइव : कोरोना संकट के बीच दुनिया भर से कच्चे तेल के दाम में गिरावट की खबर तो आ रही है लेकिन भारत में लगातार पेट्रोल-डीजल के दाम में बढ़ोतरी हो रही है. सबके जेहन में सवाल है-जब कच्चा तेल अंतराष्ट्रीय बाज़ार में सस्ता हो रहा है तो अपने देश में पेट्रोल-डीजल महंगा क्यों हो रहा है? मंगलवार को लगातार 10वे दिन पेट्रोल और डीज़ल दोनों के दामों में इजाफ़ा हुआ. मंगलवार को दिल्ली मे पेट्रोल 47 पैसे महंगा होकर 76.73 रुपये प्रति लीटर पर पहुंच गया. वहीं, डीज़ल में प्रति लीटर 57 पैसे की बढ़त हुई है. अब दिल्ली में डीज़ल 75.19 रुपये प्रति लीटर की दर से बिक रहा है.

भारत के अलग-अलग शहरों में पेट्रोल-डीज़ल की मौजूदा कीमत अलग अलग है. ये अन्तर ट्रांसपोर्ट पर आनेवाले खर्च की वजह से है.दिल्ली में पेट्रोल 76.7375.19 और मुंबई83.6273.75 पैसे प्रति लीटर हो गया है. चेन्नई में 80.3773.17,कोलकाता में 78.5570.84 रुपये/लीटर है.इस सवाल का सीधा सा जवाब ये है कि केंद्र और राज्य, दोनों सरकारें रेवेन्यू के लिए पेट्रोल और डीज़ल के टैक्स पर काफ़ी हद तक निर्भर हैं.

दरअसल,लॉकडाउन के दौरान देश भर में पेट्रोल और डीज़ल की मांग तेज़ी से घटी है और इसलिए सरकार के रेवेन्यू में भी तेज़ी से गिरावट आई है. लॉकडाउन की वजह से आर्थिक गतिविधियां लगभग ठप सी हो गई हैं और इससे राष्ट्रीय ख़ज़ाना बुरी तरह प्रभावित हुआ है. मौजूदा वक़्त में टैक्स के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष स्रोत लगभग ख़त्म हो गए हैं. ऐसे में पेट्रोल-डीज़ल पर लगने वाले टैक्स को बढ़ाकर आर्थिक प्रबंधन ठीक करने की कोशिश की जा रही है. तेल पर टैक्स बढ़ाने के कुछ फ़ायदे भी हैं. जैसे कि इससे बेकार में इस्तेमाल होने वाले पेट्रोल-डीज़ल की खपत में कमी आती है. चूंकि भारत कच्चे तेल के लिए आयात पर निर्भर है ऐसे में ये पेट्रोल-डीज़ल के बेतहाशा इस्तेमाल को फ़िलहाल बर्दाश्त नहीं कर सकता.

तेल के दाम बढ़ाना अभी सरकार के लिए दोधारी तलवार जैसा है क्योंकि उसके लिए ये तय करना मुश्किल है कि वो रेवन्यू इकट्ठा करने के रास्ते ढूंढे या महंगाई पर लगाम लगाए.अभी तत्काल जरूरतों को ध्यान में रखते हुए सरकार रिस्क ले रही है.भारत में पेट्रोल-डीज़ल की क़ीमत चार चरणों में निर्धारित होती है. पहला-रिफ़ाइनरी-यहां कच्चे तेल से पेट्रोल, डीज़ल और अन्य पेट्रोलियम पदार्थ निकाले जाते हैं.दूसरा तेल कंपनियां-ये अपना मुनाफ़ा बनाती हैं और पेट्रोल पंप तक तेल पहुँचाती हैं.तीसरा यहाँ पेट्रोल पंप मालिक अपना तयशुदा कमीशन बनाता है और चौथा ख़रीदार/आम जनता-ये केंद्र और राज्य सरकार के लिए एक्साइज़ ड्यूटी और वैट देकर तेल लेता है.

कच्चा तेल विदेशों से ख़रीदा जाता है, फिर देश की रिफाइनरियों में पहुँचता है और फिर यहाँ से पेट्रोल पंपों पर पहुँचता है. अमूमन जिस क़ीमत पर हम तेल ख़रीदते हैं, उसमें 50 फ़ीसदी से अधिक टैक्स होता है.दरअसल, डीलर्स को तो पेट्रोल और डीज़ल बहुत कम क़ीमतों पर मिलता है, लेकिन केंद्र सरकार के टैक्स सेंट्रल एक्साइज़, राज्यों के वैट और डीलर कमीशन के बाद जब ये उपभोक्ताओं को मिलता है, इसकी क़ीमत दोगुनी से अधिक हो चुकी होती है.यानी पेट्रोल-डीज़ल की खुदरा क़ीमत में कच्चे तेल का दाम, रिफ़ाइनरी की कॉस्ट, मार्केटिंग कंपनियों का मार्जिन और सरकारों का एक्साइजड और वैल्यू ऐडेड टैक्स (वैट) शामिल होता है.

एक्साइज़ ड्यूटी वो टैक्स है, जिसे कंपनियां देश में बनी चीज़ों पर सरकार को देती हैं. वहीं, वैट वो टैक्स है, जो उत्पादन के अलग-अलग चरण पर चुकाना होता है.एक्साइज़ ड्यूटी केंद्र सरकार के पास जाती है और वैट राज्य सरकारें लेती हैं. दोनों ही टैक्स, सरकारों के लिए रेवेन्यू का बड़ा ज़रिया हैं.जब कच्चे तेल के दाम कम हों लेकिन टैक्स अधिक हों तो इसकी खुदरा क़ीमत का ज़्यादा होना तय है.अभी भारत में यही हो रहा है. सीधे शब्दों में कहें तो पेट्रोल और डीज़ल के लिए हम जो क़ीमत चुकाते हैं उसमें 70 फ़ीसदी के लगभग टैक्स होता है और कुछ नहीं.

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