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जातिगत गणना से बदल जायेगी बिहार की राजनीति.

आरक्षण की राजनीति होगी तेज, आरक्षण का दायरा बढाने की मांग को लेकर हो सकता है आन्दोलन.

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सिटी पोस्ट लाइव :बिहार में हो रही जातीय जन-गणना बिहार की सियासत की रुपरेखा बदल देगी.बड़े बड़े राजनीतिक क्षत्रपों की छुट्टी हो जायेगी और नये नए क्षत्रप पैदा हो जायेगें.जाति गणना से साफ हो सकेगा कि किस जाति की कितनी आबादी है. उसके बाद जिसकी जितनी आबादी उसकी उतनी हिस्सेदारी का गणित लागू करने की राजनीतिक लड़ाई तेज होगी. बिहार में पिछड़ी जातियों और अतिपिछड़ी जातियों की संख्या सर्वाधिक मानी जाती है इसलिए इसका फायदा भी इन्हें सर्वाधिक मिलने की संभावना है. सवर्णों को यह लग रहा है कि उनकी संख्या कम आंकी जाती रही है तो जाति गणना से उनकी ताकत बढ़ेगी और वे 10 फीसदी से ज्यादा आरक्षण की मांग तेज कर सकेंगे. ओबीसी को लग रहा है कि 27 फीसदी से ज्यादा आरक्षण उन्हें मिलेगा.

तेजस्वी यादव ने जाति जनगणना कराने की मांग करते हुए कहा था कि ओबीसी के 27 फीसदी आरक्षण को बढ़ाना चाहिए.जाहिर है जाति गणना का बड़ा असर बिहार की राजनीति पर पड़नेवाला है. बिहार में 2024 में लोक सभा और 2025 में विधान सभा का चुनाव होना है.। बिहार सरकार ने जाति आधारित गणना पूरा करने का लक्ष्य लक्ष्य 2022 तक ही रखा है. जाहिर है चुनाव के पहले यह पता चल जाएगा कि बिहार में किस जाति की संख्या कितनी है? उसके बाद आरक्षण का दायरा बढ़ाने की मांग तेज होन तय है.

जाति गणना से जाति गोलबंदी पर असर पड़ेगा. जाति गणना के परिणाम आने के बाद आरक्षण की राजनीति को ताकत मिलेगी.जो पार्टी जाति की राजनीति नहीं कर रही वह पार्टी भी प्रभावित होगी. कुढ़नी उपचुनाव में भाजपा ने अतिपिछड़ा और दलित वोट बैंक को साधा और चुनाव जीत कर दिखाया.आगामी चुनाव में सभी पार्टियां सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला अपनाएंगीं. जिसकी ज्यादा आबादी होगी उसकी तरफ राजनीतिक दलों का झुकाव बढेगा.

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