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कर्ज के सहारे आगे बढेगा बिहार, जानिये कितना हाल-बेहाल.

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सिटी पोस्ट लाइव : बिहार अधिक कर्ज बोझ से दबे 10 राज्यों में शुमार है. 2022-23 में सूद चुकाने के लिए 16,305 करोड़ का प्रावधान है.राशि के अभाव में कई बार योजनाएं दम तोड़ जाती हैं.राज्य पर कर्ज 2021-22 के 2.59 लाख करोड़ की तुलना में 2022-23 में 2.86 लाख करोड़ होने जा रहा है. यह 10% का इजाफा है. राजस्व प्राप्ति लक्ष्य 2021-22 दिसंबर में 1.86 लाख करोड़ था, जो 2022-23 में 1.96 लाख करोड़ है.केंद्रीय करों में नवंबर तक 31% ही हिस्सेदारी मिली, अपना राजस्व भी 45% ही हासिल हुआ, और सरकार के सामने है दो चुनावी सालों में जनता की उम्मीदें पूरी करने की चुनौती.

 

रिजर्व बैंक से अगले दो महीनों में 19,043.75 करोड़ रुपए ऋण लेने की तैयारी है.खजाने की स्थिति ऐसी है कि सरकार के पास फिलहाल कर्ज लेकर अर्थव्यवस्था को गति देने के अलावा, कोई दूसरा विकल्प भी नहीं है. राज्य सरकार की अभी तक की उधारी, वैध सीमा में है. चालू वित्तीय वर्ष में राज्य सरकार की उधारी सीमा 27,670 करोड़ है. कर्ज चुकाने को लेकर यह सीमा 42,285 करोड़ तक है.बढ़ते कर्ज से आम आदमी पर क्या असर होगा, अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं.- कुल आमदनी का 16 हजार करोड़ सालाना सूद चुकाने में लग जाते हैं. इससे इन्फ्रास्ट्रक्चर निर्माण, जनकल्याण के बड़े काम हो सकते थे.

 

केंद्रीय योजनाओं में खर्च का यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट समय पर नहीं भेज पाने के कारण भी केंद्र से पैसा मिलने में देरी होती है. इसका असर राज्य के खजाने पर भी पड़ता है. राज्य को केंद्रीय करों में हिस्सेदारी का बड़ा हिस्सा अंतिम तिमाही में मिलता है, जो समस्या को बढ़ा देता है. केंद्रीय करों में राज्य की हिस्सेदारी का जो अनुमान केंद्रीय बजट में होता है, केंद्र उसे भी अक्सर घटा देता है. इससे राज्य का बजट बिगड़ता है.

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