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मोदी सरकार के MSME कानूनों को नहीं मानती बिहार सरकार, पटना हाईकोर्ट ने मांगा जवाब

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सिटी पोस्ट लाइव : कोरोना संकट के दौर में केन्द्र की मोदी सरकार ने लघु, सूक्ष्म और मध्यम उद्योगों (MSME) को बढ़ावा देने के लिए लंबे-चौड़े पैकेज का एलान किया ताकि आत्मनिर्भर भारत की ओर तेजी से कदम बढ़ाया जा सके। लेकिन लगता है बिहार सरकार को मोदी सरकार के इस कानून से कोई लेना-देना नहीं है। बिहार सरकार का एक विभाग केन्द्र सरकार की योजना को पलीता लगाते दिख रहा है।

बिहार राज्य स्वास्थ्य समिति, एमएसएमई एक्ट 2006 और बिहार फाइनांस रुल 2005 को नहीं मानती । तभी तो नियमों का उल्लंघन करती दिख रही है। एमएसएमई के प्रावधानों के तहत किसी भी टेंडर में अग्रधन लेने का अधिकार किसी संस्था को नहीं दिया गया है लेकिन इसके विपरीत जाकर बिहार राज्य स्वास्थ्य समिति ने मुद्रण कार्यों के लिए जो निविदा निकाली उसमें इन प्रावधानों को गौण करते हुए अग्रधन की राशि 50 लाख तय कर दी और आनन-फानन में टेंडर दे दिया गया।

अब बिहार राज्य स्वास्थ्य समिति के इस फैसले के खिलाफ अपने लोगों को टेंडर देने का आरोप लगाते हुए बिहार ऑफसेट प्रिंटर्स एसोसिएशन हाईकोर्ट पहुंच गया है। हाईकोर्ट में शुक्रवार को इस मामले की सुनवाई हुई है। एसोसिएशन की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता पीके शाही और विकास कुमार ने दलीलें दी हैं। वहीं सरकार की तरफ से एएजी-7 योगेन्द्र प्रसाद सिन्हा और जबाबकर्ताओं की तरफ से सीनियर वकील वाईवी गिरी और अन्य अधिवक्ताओं के अपना पक्ष रखा। कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई करते हुए बिहार सरकार के वित्त विभाग के प्रधान सचिव से इस मामले में 22 सिंतबर तक जवाब मांगा है।

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