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तेजस्वी यादव के लिए अग्नि परीक्षा से कम नहीं है विधान सभा चुनाव.

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सिटी पोस्ट लाइव : लालू प्रसाद की अनुपस्थिति में RJD पहलीबार बिहार में विधानसभा का चुनाव लड़ने जा रही है.ये चुनाव तेजस्वी यादव के लिए किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं.यहीं चुनाव उनका राजनीतिक भविष्य तय करेगा.तेजस्वी यादव पिछले दो महीने से एक नए अवतार में नजर आ रहे हैं.वो लगातार सक्रीय हैं .सरकार की लगातार घेराबंदी करने में जुटे हैं.अपनी पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ मिलने लगे हैं.बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों का दौरा करने लगे हैं.कोरोना के संक्रमण को लेकर सरकार की बिफलाता उजागर करने में कोई कोर कसर  नहीं छोड़ रहे.

तेजस्वी यादव के घर परिवार से लेकर कई सुरक्षाकर्मी तक संक्रमित हो चुके हैं.लेकिन संक्रमण से बेपरवाह होकर वो दिन-रात आम लोगों से मिल रहे हैं. पार्टी नेताओं के साथ बैठकें कर रहे हैं.बाढ़ पीड़ितों के बीच जा रहे हैं.उनके बीच खाना और पैसा बाँट रहे हैं. सरकार पर हमला का कोई भी अवसर नहीं छोड़ रहे हैं.पार्टी के जमीनी कार्यकर्ताओं में रोष भरने के लिए वो जो कुछ कर सकते हैं, कर रहे हैं.दरअसल, उन्हें भी अब इस बात का अहसाश हो चूका है कि चुनाव समय पर ही होगा.ये चुनाव ही उनकी पार्टी का और उनका भविष्य तय करेगा.जीत गए तो बिहार में वो एक विकल्प के रूप में उभरेगें और उखड़ गए तो दोबारा पांव जमाना आसान नहीं होगा.

2019 के लोकसभा चुनाव की तुलना में 2020 के विधानसभा चुनाव को लेकर  तेजस्वी यादव ज्यादा मेहनत करते नजर आ रहे हैं.उन्होंने पार्टी वर्चुअल बैठक में कहा कि चुनाव में समय कम है और काम ज्यादा है. ऐसे में हमें अपने को सप्ताह भर के अंदर ढीले पड़े कल-पुर्जे को दुरुस्त कर लेना होगा और चुनाव मैदान में उतर जाना होगा. इसमे शक की कोई गुंजाइश नहीं है कि उनकी  पार्टी का आईटी सेल बीजेपी और जेडीयू का मुकाबला नहीं करसकता .लेकिन ये भी सच है कि तेजस्वी यादव खुद सोशल मीडिया पर बहुत ज्यादा सक्रीय हैं.उनके लाखों फोल्लोवेर्स हैं.लेकिन अकेले एक्टिव होने से काम नहीं चलनेवाला.इसलिए तेजस्वी यादव 8000 से ज्यादा पंचायतों में पार्टी के  सांगठनिक ढांचा को वो सक्रिय करने में लगे हुए हैं.वो अपने इसी नेटवर्क के जरिये सरकार के 15 सालों की विफलताओं को लेकर जनता के बीच जाकर ये बताने की योजना पर काम कर रहे हैं कि कैसे 15 सालों में बिहार का बंटाधार हुआ है.

तेजस्वी यादव भ्रष्टाचार, अपराध के साथ-साथ कोरोना और बाढ़ को सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा बनाना चाहते हैं.कोरोना काल में मजदूरों के पीड़ादायक वीडियो और कोरोना काल में संक्रमित मरीजों के इलाज का वीडियो लोगों के बीच ज्यादा से ज्यादा वायरल करने की योजना बना रहे हैं  ताकि लड़ाई आसान हो जाए. इसके लिए पार्टी ने अपने जिला स्तरीय कमेटी को तकनीक से लैस कर लिया है.

पार्टी के जिला से प्रखंड तक के सभी पदाधिकारी को सोशल मीडिया पर सक्रिय रहने को कहा गया है. जिले से लेकर प्रखंड तक के कार्यकर्ताओं को  वाट्सएप ग्रुप बनवाया गया है. ताकि राज्य स्तरीय प्रवक्ताओं द्वारा पार्टी अध्यक्ष व वरिष्ठ नेताओं द्वारा किसी मुद्दे पर रखने जाने वाले विचारों को तुरंत आगे फारवर्ड किया जा सके. इससे पार्टी प्रवक्ताओं के बीच विचारों को लेकर कोई भिन्नता नहीं रहेगी.

पांच दलों के महागठबंधन के बाद भी तेजस्वी यादव  को यह पता है कि मैदान में उन्हें अकेले ही लड़ना है और सबको साथ लेकर चलना भी है. टीम के साथ रहने से बहुत लाभ नहीं है, लेकिन टीम टूट गई तो एनडीए मजबूत जरूर हो जाएगा. यही कारण है कि तेजस्वी को इसके लिए दो मोर्चे पर एकसाथ लड़ना पड़ रहा है. पहला बीजेपी –जेडीयू की संयुक्त ताकत और आम लोगों के बीच नीतीश कुमार का इमेज और दूसरा महागठबंधन में सहयोगी दलों की महत्वाकांक्षा. तेजस्वी जानते हैं कि एनडीए के तकनीकी सेल के आगे टिकना कठिन है, इसलिए महागठबंधन में सीटों को लेकर उछल-कूद करने वाले साथियों को साफ कर दिया है कि  बिहार में वहीँ  लीड की भूमिका में रहेगें  और सीटों का बंटवारा भी महागठबंधन में हैसियत के अनुसार किया जाएगा.इसमे शक की कोई गुंजाइश नहीं कि महागठबंधन में सबसे ज्यादा बड़ा जनाधार RJD के पास है और उसका फायदा सबसे ज्यादा उनके सहयोगी दलों को मिलता है.सहयोगी दल अपना वोट कितना महागठबंधन में ट्रान्सफर करा पायेगें, ये लोक सभा चुनाव में तेजस्वी यादव समझ चुके हैं.

जाहिर है महागठबंधन में RJD  लीड भूमिका में रहेगी. कांग्रेस दूसरे स्थान पर और अन्य दलों को उनकी हैसियत के अनुसार टिकट दिए जाएंगे. तेजस्वी के इस स्टैंड को लेकर शुरू में सहयोगी दलों ने पैतरा तो लिया लेकिन अब वो रास्ते पर आ चुके हैं.तेजस्वी यादव बस एक ब्रह्मास्त्र की खोज में हैं.वो ब्रह्मास्त्र कोई और नहीं बल्कि चिराग पासवान हैं.वो चिराग पासवान को साथ लाने में जुटे हुए हैं.अगर वो चिराग पासवान को अपने साथ लाने में कामयाब रहे तो किसी कोज्यदा आश्चर्य नहीं होगा क्योंकि चिराग तो पिछले दो महीने से नीतीश कुमार के खिलाफ ओरछा खोले हुए हैं.

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