सुप्रीम कोर्ट ने 1984 सिख दंगों के 9 दोषियों को किया बरी, 3000 से ज़्यादा हुई थी मौतें
सिटी पोस्ट लाइव- इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भड़की हिंसा में मारे गये सिखों के 9 दोषियों को सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को बरी कर दिया. आपको बता दें कि 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों में इन लोगों पर पूर्वी दिल्ली के त्रिलोकपुरी इलाके में दंगा भड़काने का दोषी पाया गया था. इस दंगे में सबसे अधिक दिल्ली के सिख प्रभावित हुए थें. बता दें कि भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके ही सुरक्षाकर्मियों द्वारा हत्या कर दिए जाने के बाद देश भर में सिख विरोधी दंगा भड़क गया था. इस दंगे की चपेट में सबसे ज्यादा दिल्ली के सिख आए थे.
मालूम हो कि पिछले साल नवंबर में दिल्ली हाईकोर्ट ने दोषियों के खिलाफ दिए गए फैसले को बरकरार रखा था. इसके बाद दोषियों ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि इनलोगों के खिलाफ कोई साक्ष्य नहीं है और गवाह भी इन्हें प्रत्यक्ष तौर पर पहचान नहीं रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट से मंगलवार को बरी हुए लोगों में गनशेनन, वेद प्रकाश, ताराचंद, सुरेंद्र सिंह (कल्याणपुरी), हबीब, राम शिरोमणि, ब्रह्म सिंह, सुब्बर सिंह और सुरेंद्र मूर्ति शामिल हैं.
1984 के सिख विरोधी दंगे भारतीय सिखों के ख़िलाफ़ थे. इन दंगों में 3000 से ज़्यादा मौतें हुई थी. सीबीआई की राय में ये सभी हिंसक कृत्य दिल्ली पुलिस के अधिकारियों और इंदिरा गांधी के बेटे राजीव गांधी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के सहमति से आयोजित किये गए थे. राजीव गाँधी जिन्होंने अपनी माँ की मौत के बाद प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली थी और जो कांग्रेस के एक सदस्य भी थे, उनसे दंगों के बारे में पूछे जाने पर, उन्होंने कहा था, “जब एक बड़ा पेड़ गिरता है, तब पृथ्वी भी हिलती है”.
आपको बता दें कि इन दंगो का मुख्य कारण स्वर्ण मंदिर पर सिक्खो का घेराव करना था. सिक्खो की मांग ख़ालिस्तान नाम का एक अलग देश बनाने की थी जहाँ केवल सिख और सरदार ही रहेंगे. परन्तु कांग्रेस सरकार इस के लिए तैयार नहीं थी. सिख कई चेतावनियों के बाद भी मंदिर को नहीं छोड़ रहे थे इसी के चलते इंदिरा गांधी ने स्वर्ण मंदिर पर से सिक्खों को हटाने के लिए मिलिट्री की सहायता ली वहाँ हुई मुठभेड़ में बहुत से सिख मारे गए. इस मामले में 17 दिसम्बर 2018 को सर्वोच्च न्यायालय ने फ़ैसला सुनाया जिसमें सज्जन कुमार (प्रमुख आरोपी) को उम्रक़ैद और अन्य आरोपियों को 10-10 साल की सज़ा सुनाई गयी थी.
जे.पी.चंद्रा की रिपोर्ट
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