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राफेल डील किस चिड़िया का नाम है, क्या है इससे जुड़ा विवाद, आप ऐसे समझिए

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राफेल डील किस चिड़िया का नाम है, क्या है इससे जुड़ा विवाद, आप ऐसे समझिए

राफेल डील को लेकर पिछले कई महीनों से देश में हंगामा मचा हुआ है. राफेल विमान फ्रांस की विमानन कंपनी दसॉल्ट एविएशन द्वारा बनाया गया 2 इंजन वाला लड़ाकू विमान . राफेल एक बहुत ही उपयोगी लड़ाकू विमान है.इसके एक विमान को बनाने में 70 मिलियन की लागत आती है. इस विमान की लंबाई 15.27 मीटर होती है और इसमें एक या दो पायलट ही बैठ सकते हैं.इस विमान की खासियत है कि यह ऊंचे इलाकों में भी लड़ने में माहिर है. राफेल एक मिनट में 60 हजार फुट की ऊंचाई तक जा सकता है. यह अधिकतम 24,500 किलोग्राम का भार उठाकर उड़ने में सक्षम है. इसकी अधिकतम रफ्तार 2200 से 2500 किमी. प्रतिघंटा है और इसकी रेंज 3700 किलोमीटर है.

फ़्रांस के साथ इसी राफेल डील को लेकर अपने देश में हंगामा मचा है. सरकार पर आरोप है कि उसने ज्यादा कीमत पर यह डील रिलायंस डिफेन्स को फायदा पहुंचाने के लिए किया है.लेकिन भारत सरकार का कहना है  कि रिलायंस डिफेंस के साथ फ्रांसीसी विमानन कंपनी दसॉल्ट एविएशन के काम करने के फैसले से उसका कोई लेना-देना नहीं है.लेकिन अब फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांक्वा ओलांद ने दावा किया है कि अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस डिफेंस का नाम भारत सरकार ने ही प्रस्तावित किया था. उनके राष्ट्रपति रहने के दौरान ही इस पर सहमति भी बन गई थी.

ओलांद ने कहा है कि अनिल अंबानी की रिलायंस डिफेंस को इस सौदे में शामिल करने में हमारी कोई भूमिका नहीं थी. भारत सरकार ने इस कंपनी का नाम प्रस्तावित किया और दसॉल्ट ने अंबानी से समझौता किया. फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद का यह एक ऐसा बयान है जो राफेल मामले में सरकार को नए सिरे से कटघरे में खड़ा करती है. अप्रैल 2015 में प्रधानमंत्री मोदी फ्रांस की यात्रा पर गए थे तब फ्रांस्वा ओलांद ही राष्ट्रपति थे. उन्हीं के साथ राफेल विमान का करार हुआ था.

जुले गाइये फ्रांस्वां ओलांद की गर्लफ्रैंड रही हैं. इस गर्लफ्रैंड की फिल्म में भारतीय कंपनी के निवेश के तार भी राफेल डील से जोड़े जा रहे हैं. यह पहली बार है जब अनिल अंबानी ग्रुप को लेकर गंभीर बयान आया है. अब भारत सरकार को इस सवाल का जवाब देना होगा कि अंबानी का नाम किसकी तरफ से फ्रांस सरकार को भेजा गया. किस स्तर पर भेजा गया. इसके पहले क्या इस डील के बनी कई कमेटियों में चर्चा हुई थी. क्या रक्षा मामलों के कैबिनेट कमिटी में अंबानी की फ्रांस्वा ओलांद का यह बयान साधारण नहीं है.

राफेल डील के 16 दिन पहले राफेल बनाने वाली डास्सो एविएशन के सीईओ का बयान आता है कि हिन्दुस्तान एयरोनोटिक्स लिमिटेड से बात हो रही है. मार्च 2014 के बीच दोनों के बीच करार हुआ था कि भारत में 108 लड़ाकू विमान बनेगा और 70 फीसदी काम एचएएल को मिलेगा. लेकिन इस डील से दो दिन पहले हिन्दुस्तान एयरोनोटिक्स लिमिटेड का नाम गायब हो गया. राहुल गांधी का कहना है कि क्रोनी कैपटलिस्ट को लाभ पहुंचाने के लिए एचएएल को डील से हटा दिया गया. रिलायंस डिफेंस डील के भीतर ला दी गई. प्रधानमंत्री मोदी के भारत दौरे से पहले विदेश सचिव ने कहा था कि राफेल को लेकर फ्रेंच कंपनी, हमारा रक्षा मंत्रालय और हिन्दुस्तान एयरोनोटिक्स लिमिटेड के बीच चर्चा चल रही है. ये सभी टेक्निकल और डिटेल चर्चा है.

यानी 10 अप्रैल 2015 को डील होती है. उसके दो दिन पहले 8 अप्रैल को विदेश सचिव के अनुसार एचएएल डील में शामिल है. उसके 14 दिन पहले डास्सो एविएशन के बयान के अनुसार सरकारी कंपनी एचएएल डील में शामिल है. अब यहां सवाल आता है कि रिलायंस डिफेंस की एंट्री कब और कैसे हो गई?  किसके इशारे पर हुई?  राहुल गांधी इसी को लेकर लगातार आरोप लगा रहे हैं. जिसके कारण अनिल अंबानी की कंपनी ने कांग्रेस पार्टी पर मानहानि का दावा भी किया है. लेकिन अब पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने यह बयान देकर भारत सरकार ने रिलायंस के नाम का प्रस्ताव दिया था, मामले को और टूल दे दिया है और इस डील को संदेह के घेरे में लाकर खड़ा कर दिया है.

फ्रांस्वा ओलांद का बयान इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि डील उन्हीं के वक्त हुई थी जब वे राष्ट्रपति थे. उनका कहना है कि हमारे पास पार्टनर चुनने का कोई विकल्प नहीं था. भारत की सरकार ने ही रिलायंस को प्रस्तावित किया. डास्सो ने अंबानी के साथ समझौता किया. हमारे पास कोई चारा नहीं था.

राफेल डील का विवाद दो सवालों को लेकर महत्वपूर्ण है. एक कि एक राफेल विमान कितने का है. कांग्रेस का आरोप है कि यूपीए के समय की तुलना में मोदी सरकार ने 1000 करोड़ ज्यादा देकर खरीदा है ताकि किसी खास उद्योगपति को फायदा पहुंचाया जा सके. दूसरा विवाद है कि खास उद्योगपति को फायदा पहुंचाने के पहले डील से कुछ हफ्ते पहले एक नई कंपनी बनाई जाती है. नई कंपनी का विमान निर्माण के संबंध में कोई अनुभव नहीं है. जिस हिन्दुस्तान एरोनोटिक्स लिमिटेड ने सुखोई 30 जैसे विमान बनाए हैं उसे डील से बाहर कर दिया जाता है.

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