सिटी पोस्ट लाइव : भगवान विष्णु संसार के पालनकर्ता हैं। संसार में धर्म की स्थापना व अधर्म के नाश के लिए भगवान विष्णु ने कई अवतार लिए। इनमें से कुछ अंशावतार थे तो कुछ पूर्णावतार। द्वापर युग में भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में आठवां अवतार लिया। श्रीकृष्ण का जन्म भादौ मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रोहणी नक्षत्र में हुआ था ,जिसे हिन्दू धर्म के लोग श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मानते हैं। ये त्यौहार श्री हरि विष्णु के आठवें अवतार श्रीकृष्ण का जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। हर वर्ष इस तिथि को दुनिया भर में भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव धूम-धाम व सम्पूर्ण आस्था के साथ मनाया जाता है। इस बार यह पर्व 11अगस्त, मंगलवार स्मार्त के लिए एवं 12 अगस्त बुधवार वैष्णवो के लिए है।
श्रीकृष्ण का पूरा जीवन हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत है। इनके जीवन चरित्र से हमें जीवन के कई अनमोल सूत्र मिलते हैं, जो वर्तमान समय के लिए बेहद जरुरी है। इन्हीं सूत्रों को अपने जीवन से जोड़कर हम भी कामयाबी पा सकते हैं। इसके लिए आपको अपने जीवन में श्रीकृष्ण को उतारना होगा। केवल श्रीकृष्ण के आवरण को ही नहीं उनके आचरण को भी समझना होगा। भगवान श्रीकृष्ण की आराधना सबसे सरल और सीधी मानी गई है, जो शीघ्रफल देती है। श्रीकृष्ण कर्मकांड, जीवन में सफलता के सूत्र से लेकर तंत्र तक हर विधा में उच्च फल देते हैं।
भगवान श्री कृष्ण के जन्म को लेकर लोककथा है की ‘द्वापर युग में भोजवंशी राजा उग्रसेन मथुरा में राज्य करता था। उसके आततायी पुत्र कंस ने उसे गद्दी से उतार दिया और स्वयं मथुरा का राजा बन बैठा। कंस की एक बहन देवकी थी, जिसका विवाह वसुदेव नामक यदुवंशी सरदार से हुआ था। एक समय कंस अपनी बहन देवकी को उसकी ससुराल पहुंचाने जा रहा था।रास्ते में आकाशवाणी हुई- ‘हे कंस, जिस देवकी को तू बड़े प्रेम से ले जा रहा है, उसी में तेरा काल बसता है। इसी के गर्भ से उत्पन्न आठवां बालक तेरा वध करेगा।’ यह सुनकर कंस वसुदेव को मारने के लिए उद्यत हुआ।तब देवकी ने उससे विनयपूर्वक कहा- ‘मेरे गर्भ से जो संतान होगी, उसे मैं तुम्हारे सामने ला दूंगी। बहनोई को मारने से क्या लाभ है?’कंस ने देवकी की बात मान ली और मथुरा वापस चला आया। उसने वसुदेव और देवकी को कारागृह में डाल दिया।
वसुदेव-देवकी के एक-एक करके सात बच्चे हुए और सातों को जन्म लेते ही कंस ने मार डाला। अब आठवां बच्चा होने वाला था। कारागार में उन पर कड़े पहरे बैठा दिए गए। उसी समय नंद की पत्नी यशोदा को भी बच्चा होने वाला था।उन्होंने वसुदेव-देवकी के दुखी जीवन को देख आठवें बच्चे की रक्षा का उपाय रचा। जिस समय वसुदेव-देवकी को पुत्र पैदा हुआ, उसी समय संयोग से यशोदा के गर्भ से एक कन्या का जन्म हुआ, जो और कुछ नहीं सिर्फ ‘माया’ थी। जिस कोठरी में देवकी-वसुदेव कैद थे, उसमें अचानक प्रकाश हुआ और उनके सामने शंख, चक्र, गदा, पद्म धारण किए चतुर्भुज भगवान प्रकट हुए। दोनों भगवान के चरणों में गिर पड़े। तब भगवान ने उनसे कहा- ‘अब मैं पुनः नवजात शिशु का रूप धारण कर लेता हूं।
तुम मुझे इसी समय अपने मित्र नंदजी के घर वृंदावन में भेज आओ और उनके यहां जो कन्या जन्मी है, उसे लाकर कंस के हवाले कर दो। इस समय वातावरण अनुकूल नहीं है। फिर भी तुम चिंता न करो। जागते हुए पहरेदार सो जाएंगे, कारागृह के फाटक अपने आप खुल जाएंगे और उफनती अथाह यमुना तुमको पार जाने का मार्ग दे देगी।’उसी समय वसुदेव नवजात शिशु-रूप श्रीकृष्ण को सूप में रखकर कारागृह से निकल पड़े और अथाह यमुना को पार कर नंदजी के घर पहुंचे। वहां उन्होंने नवजात शिशु को यशोदा के साथ सुला दिया और कन्या को लेकर मथुरा आ गए। कारागृह के फाटक पूर्ववत बंद हो गए।अब कंस को सूचना मिली कि वसुदेव-देवकी को बच्चा पैदा हुआ है।उसने बंदीगृह में जाकर देवकी के हाथ से नवजात कन्या को छीनकर पृथ्वी पर पटक देना चाहा, परंतु वह कन्या आकाश में उड़ गई और वहां से कहा- ‘अरे मूर्ख, मुझे मारने से क्या होगा? तुझे मारनेवाला तो वृंदावन में जा पहुंचा है। वह जल्द ही तुझे तेरे पापों का दंड देगा।’ यह है कृष्ण जन्म की कथा।
क्यो मनाई जाती है दो दिन श्री कृष्ण का जन्मोत्सव :
जन्माष्टमी का त्यौहार दो दिन मनाया जाता है। इस बार भी 11-12 अगस्त को जन्माष्टमी मनाई जाएगी। साधु-संन्यासी, शैव संप्रदाय मंगलवार यानी 11 अगस्त को, जबकि वैष्णव संप्रदाय के मंदिरों में बुधवार यानी 12 अगस्त को जन्माष्टमी मनाई जाएगी। ऐसा माना जाता है कि पहले दिन साधु-संन्यासी, शैव संप्रदाय हर वर्ष जन्माष्टमी मनाते हैं, जबकि दूसरे दिन वैष्णव संप्रदाय और बृजवासी इस त्यौहार को मनाते हैं।कुछ लोगों के लिए अष्टमी तिथि का महत्व सबसे ज्यादा है, वहीं कुछ लोग रोहिणी नक्षत्र होने पर ही जन्माष्टमी का पर्व मनाते हैं। इस कारण से इस बार भी जन्माष्टमी दो दिन मनाई जाएगी। क्योंकि 11 अगस्त को अष्टमी तिथि है, लेकिन रोहिणी नक्षत्र 12/13 अगस्त को हैं।
क्यों हैं इन दो दिनों को लेकर उलझन :
इस बार जन्माष्टमी 2020 की तारीखो को लेकर कई मत हैं। जिनमें से कुछ विद्वानों का कहना है कि जन्माष्टमी 11 अगस्त, मंगलवार की है। जबकि अन्य बुद्धिजीवियों का मत है कि जन्माष्टमी 12 अगस्त को है। हालांकि, 12 अगस्त को जन्माष्टमी मनाना श्रेष्ठ है। मथुरा और द्वारका में 12 अगस्त को भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाएगा।दरअसल ये मत स्मार्त और वैष्णवों के विभिन्न मत होने के कारण तिथियां अलग-अलग बताई जा रही हैं। कृष्ण भक्त दो प्रकार के होते हैं – स्मार्त और वैष्णव। वैष्णव भक्तों में वह भक्त हैं जो भगवान विष्णु को ही परमेश्वर मानते हुवे गृहस्थ जीवन में रहते हुए जिस प्रकार अन्य देवी- देवताओं का पूजन, व्रत स्मरण करते हैं ,उसी प्रकार भगवान श्रीकृष्ण का भी पूजन करते हैं।जबकि स्मार्त स्मार्त जो परमेश्वर के विभिन्न रूपों को एक ही समान मानते हैं। अंत में वे लोग जो ब्रह्म को निराकार रूप जानकर उसे ही सर्वोपरि मानते हैं। जिन्होंने अपना जीवन भगवान श्रीकृष्ण को अर्पित कर दिया है। स्मार्त श्रीकृष्ण का पूजन भगवद्प्राप्ति के लिए करते हैं।
स्मार्त भक्तों का मानना है कि जिस दिन तिथि है उसी दिन जन्माष्टमी मनानी चाहिए। स्मार्तों के मुताबिक अष्टमी 11 अगस्त को है। जबकि वैष्णव भक्तों का कहना है कि जिस तिथि से सूर्योंदय होता है पूरा दिन वही तिथि होती है। इस अनुसार अष्टमी तिथि में सूर्योदय 12 अगस्त को होगा। मथुरा और द्वारका में 12 अगस्त को जन्माष्टमी मनाई जाएगी। जबकि उज्जैन, जगन्नाथ पुरी और काशी में 11 अगस्त को जन्मोंउत्सव मनाया जाएगा। जन्माष्ठमी के दिन लोग व्रत रखते है और कन्हैया के जन्म की खुशियां मनाई जाती हैं। जगह जगह कृष्ण भक्त भगवान कृष्ण की बाल रूप प्रतिमा एवं डोल रखी जाती है। भक्त मध्यरात्रि में कन्हैया का श्रृंगार करते हैं, उन्हें भोग लगाते हैं और पूजा-अर्चना करते हैं। इसके बाद श्री कृष्ण के जन्म की कथा सुनी जाती है। कथा सुनने के ततपश्चात बाल रूपी श्रीकृष्ण की आरती उतारी जाती है उसके उपरांत व्रती एवं भक्त भोग लगे प्रसाद को ग्रहण करके सुबह में व्रत पारण करते है। हालांकि इस वर्ष कोरोना काल मे धार्मिक आयोजन की मनाही है। इस लिए सिटी पोस्ट लाइव आप सभी कृष्ण भक्तों से निवेदन करता है कि
कोरोना काल मे जन्माष्टमी का त्योहार अपने घरों में ही परिवार के साथ मनाये ।किसी भी चौक चौराहा एवं गली मोहल्लों में प्रतिमा न रखे । भीड़ भाड़ वाले आयोजन न करे। सुरक्षित रहे ओरो को भी सुरक्षित रखे।
कृष्ण जन्माष्टमी का शुभ मुहूर्त व मंत्र :
अष्टमी तिथि प्रारम्भ – अगस्त 11, 2020 को 09:06 AM बजे
अष्टमी तिथि समाप्त – अगस्त 12, 2020 को 11:16 AM बजे
रोहिणी नक्षत्र प्रारम्भ – अगस्त 13, 2020 को 03:27 AM बजे
रोहिणी नक्षत्र समाप्त – अगस्त 14, 2020 को 05:22 AM बजे
जन्माष्टमी के दिन कृं कृष्णाय नम: मंत्र का 108 बार जाप करने से भगवान श्रीकृष्ण प्रसन्न होते हैं।
विकाश चन्दन की रिपोर्ट
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