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उपेन्द्र कुशवाहा चले नीतीश की शरण में ! JDU को होगा ये फायदा

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सिटी पोस्ट लाइव : कभी जेडीयू के साथ राजनीतिक पारी की शुरुआत करने वाले आरएलएसपी सुप्रीमो उपेंद्र कुशवाहा की हाल के दिनों में सीएम नीतीश कुमार के साथ हुई मुलाकात के बाद अटकलें लगनी शुरू हो गयी हैं। मिल रही खबरों के मुताबिक जेडीयू की तरफ से कुशवाहा की आरएलएसपी को विलय का ऑफर मिला है।

हालांकि उपेंद्र कुशवाहा फिलहाल किसी नये राजनीतिक समीकरण बनने की संभावना से इन्कार कर रहे हैं।इसके बावजूद चुनाव के दौरान बीएसपी और एआइएमआइएम के साथ गठबंधन कर सुर्खियों में आये आरएलएसपी अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा एक बार फिर चर्चा में हैं। विधानसभा चुनाव के दौरान उपेंद्र अपने गठबंधन में सीएम फेस बनाये गये थे।विधानसभा चुनाव में सीटों की संख्या में पीछे रह गये जेडीयू पिछड़ी जमात में अपनी राजनीतिक ताकत में इजाफा चाहता है। इधर, लोकसभा और विधानसभा चुनाव में अपेक्षित सफलता नहीं मिलने के बाद उपेंद्र कुशवाहा नयी रणनीति तैयार करने में जुटे हैं।

इस बार के विधानसभा चुनाव में जेडीयू को 2015 के चुनाव के मुकाबले 28 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा है। शाहाबाद के इलाके में, जहां कुशवाहा और बीएसपी की ताकत दिखी और सीमांचल के इलाके में जेडीयू पीछे रहा।राजनीतिक विश्लेषक इसके लिए एलजेपी की रणनीति को भी एक प्रमुख कारण मानते हैं। इसी सिलसिले में जेडीयू नये सिरे से वोट के लिहाज से मजबूत रहे कुशवाहा व मुस्लिम मतदाताओं के बीच अपनी पैठ बनाना चाहता है। इसके लिए उपेंद्र कुशवाहा एक मजबूत स्तंभ हो सकते हैं। जेडीयू की नजर आरजेडी के एक वरिष्ठ मुस्लिम चेहरे पर भी टिकी है।

दूसरी ओर राजनीति के जानकारों का कहना है कि उपेंद्र कुशवाहा को जेडीयू ने विधायक, विधानसभा में विपक्ष का नेता और राज्यसभा सदस्य बनने का अवसर दिया। उपेंद्र 2019 का लोकसभा चुनाव हार जाने के बाद विधानसभा चुनाव महागठबंधन के साथ मिलकर लड़ना चाहते थे।

लेकिन, सीएम पद के चेहरे समेत अन्य मुद्दों पर अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए उन्होंने महागठबंधन से अलग होने का निर्णय लिया था। साथ ही एआइएमआइएम, बीएसपी, समाजवादी दल डेमोक्रेटिक, जनतांत्रिक पार्टी सोशलिस्ट के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा। कुशवाहा, दलित और मुस्लिम गठजोड़ का भले ही लाभ उपेंद्र कुशवाहा को नहीं मिला, पर ओवैसी की पार्टी के पांच और बीएसपी के एक विधायक बने।

राज्य में लोकसभा, विधानसभा व राज्यसभा की सभी सीटें भर गयी हैं। सिर्फ विधान परिषद की 18 सीटें खाली हैं, जिनमें 12 मनोनयन कोटे की और दो विधानसभा कोटे की सीटें हैं। चार स्थानीय प्राधिकार कोटे की सीटें हैं, जिनके लिए अगले साल चुनाव होगा। जेडीयू ने इस चुनाव में 15 कुशवाहा उम्मीदवार उतारे थे, जिनमें पांच की जीत हुई।

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