जनता तन कर खड़ी हो जाये, क्योंकि लड़ाई बड़ी है : सुदेश
सिटी पोस्ट लाइव, रांची : आजसू सुप्रीमो सुदेश कुमार महतो ने कहा कि समय का तकाजा है कि अब जनता तन कर खड़ी हो जाये, क्योंकि लड़ाई बड़ी है। यही जनमत तैयार करने के लिए वे गांव-गिराव, खेत-पठार में निकले हैं। हम उस राज के तरफदार हैं जिसमें पंचायत जो तय करे उसे सरकार को करना होगा। सुदेश महतो सोमवार को स्वराज स्वाभिमान यात्रा के दैरान चक्रधरपुर पोटका, सोखा, साईं, बोरदा, चकरी, उलीडीह आदि गांवों में लगाई चौपाल में ये बातें कही। इससे पहले उन्होंने भगवान बिरसा मुंडा की मूर्ति पर माल्यार्पण कर पदयात्रा की शुरुआत की। महतो ने कहा कि वोट आता-जाता रहेगा, सरकारें आती-जाती रहेगी, नुमाइंदे चुने जाते रहेंगे, लेकिन सिस्टम बदलने की ताकत जनता अपने हाथ में नहीं ले सकी, तो गांव पंचायत की पीड़ा बढ़ती ही जाएगी। इसलिए अब निर्णायक लड़ाई की बारी है। यह तय करना होगा कि रांची से नहीं गांव से सरकार चलेगी। उन्होंने कहा कि स्वराज स्वाभिमान यात्रा का मकसद साफ है कि आम आदमी सिर्फ वोट देने का हिस्सेदार बन कर नहीं रहेगा, वह सिस्टम और राजनीति की चाल भी बदलेगा। उन्होंने कहा कि गांवों-कस्बों के लोगों से साझा संवाद में वही सालों पुरानी समस्या सामने आती है और आम लोगों का वही पुराना दर्द गहराता है कि एक अदद राशन कार्ड बन जाए, पेंशन मिल जाए, स्कूल में टीचर आ जाए, गांव की सड़क बन जाए और बेटा पढ़ गया है, तो अब उसे रोजगार मिल जाए। अब यह काम गांव की सरकार कर भी सकती है, लेकिन उसे पास करने की ताकत वही बीडीओ, सीओ, डीडीसी के पास है। दरअसल, व्यवस्था ने लोकसेवकों को कुर्सी का मालिक बना दिया है। आम आदमी अब ठान ले कि उनकी आवाज ये कुर्सियां हिलाकर रख देगी। अफसरों-राजनेताओं को गांव आना होगा। आमने-सामने बैठकर बात करनी होगी। गांवों की चौपाल में महिलाओं से सीधी बात उन्होंने कहा कि जनता की मर्जी के बिना योजनाएं तय होती है और करोड़ों खर्च के बाद भी वे पूरी नहीं होती और फाइल में पूरी हो गई, तो उसका सही लाभ लोगों को नहीं मिलता। झारखंड में महिलाएं घरों और देहरी से बाहर निकल गई हैं, लेकिन उनकी हाथों को काम नहीं है। जब वे ग्रामीण विकास मंत्री थे, तो स्वंय सहायता समूह का गठन, समूह की ट्रेनिंग, और गांव-घर में ही रोजगार उपलब्ध कराना उनका सपना था। लेकिन महिलाएं चाहकर भी तरक्की की राह पर तेजी से नहीं चल पा रही। उन्होंने कहा कि अफसर और नेता, सरकार के जिम्मेदार गांव आने-जाने लगें, पंचायत के साथ बैठकर मौके पर फैसला करें, तो ये सूरत बदली जा सकती है। इस सरकार ने अनाप-शनाप काम में करोड़ों खर्च कर दिए और मानदेय पर काम कर रहे कम से कम एक लाख युवा, पुरुष, महिला हताश-निराश दिखाई पड़ते़े हैं। मानव संसाधन के ह्रास करने का कोई बड़ा उदाहरण अगर गिना जाएगा, तो अफसोस है कि उसमें झारखंड भी शामिल होगा। इसलिए जनता के बीच से आवाज उठनी चाहिए कि वोट हमारा, फैसला तुम्हारा नहीं चलेगा। कार्यक्रम में डॉ देवशरण भगत, रामलाल मुंडा, बिरसा मुंडा, अनिता मुंडा, सिद्धार्थ महतो, नन्दलाल बिरूआ आदि शामिल थे।
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