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सवर्णों के आरक्षण के खिलाफ में मुखर हुए श्याम रजक, बोले- हर विभाग में है दलितों की कमी

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सिटी पोस्ट लाइव :सवर्णों को आरक्षण देने का मामला एकबार फिर से गरमा गया है. सवर्णों को आर्थिक आधार पर आरक्षण देने की मांग को लेकर राजनीतिक दलों के बीच घमशान मचा हुआ है.केंद्र सरकार विपक्ष के निशाने पर तो है ही साथ ही एनडीए के घटक दल के कुछ नेता भी इस मसाले पर खुलकर सामने आने लगे हैं. एनडीए के घटक दल जेडीयू के राष्ट्रीय महासचिव श्याम रजक ने अब सवर्ण आरक्षण का विरोध कर एक नया राजनीतिक विवाद पैदा कर दिया है. श्याम रजक ने सवर्ण के लिए आर्थिक आधार पर आरक्षण की मांग करनेवाले एनडीए नेताओं को आईना दिखाना शुरू कर दिया है. श्याम रजक ने कहा कि देश के हर विभाग में दलितों की कमी है. यदि कोटे के अनुसार दलित समाज के लोग नहीं भरे जाते हैं तो यह बाबा साहेब का अपमान है.

श्याम रजक ने कहा कि उनका मकसद किसी का अपमान करना नहीं है, परंतु यही सत्य है और सत्य से सबको रूबरू कराना उनका  नागरिक कर्तव्य है. उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि अगर इस सत्य से किसी बंधु को पीड़ा होती है तो उन्हें कोई परवाह नहीं .सच्चाई से अवगत कराना मेरा दायित्व है. मैं देख रहा हूं कि मुझे व मेरे मां-बाप को अपमानित व अपशब्दों की वर्षा की जा रही है. वे लोग बाबा साहेब को भी गाली देने से नहीं थकते. उनकी प्रतिमा को क्षतिग्रस्त करना अपना अभिमान समझते हैं. फिर मैं तो एक तुच्छ हूं. लेकिन मुझे इसकी कोई दुःख व पीड़ा नहीं.

श्याम रजक ने आंकड़ों की बाजीगरी दिखाते हुए कहा कि देश के उच्च सरकारी पदों पर भी दलित प्रतिनिधित्व की भारी कमी है. केंद्रीय मंत्रालयों में अवर सचिव से लेकर सचिव व निदेशक स्तर के 747 अफसरों में महज 60 अफसर एससी और 24 अफसर एसटी समाज के हैं. यानी उच्च सरकारी पदों पर दलितों का प्रतिनिधित्व महज 15 परसेंट है, जबकि सामान्य वर्ग से करीब 85 परसेंट अफसर इन पदों पर कार्यरत हैं. इसी तरह केंद्र सरकार में सचिव रैंक के 81 अधिकारी हैं, जिसमें केवल 2 अनुसूचित जाति और 3 अनुसूचित जनजाति के हैं. 70 अपर सचिवों में केवल 4 अनुसूचित जाति के और 2 अनुसूचित जनजाति के हैं. वहीं 293 संयुक्त सचिवों में केवल 21 अनुसूचित जाति और 7 अनुसूचित जनजाति के हैं. निदेशक स्तर पर 299 अफसरों में 33 अनुसूचित जाति और 13 अनुसूचित जनजाति के अधिकारी हैं.

केंद सरकार की ग्रुप ए की नौकरियों मे अनुसूचित जाति की भागीदारी का प्रतिशत 12.06 है, पिछड़ा वर्ग की भागीदारी 8.37, जबकि सामान्य वर्ग की हिस्सेदारी 74.48 है. ग्रुप बी की नौकरियों मे अनुसूचित जाति की भागीदारी का प्रतिशत 15.73 है, पिछड़ा वर्ग की भागीदारी 10.01, जबकि सामान्य वर्ग की हिस्सेदारी 68.25 है. इसी तरह ग्रुप सी की नौकरियों में अनुसूचित जाति की भागीदारी का प्रतिशत 17.30 तथा पिछड़ा वर्ग की भागीदारी 17.31 है, जबकि सामान्य वर्ग की हिस्सेदारी 57.79 है. वहीं केंद सरकार के उपक्रमों की नौकरियों में अनुसूचित जाति की भागीदारी का परसेंट 18.14 है, पिछड़ा वर्ग की भागीदारी 28.53, जबकि सामान्य वर्ग की हिस्सेदारी 53.33 है.

श्याम रजक ने शिक्षा विभाग के आंकड़े पेश करते हुए कहा कि देश भर में कुल 496 कुलपति हैं. केवल 6 एससी, 6 एसटी और 36 ओबीसी कुलपति हैं. बाकी 448 कुलपति सामान्य वर्ग के हैं. यानी देश की 89 परसेंट आबादी (एससी, एसटी और ओबीसी) से 48 कुलपति और 11 परसेंट आबादी (सामान्य) से 448 कुलपति. वहीं बिहार में उच्‍च शिक्षा के क्षेत्र में भी महत्‍वपूर्ण पदों पर सामान्य वर्ग के लोगों का वर्चस्व है. राज्‍य के 18 विश्‍वविद्यालयों में पदस्थापित कुलपतियों में से 12 सामान्य हैं, जबकि सूबे में दलितों की कोई हिस्सेदारी नहीं है. श्याम रजक ने सवाल पूछा – यह कैसी बराबरी है?

श्याम रजक ने कहा कि न्यायपालिका में भी दलितों का प्रतिनिधित्व नहीं के बराबर है. भारत के पूर्व मुख्‍य न्‍यायाधीश केजी बालाकृष्णन के 11 मई, 2010 को सेवानिवृत्त के बाद अनुसूचित जाति के किसी भी जज को सुप्रीम कोर्ट का जज नहीं बनाया गया है. पिछले आठ साल में सुप्रीम कोर्ट में एक भी जज दलित समुदाय से नहीं बन पाया है. यहां तक कि पूरे देश के 24 हाई कोर्टों में भी दलित कोटे के चीफ जस्टिस नहीं हैं.श्याम रजक ने सवाल किया- आरक्षण की दरकार किसे है सवर्ण को या दलित को?

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