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मोदी के एजेंडे में सबसे ऊपर समान नागरिक संहिता बिल, पूरे देश में एनआरसी लागू करना, और नागरिकता क़ानून बनाना है

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 एजेंडे में सबसे ऊपर समान नागरिक संहिता बिल, पूरे देश में एनआरसी लागू करना, और नागरिकता क़ानून बनाना है.

सिटी पोस्ट लाइव :  मोदी सरकार अपने एजेंडे में शामिल प्रमुख मुद्दों को तेज़ी से ख़त्म करती हुई दिख रही है. मोदी सरकार अपने दूसरे कार्यकाल में तीन तलाक़ पर भी क़ानून बना चुकी है. वह एनआईए, आरटीआई, यूएपीए जैसे बिल भी पहले संसदीय सत्र में पास करवा चुकी है. जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के प्रमुख प्रावधानों को भी निष्प्रभावी कर चुकी है.सुप्रीम कोर्ट ने बरसों पुराने और भारतीय इतिहास के सबसे विवादित मामलों में से एक बाबरी मस्जिद-राम मंदिर विवाद पर अपना फ़ैसला सुना दिया है. सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले के साथ ही अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ हो गया.

राजनीतिक हलकों में हलचल है कि अब मोदी सरकार के एजेंडे में सबसे ऊपर समान नागरिक संहिता बिल लागू करना,  पूरे देश में एनआरसी लागू करना, और नागरिकता क़ानून बनाना है. समान नागरिक संहिता से भी पहले सरकार एनआरसी और नागरिकता बिल पर काम करेगी.’आगामी शीतकालीन सत्र में सरकार एनआरसी और नागरिकता बिल पेश करेगी.

समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड का मतलब है देश के सभी नागरिकों के लिए एक जैसे नागरिक क़ानून का होना, फिर चाहे वो किसी भी धर्म या संप्रदाय से ताल्लुक रखते हैं.समान नागरिक संहिता में शादी, तलाक़ और ज़मीन-जायदाद के बँटवारे जैसे मामलों में भी सभी धर्मों के लिए एक ही क़ानून लागू होने की बात है.मौजूदा वक़्त में भारतीय संविधान के तहत क़ानून को मोटे तौर पर दो भागों में बाँटा गया है. दीवानी (सिविल) और फ़ौजदारी (क्रिमिनल).शादी, संपत्ति, उत्तराधिकार यानी परिवार से संबंधित व्यक्ति से जुड़े मामलों के लिए क़ानून को सिविल क़ानून कहा जाता है.

हालांकि इसे लागू करना इतना आसान भी नहीं होगा शादी और संपत्ति जैसे मामलों में अलग-अलग धर्मों अपने-अपने नियम क़ानून हैं. उन सभी नियमों को एक करने में कई समुदायों को नुकसान हो सकता है कुछ को फ़ायदा भी हो सकता है. ऐसे में सभी को बराबरी पर लाने के लिए समायोजन करना बहुत मुश्किल होगा.सरकार के लिए समान नागरिक संहिता लागू करना जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 ख़त्म करने से भी ज़्यादा मुश्किल चुनौती होगी. जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाना एक तरह से प्रशासनिक काम था जिसे सरकार ने अपने तरीक़े से कर दिया लेकिन इस मामले में अलग-अलग धर्मों की मान्यताएं जुड़ी हैं इसलिए उन्हें ख़त्म करना इतना आसान नहीं होगा.’

संविधान में समान नागरिक संहिता को लागू करना अनुच्‍छेद 44 के तहत राज्‍य (केंद्र और राज्य दोनों) की ज़िम्‍मेदारी बताया गया है.यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड में दो पहलू आते हैं. पहला सभी धर्मों के बीच एक जैसा क़ानून. दूसरा उन धर्मों के सभी समुदायों के बीच भी एक जैसा क़ानून.यह जटिल प्रक्रिया है जिसके लिए संविधान के डायरेक्टिव प्रिंसिपल (नीति निर्देशक तत्व) में ज़िक्र किया गया है कि आने वाले वक़्त में हम समान नागरिक संहिता की दिशा में प्रयास करेंगे. लेकिन उस दिशा में आज तक कोई बहुत बड़ा क़दम नहीं उठाया गया है.

यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड को हिंदू और मुसलमानों से ही जोड़ा जाता है. एक तरफ़ जहां मुसलमानों की शादी और उत्तराधिकार के अलग तरह के प्रावधान हैं. वहीं हिंदू के भीतर भी कई समुदाय हैं जिसमें कई तरह के अंर्तद्वंद्व हैं.मुसलमानों या ईसाइयों की आपत्ति की बात होती है लेकिन भारत में कई तरह के समुदाय, कई तरह के वर्ग, परंपराएं हैं. लिहाज़ा एक तरह के सिविल लॉ को लागू करने पर किसी भी समुदाय के रस्मो-रिवाज में अगर एक भी गड़बड़ी होगी तो उसको आपत्ति होगी.

बीजेपी सरकार ने उत्तर पूर्वी राज्य असम में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर यानी एनआरसी लागू कर दी है.अब इस तरह की मांग उठ रही है कि सरकार पूरे देश में एनआरसी लागू कर सकती है. हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर भी अपने राज्य में एनआरसी लागू करने की बात कह चुके हैं.क्या एनआरसी को पूरे देश में लागू किया जा सकता है, इस पर प्रदीप सिंह कहते हैं, ”पूरे देश में एनआरसी लागू करने में सरकार को कोई परेशानी नहीं होगी, लेकिन सरकार का कहना है कि उन्होंने असम में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर एनआरसी लागू किया जबकि पूरे देश में इसे लागू करने से पहले वह नागरिकता बिल लाना चाहते हैं.

नागरिकता संशोधन विधेयक के तहत अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म को मानने वाले अल्पसंख्यक समुदायों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है.लेकिन पड़ोसी देशों के मुस्लिम समुदाय से जुड़े लोगों को इसके दायरे से बाहर रखा गया है. विधेयक में प्रावधान है कि ग़ैर-मुस्लिम समुदायों के लोग अगर भारत में छह साल गुज़ार लेते हैं तो वे आसानी से नागरिकता हासिल कर पाएंगे. मौजूदा सरकार के अनुसार हिंदुओं के लिए भारत के अलावा कोई दूसरा देश नहीं है.

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