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लालू यादव के हाथ में ही रहेगी RJD की कमान लेकिन तेजस्वी करेगें नेत्रित्व

विपक्तेष नहीं बल्जकि तेजप्रताप यादव और मिसा भारती हैं तेजस्वी यादव के लिए सबसे बड़ी चुनौती

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लालू यादव के हाथ में ही रहेगी RJD की कमान लेकिन तेजस्वी करेगें नेत्रित्व

सिटी पोस्ट लाइव : लोकसभा चुनाव की हार से अबतक आरजेडी ठीक से उबार नहीं पाई है. इस हार को लेकर पार्टी के अंदर सियासत और तेज हो गई है. लालू यादव के बड़े बेटे तेजप्रताप यादव पार्टी की कमान अपने हाथ में लेना चाहते हैं लेकिन पार्टी के ज्यादातर विधायक और नेता तेजस्वी यादव के नेत्रित्व में भरोसा रखते हैं. ऐसे में लालू यादव के लिए पार्टी की कमान पूरी तरह से किसी एक के हाथ में सौंपना मुश्किल हो गया है.अगर लालू यादव पार्टी की कमान तेजस्वी के हाथ में दे देते हैं यानी उन्हें पार्टी का राष्ट्रिय अध्यक्ष बना देते हैं तो तेजप्रताप यादव चुप नहीं बैठेगें.ऐसे में लालू यादव ने पार्टी की कमान अपने हाथ में ही रखने का फैसला लिया है. पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रामचंद्र पूर्वे का कहना है कि पार्टी के राष्ट्रिय अध्यक्ष लालू यादव ही रहेगें लेकिन पार्टी का नेत्रित्व तेजस्वी यादव करेगें.

गौरतलब है कि लोक सभा चुनाव के पहले तेजप्रताप यादव ने पार्टी पर अपना प्रभाव बनाने के लिए ऐड़ी छोटी का जोर लगा दिया था. जब सफल नहीं हुए तो बगावत कर दी. पार्टी के खिलाफ अपने तीन उम्मीदवार लोक सभा चुनाव में उतारकर ये तय कर दिया कि पार्टी को एक भी सीट न मिले. अगर तेजप्रताप यादव का उम्मीदवार जहानाबाद में नहीं होता तो वहां से आरजेडी उम्मीदवार सुरेन्द्र यादव की जीत तय थी. लेकिन तेजप्रताप यादव के उम्मीदवार ने आठ हजार वोट काटकर 17 00 वोट से सुरेन्द्र यादव की हार सुनिश्चित कर दी. तेजप्रताप के बगावत के वावजूद तेजस्वी यादव उनके खिलाफ कोई फैसला नहीं ले पा रहे थे. पार्टी के दुसरे दो बड़े नेताओं को अनुशासनहीनता के आरोप में निष्काषित कर चुके तेजस्वी के सामने ये सवाल उठ रहा था कि अगर आपने अली अशरफ फातमी और कृष्णा यादव जैसे नेता के खिलाफ कारवाई कर दी तो फिर तेजप्रताप यादव के खिलाफ क्यों नहीं कुछ किया. तेजप्रताप से जुड़े सवालों से परेशान तेजस्वी लोक सभा चुनाव के बाद राजनीतिक परिदृश्य से एक महीने तक ओझल हो गए. तेजस्वी यादव के गायब रहने पर सियासी गलियारों में ये चर्चा होती रही कि क्या तेजस्वी हार के गम से उबर नहीं पा रहे? या फिर वे आरजेडी में अपना वर्चस्व चाहते हैं? और इसके लिए वे आरजेडी सुप्रीमो और अपने पिता लालू प्रसाद यादव से तेजप्रताप यादव के खिलाफ कारवाई का आश्वासन चाहते हैं. इस बीच विधानमंडल का सत्र शुरू हो गया. 34 दिनों के बाद तेजस्वी यादव वापस तो आए लेकिन इसके बाद भी विधानसभा की कार्यवाही में भाग लेने सदन में नहीं पहुंचे.

इस बीच मीडिया में तेजस्वी यादव के इस्तीफे की अपुष्ट खबरें आने लगीं तो अचानक से सदन शुरू होने के पांचवें दिन वे विधानसभा पहुंच गए. लेकिन इन घटनाक्रमों के बीच यह बात खुलकर जगजाहिर हो गई कि आरजेडी में इस समय सबसे बड़ा संकट घर के भीतर ही है क्योंकि पांच जुलाई को आरजेडी के स्थापना दिवस में लालू-राबड़ी कुनबा पूरा बंटा रहा. एक ओर जहां हार के बाद पूरी पार्टी का मनोबल गिरा हुआ था, वहां बजाए एकजुट होकर नेताओं और कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने की बजाए मीसा भारती दिल्ली में स्थापना दिवस समारोह मना रही थी, तो पटना के आरजेडी कार्यालय में अलग कार्यक्रम था. उस कार्यक्रम में राबड़ी देवी और तेजप्रताप यादव सहित सभी नेता मौजूद थे लेकिन तेजस्वी यादव इस कार्यक्रम में नहीं आए.पार्टी के राष्ट्रिय महा सचिव शिवानन्द तिवारी ने तेजस्वी पर जोरदार हमला भी कर दिया . राबडी देबी शिवानन्द की खुलकर मुखालफत तो नहीं कर पाई लेकिन तेजस्वी का बचाव करती जरुर नजर आई.

पार्टी की राष्ट्रिय कार्यकारिणी की बैठक में ये साफ़ हो गया कि 2020 का बिहार विधानसभा चुनाव तेजस्वी यादव के नेतृत्व में लड़ा जाएगा, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या तेजस्वी सिर्फ नेतृत्व की बात को मनवाने के लिए इतना सब कुछ कर रहे हैं. सियासी जानकारों का मानना है कि तेजस्वी सिर्फ विधानसभा में नेतृत्व को लेकर नहीं बल्कि पूरी पार्टी पर एकाधिपत्य चाहते हैं. एकाधिपत्य भी ऐसा कि अगर कोई वे कोई फैसला करें तो कोई उस पर कोई अंगुली न उठा सके.वैसे भी तेजस्वी यादव बतौर नेता विपक्ष अपने को साबित कर चुके हैं.अगर लालू यादव तेजस्वी यादव से रिजल्ट चाहते तो उन्हें फ्री हैण्ड तो देना ही होगा. मीसा भारती की राजनीतिक महत्वाकांक्षा भी उनकी राह में रोडे़ अटका रही है. आरजेडी कार्यकारिणी की बैठक में तेजस्वी यादव ने अपने भाषण में इशारों में कहा कि वे जानते हैं कि उनके इस्तीफे की उड़ रही अफवाहों के पीछे कौन है.जाहिर है कि उनका इशारा मीसा भारती पर ही था.

तेजस्वी यादव दोनों भाई बहनों को साइड लाइन करना चाहते हैं, लेकिन इसके लिए न तो लालू प्रसाद यादव तैयार हैं और न ही राबड़ी देवी. यही कारण है कि इन दिनों तेजस्वी 34 दिनों की वापसी के बाद भी उखड़े-उखड़े से हैं. न तो वे अभी तक चमकी बुखार से प्रभावित बच्चों को देखने मुजफ्फरपुर गए, न ही सरकार पर कोई हमला किया, और न ही सदन में नेता प्रतिपक्ष के रूप में अपनी कोई भूमिका निभा रहे हैं. परिवार और पार्टी के सत्ता संघर्ष में तेजप्रताप और मीसा दोनों ही फिलहाल मौन हैं.

पार्टी के नेता और कार्यकर्ता सड़क पर उतरकर संघर्ष करना चाहते हैं लेकिन परिवार का सत्ता संघर्ष फिलहाल सड़क पर उतरने की इजाजत नहीं दे रहा है.जबतक तेजस्वी यादव को फ्री हैण्ड नहीं मिलेगा और तेजप्रताप यादव और मिसा भारती का खेल जारी रहेगा ,पार्टी आगे नहीं बढ़ पायेगी.लालू यादव को पार्टी पूरी तरह से तेजस्वी यादव को सौंपनी होगी और तेजस्वी यादव को लालू यादव से अलग पहचान बनाते हुए और समय के साथ पार्टी और संगठन में आमूलचूल परिवर्तन कर नए सिरे से पार्टी को विधान सभा चुनाव के लिए तैयार करना पड़ेगा,

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