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टाटीझरिया पुल का अविलंब निर्माण कराना जरूरी: बाबूलाल मरांडी

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सिटी पोस्ट लाइव, रांची: बीजेपी विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी ने कहा है कि  दो दिन पूर्व अखबार में 100 गांव की सीढ़ी नामक शीर्षक से कुछ वर्ष पूर्व उग्रवादियों द्वारा हजारीबाग के टाटीझरिया में एक पुल को उड़ा दिए जाने के बाद ग्रामीणों के समक्ष उत्पन्न हो रही परेशानी से संबंधित एक समाचार पर निगाह पड़ी। यह पुल तीन जिलों के लगभग 100 गांवों की लाईफलाईन है। इस पुल का कार्य कहीं-न-कहीं सुरक्षा व्यवस्था के कारण ही बाधित रहा है। यह आपके लिए छोटा-सा कार्य है। इसको प्रमुखता से लेते हुए अविलंब इसका निर्माण करवाने का कष्ट करें।

बाबूलाल मरांडी ने कहा कि इसी दौरान कुछ संवेदकों से बात हुई तो उन्होंने इससे मिलती-जुलती ही परेशानी को साझा किया। उन्होंने बताया कि आलम यह है कि अब तो अंगरक्षक नहीं रहने के कारण हम अपने साईड पर भी नहीं जा पाते हैं। जिसका असर हमारे कार्यो यानि राज्य के विकास योजनाओं पर पड़ता है। कुछ संवेदकों ने व्यक्तिगत तौर पर मुझे बतलाया कि उनकी लगभग 100 से 200 करोड़ की कई योजनाएं उग्रवाद और अतिउग्रवाद प्रभावित इलाकों में चल रही हैं। पूर्व में उन्हें अंगरक्षक उपलब्ध कराया गया था पंरतु लॉकडाउन के उपरांत यह सुविधा सरकार द्वारा कोरोना संकट का हवाला देकर वापस ले ली गई। अब परेशानी यह है कि उन इलाकों में जाना तो दूर शहर में भी निकलना किसी खतरे से खाली नहीं है। मजबूरी है कि कोई कब तक बाहर नहीं निकले या अपने काम के सिलसिले में उसका मुआयना करने कार्यस्थल तक नहीं जाए ?

उन्होंने बताया कि इस बाबत जब उन्होंने अपनी परेशानी किसी उपायुक्त को बताया तो उन्होंने कहा कि वे क्या कर सकते हैं, जब सारी चीजें ऊपर के स्तर से हो रही है। उपायुक्त ने संवेदक को इतना भर आश्वस्त किया कि जब आप मेरे इलाके में आएंगे तो पूर्व में उन्हें सूचना देने पर हम आपके साईड तक यथासंभव सुरक्षा की व्यवस्था मुहैया करा सकते हैं। यह अपने आप में हास्यास्पद है कि क्या किसी संवेदक की जान को खतरा साईड पर जाने तक ही होता है ? हालांकि इसमें उपायुक्त को जो उचित लगा उन्होंने अपने स्तर से सुरक्षा मुहैया कराने की बात कही। लेकिन यह सबकुछ आखिर ऊपर से कौन कर रहा है या करवा रहा है ? यहां विषय है सही जरूरतमंदों को पर्याप्त व बिना भेदभाव के सुरक्षा उपलब्ध कराने की, जिससे विकास, रोजगार, सामाजिक और राजनैतिक गतिविधि भयमुक्त एवं सुरक्षित वातावरण में निरंतर चलती रहे, चाहे वे पक्ष के विचारधारा वाले हों हों या विपक्ष के।

दूसरी ओर गैरकानूनी एवं मनमाने तरीके से सत्तापक्ष से जुड़ें लोगों को ही सुरक्षा मुहैया कराने में प्राथमिकता दी गई। भगवान न करे, राज्य सरकार के भेदभाव के कारण सुरक्षा से वंचित ऐसे किसी व्यक्ति के साथ कल कोई दुर्घटना या अनहोनी हो गई तो तब इसकी जिम्मेवारी कौन लेगा ? मुझे लगता है कि झारखंड सरकार का यह कदम सरकार की खामियों को प्रमुखता से उजागर कर रहे लोगों को भयाक्रांत कर उन्हें चुप कराने का साजिशपूर्ण प्रयास है। इस भेदभावपूर्ण प्रयास से आपको विरोधियों और विरोधी विचारधारा के हिमायती सभी तबके के लोगों की लोकतांत्रिक आवाज को दबाने या उन्हें डरा कर रखने में कितनी सफलता मिली ? यह तो आप ही जानें और आप इसका मूल्यांकन भी करवा रहे होंगे। लेकिन राजनैतिक एवं लोकतांत्रिक व्यवस्था में निजी वैमनस्यता के परिणाम कभी भी अच्छे नहीं होते। इतिहास इस बात का गवाह है।

बाबूलाल मरांडी ने कहा कि सरकार को लगता है कि  पूर्व में अंगरक्षकों का बेजा इस्तेमाल हुआ है और हो रहा है तो उनके सहित उनके तमाम लोगों का अंगरक्षक आप वापस ले लीजिए। परंतु अपनी झूठी और गलत राजनीतिक महत्वकांक्षा के लिए राज्य के विकास, रोजगार एवं पूरी व्यवस्था को हाइजैक और प्रभावित न तो होने दीजिये और न ही किसी को करने दीजिये। सत्ता आनी-जानी है। वैसे भी कल किसने देखा है ? जो स्वस्थ लोकतांत्रिक प्रक्रिया है वो चलनी चाहिए, उसमें छेड़छाड़ करना मुनासिब नहीं होता है। इस पर गंभीरता से विचार कीजिए और दलगत भावना से ऊपर उठकर इस दिशा में तत्काल पहल कीजिये।

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