एनडीए के कुनबे को कैसे संभालेगें मोदी ,नीतीश-पासवान -उपेन्द्र को संभालना कितना मुश्किल ?एक पुरानी कहावत है, ‘राजनीति में न कोई स्थाई दोस्त होता है और न कोई स्थाई दुश्मन’. राजनीति के जानकार कहते हैं कि राजनीति में दोस्ती और दुश्मनी मजबूरियों और ज़रूरतों के हिसाब से तय होती है.ऐसे में देश भर में हुए उप-चुनावों में मिली करारी शिकस्त के बाद मोदी और अमित शाह के लिए 2019 के चुनाव से पहले एनडीए के कुनबे को बढाने की बात तो दूर ,उसे वर्मान स्वरूप में ही संभालना संभालना मुश्किल हो चला है.पेश है सिटी पोस्ट लाईव के मैनेजिंग एडिटर श्रीकांत प्रत्यूष की एक विशेष रिपोर्ट
सिटी पोस्ट लाईव :चार लोकसभा और दस विधानसभा सीटों पर नतीजे आने के बाद एनडीए के सहयोगियों ने बीजेपी नेतृत्व पर दबाव की राजनीति शुरू कर दी है . सहयोगी दलों ने बीजेपी की कार्यशैली पर सवाल उठाना शुरू कर दिया .एनडीए के सभी दलों ने अपनी अपनी जरूरतों के हिसाब से मोदी सरकार और बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है.सबको लगता है यहीं बीजेपी से अपनी सारी मांगे मनवा लेने का सही मौका है.घटक दलों के बढ़ते दबाव के कारण सात जून को बिहार में एनडीए के सारे नेताओं का जुटान हो रहा है.इस जुटान के बाद तय हो जाएगा कि ये घमाशान और बढेगा या बीच का कोई रास्ता निकल जाएगा.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने की अपनी पुरानी मांग को जेडीयू तूल देने पर आमादा है. नीतीश कुमार के साथ इसको लेकर आगे की रणनीति के बारे में विचार विमर्श करने के बाद पार्टी नेता के सी त्यागी और पवन वर्मा ने साफ़ कर दिया बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने की जेडीयू की लड़ाई जारी रहेगी. नीतीश कुमार पहले ही असम में बीजेपी के नागरिकता संशोधन बिल का भी विरोध कर उसकी मुश्किलें बढ़ा चुके हैं और अब विशेष दर्जा को लेकर गठबंधन से बहार जाने का रास्ता भी खोज सकते हैं.
एनडीए के कुनबे को कैसे संभालेगें मोदी ,नीतीश-पासवान -उपेन्द्र को संभालना कितना मुश्किल ? एनडीए की पुरानी सहयोगी टीडीपी की आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग को लेकर मोदी सरकार से बाहर हो जाने और एनडीए के साथ अपने सारे रिश्ते खत्म कर लिए जाने के बाद नीतीश कुमार द्वारा विशेष दर्जा की मांग को लेकर अड़े रहने का मतलब भी ख़ास हो सकता है.ये सब जानते हुए कि 14वें वित्त आयोग ने अपनी सिफ़ारिश के अनुसार विशेष राज्य का दर्जा केवल विशेष परिस्थिति में ही दिया जा सकता है और बिहार को ये नहीं मिल सकता, ऐसे में नीतीश कुमार की बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग का मकसद या तो बीजेपी पर लोक सभा चुनाव में अधिक से अधिक सीटें लेने के लिए हो सकता है या फिर एनडीए से बाहर निकलने का बहाना हो सकता है. सूत्रों के मुताबिक नीतीश कुमार दबाव इसलिए बना रहे हैं 2019 में उनकी पार्टी को बिहार कम से कम 15 लोकसभा सीटें मिलें.
बिहार में एनडीए की एक और सहयोगी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के अध्यक्ष और केंद्र सरकार में मंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने उप-चुनावों में एनडीए को मिली करारी शिकस्त के बाद अभी से लोक सभा सीटों का बंटवारा करा दिए जाने की मांग शुरू कर दी है.उन्होंने कहा है कि बिहार में अभी ये तय हो जाना चाहिए कि किस सीट पर कौन लडेगा. उपेंद्र कुशवाहा ने मांग कर बीजेपी नेतृत्व के लिए एक बड़ा संकट खड़ा कर दिया है.उपेंद्र कुशवाहा ने बीजेपी पर दबाव की राजनीति के तहत ये घोषणा कर दी है कि उनकी पार्टी रालोसपा मध्य प्रदेश विधान सभा का चुनाव लड़ेगी.
जेडीयू से बाहर आने के बाद उपेंद्र कुशवाहा की पूरी राजनीति नीतीश कुमार और उनकी पार्टी के खिलाफ रही है. इसलिए आरजेडी को छोड़ बिहार में एनडीए के साथ मिलकर सरकार बनाई थी. तब रामविलास पासवान के भाई पशुपति पारस को अपने नए मंत्रिमंडल में जगह दी थी, लेकिन एनडीए के सहयोगी उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के किसी भी विधायक को मंत्री मंडल में जगह नही दी.
उपेंद्र कुशवाहा अपमान का घूँट पीकर भी एनडीए में सिर्फ़ इसलिए बने हुए हैं क्योंकि उन्हें एनडीए से बाहर जाने के लिए सही वक़्त और बेहतर ऑफर का इंतज़ार है.उपचुनावों के नतीजों के पहले से ही उन्होंने एनडीए से बाहर जाने के रास्ते तलाशने शुरू कर दिया था. वह ये अच्छी तरह से जानते हैं नीतीश कुमार के एनडीए में उनकी दाल ज्यादा गलने वाली नहीं है. वैसे भी पिछले दिनों उनके ‘शिक्षा सुधार संकल्प महासम्मेलन’ के मंच पर आरजेडी नेता नज़र आते रहे हैं और उनके आरजेडी के साथ चले जाने की चर्चा पिछले कई महीनों से जारी है.
रामविलास पासवान भी राजनीति के माहिर खिलाड़ी हैं. बीजेपी पर दबाव बनाने में अपने सहयोगियों से वह भी पीछे नहीं हैं.शनिवार को उन्होंने अपने बेटे चिराग पासवान, अपने दो भाइयों रामचंद्र पासवान और पशुपति कुमार पारस के साथ ताजा हालात पर मंथन किया.रविवार को रामविलास पासवान और उनके बेटे चिराग पसवान ने बीजेपी अध्यक्ष से मुलाक़ात कर SC/ST एक्ट और प्रमोशन में आरक्षण संबंधी बिल को जल्दी लाने की मांग की. रामविलास पासवान ने भी बिहार को विशेष राज्य के दर्जा दिए जाने की नीतीश कुमार की मांग को जायज़ ठहराया है.
बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार और रामविलास पासवान बढ़ती नजदीकियां बीजेपी के लिए आने वाले समय में बड़ी परेशानी आने के संकेत हैं. क्योंकि नीतीश कुमार ने एक ही झटके ने पासवान जाति को महादलित में शामिल कर बिहार की जातिगत राजनीति में एक बड़ा भूचाल ला दिया है. यही कारण है कि आज नीतीश कुमार और रामविलास पासवान बीजेपी के ख़िलाफ़ हर क़दम पर एक दूसरे का साथ दे रहे हैं.
सभी घटनाक्रमों को देखते हुए बिहार बीजेपी के प्रभारी और पार्टी महासचिव भूपेंद्र यादव ने बिहार बीजेपी के अध्यक्ष नित्यानंद राय से दिल्ली में 2 घंटे तक मुलाक़ात कर ताज़ा राजनैतिक हालत पर चर्चा की.उसके बाद भूपेंद्र यादव और नित्यानंद राय ने अमित शाह को पूरे राजनैतिक घटनाक्रम की जानकारी दी. उसके बाद अमित शाह के निर्देश पर 7 जून को बिहार में एनडीए के सभी सहयोगियों की बैठक बुलाई है. बीजेपी ने महाभोज का निमंत्रण रामविलास पासवान, नीतीश कुमार, भूपेंद्र यादव, सुशील मोदी, उपेंद्र कुशवाहा, नित्यानंद राय, अरुण कुमार समेत सभी सांसद, विधायक, विधान पार्षद, प्रदेश पदाधिकारी और सभी घटक दलों के जिलाध्यक्षों को भी भेजा है.
भले ही बीजेपी ने 7 जून को बिहार में एनडीए की एकजुटता के लिए महाभोज दिया हैं. मगर इतना तय है कि इस महाभोज के बाद दूरियां कम होने की बजाय 2019 के महासमर के लिए मोलभाव शुरू होंगे. पीएम मोदी और अमित शाह ये बात अच्छी तरह से जानते हैं कि नीतीश कुमार और रामविलास पासवान राजनीति के माहिर खिलाड़ी हैं और उन्हें मनाना आसान काम नहीं होगा.
एक पुरानी कहावत है, ‘राजनीति में न कोई स्थाई दोस्त होता है और न कोई स्थाई दुश्मन’. राजनीति के जानकार कहते हैं कि राजनीति में दोस्ती और दुश्मनी मजबूरियों और ज़रूरतों के हिसाब से तय होती है.ऐसे में देश भर में हुए उप-चुनावों में मिली करारी शिकस्त के बाद मोदी और अमित शाह के लिए 2019 के चुनाव से पहले एनडीए के कुनबे को बढाने की बात तो दूर ,उसे वर्मान स्वरूप में ही संभालना संभालना मुश्किल हो चला है.
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