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कोरोना वायरस की ईन चार वैक्सीन पर टिकी है दुनिया की निगाहें

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सिटी पोस्ट लाइव : कोरोना वायरस की 5 हज़ार की जीवन रक्षक दवा रेमडेसिविर 30 हज़ार में मिल रही है. इसी से अंदाजा लगा सकते हैं कि वैक्सीन की मांग अपने देश में कितना ज्यादा है. इसी मांग को ध्यान में रखते हुए दुनियाभर में कोरोना वायरस की 23 वैक्सीन के क्लीनिकल ट्रायल हो रहे हैं .कुछ देशों में वैक्सीन्स के ह्यूमन ट्रायल पहले और दूसरे चरण में सफल रहे हैं और अब भारत में भी कोवैक्सीन नाम की वैक्सीन का ट्रायल शुरू होने जा रहा है.दिल्ली स्थित ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज़ (एम्स) में सोमवार से ही यह ट्रायल शुरू हो जाएगा. यह ट्रायल 100 स्वस्थ लोगों पर किया जाएगा. जिन पर ट्रायल किया जाएगा उनकी उम्र 18 से 55 साल तक होगी.

इस टेस्ट के लिए दिल्ली-एनसीआर के लोगों से वॉलेंटियर करने की अपील की गई थी. रजिस्ट्रेशन कराने वालों के लिए अपना कोरोना टेस्ट और लीवर टेस्ट कराना ज़रूरी था.इस वैक्सीन की दो डोज़ दी जाएँगी. पहली डोज़ के दो सप्ताह के बाद दूसरी डोज़ दी जाएगी. ये वैक्सीन इंजेक्शन के ज़रिए दिया जाएगा .भारत बायोटेक इंटरनेशनल लिमिटेड और जायडस कैडिला भारत में कोरोना की वैक्सीन बनाने की दिशा में आगे हैं. भारत बायोटैक इंटरनेशनल लिमिटेड की वैक्सीन का नाम कोवैक्सीन है. इसके अलावा तक़रीबन आधा दर्जन भारतीय कंपनियां कोविड-19 के वायरस के लिए वैक्सीन विकसित करने में जुटी हुई हैं.

इन कंपनियों में से एक सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया है. वैक्सीन के डोज़ के उत्पादन और दुनिया भर में बिक्री के लिहाज़ से यह दुनिया की सबसे बड़ी वैक्सीन कंपनी है.यूरोप समेत दुनिया में कोरोना वैक्सीन का पहला ट्रायल ब्रिटेन के ऑक्सफ़ोर्ड में शुरू हुआ था. अप्रैल महीने में ही यहाँ कोरोना वायरस संक्रमण की वैक्सीन के लिए इंसानों पर परीक्षण शुरू हो गया था.शुरुआती चरण के लिए यहाँ 800 लोगों को बतौर वॉलेंटियर चुना गया था. ये टीका ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी की एक टीम ने तैयार किया था. जेनर इंस्टीट्यूट में वैक्सीनोलॉजी की प्रोफ़ेसर सारा गिल्बर्ट इस टीम का नेतृत्व कर रही हैं.दावा है कि ऑक्सफ़ोर्ड की वैक्सीन का पहला ह्यूमन ट्रायल क़ामयाब रहा है. अगर आगे भी सबकुछ ठीक रहता है, तो संभव है कि बहुत जल्दी ही कोरोना वायरस की एक कारगर वैक्सीन तैयार कर ली जाएगी.

अमरीका में टेस्ट की गई पहली कोविड-19 वैक्सीन से लोगों के इम्यून को वैसा ही फ़ायदा पहुँचा है, जैसा वैज्ञानिकों ने उम्मीद की थी.अब इस वैक्सीन का ट्रायल किया जाना है. नेशनल इंस्टिट्यूट्स ऑफ़ हेल्थ और मोडेरना इंक में डॉ. फाउची के सहकर्मियों ने इस वैक्सीन को विकसित किया है.27 जुलाई से इस वैक्सीन का 30 हज़ार लोगों पर परीक्षण किया जाएगा और पता किया जाएगा कि क्या ये वैक्सीन वाक़ई कोविड-19 से मानव शरीर को बचा सकती है.

इस बीच रूस पर वैक्सीन का फ़ॉर्मूला चुराने का भी आरोप लगा. इन आरोपों को ब्रिटेन में रूस के राजदूत ने सिरे से ख़ारिज कर दिया है. एंड्रेई केलिन ने बीबीसी से कहा, ‘मैं इस कहानी पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं करता हूँ. इस बात का कोई मतलब ही नहीं है.’रूस के कोरोना वैक्सीन ट्रायल सफल होने पर सवाल उठ रहे हैं.हालांकि विदेश मंत्री डोमिनिक राब ने ज़ोर देते हुए कहा है कि यह बहुत साफ़ है कि रूस ने ऐसा किया है.इससे पूर्व ब्रिटेन के नेशनल साइबर सिक्योरिटी सेंटर (एनसीएससी) ने कहा था कि रूस के हैकर्स उन संगठनों को निशाना बना रहे हैं, जो कोरोना वायरस की वैक्सीन विकसित करने की कोशिश कर रहे हैं.ब्रिटेन के अलावा अमरीका ने भी आरोप लगाया था कि रूस के हैकरों ने वैक्सीन से जुड़े रिसर्च को चोरी करने की कोशिश की है.

क़रीब एक हफ़्ते पहले रूस ने यह दावा किया था कि ‘उनके वैज्ञानिकों ने कोरोना वायरस की पहली वैक्सीन बना ली है.’रूस की समाचार एजेंसी स्पुतनिक ने अनुसार इंस्टिट्यूट फ़ॉर ट्रांसलेशनल मेडिसिन एंड बायोटेक्नोलॉजी के डायरेक्टर वादिम तरासोव ने कहा “दुनिया की पहली कोरोना वैक्सीन का क्लीनिकल ट्रायल सफलतापूर्वक पूरा कर लिया गया है.”उन्होंने बताया कि मॉस्को स्थित सरकारी मेडिकल यूनिवर्सिटी से चेनोफ़ने ये ट्रायल किए और पाया कि ये वैक्सीन इंसानों पर सुरक्षित है. जिन लोगों पर वैक्सीन आज़माई गई है, उनके एक समूह को 15 जुलाई और दूसरे समूह को 20 जुलाई को अस्पताल से छुट्टी दी जाएगी.

चीन ने मई महीने में ही साल के अंत तक वैक्सीन ईजाद कर लेने का दावा किया था.चीन के एसेट्स सुपरविज़न एंड एडमिनिस्ट्रेशन कमिशन ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में कहा था कि चीन में बनी कोरोना वायरस की वैक्सीन इस साल के अंत तक वितरण के लिए मार्केट में आ सकती है.वुहान इंस्टिट्यूट ऑफ बायोलॉजिकल प्रोडक्ट्स और बीजिंग इंस्टिट्यूटऑफ बायोलॉजिकल प्रोडक्टस की ओर से तैयार की गई वैक्सीन का ट्रायल 2000 लोगों पर करने का दावा किया गया था.हालांकि अभी तक किसी प्रमाणिक वैक्सीन को ईजाद कर लेने की जानकारी चीन से भी नहीं है. लेकिन बांग्लादेश ने चीन के सिनोवेक वैक्सीन के तीसरे चरण के ट्रायल को मंज़ूरी दे दी है.न्यूज़ एजेंसी रॉयटर्स की ख़बर के मुताबिक़, चीन की सिनोवैक बायोटेक लिमिटेड कंपनी ने यह वैक्सीन तैयार की है.

बांग्लादेश में कोविड19 के लिए काम कर रही नेशनल टेक्नीकल एडवाइज़री कमेटी के एक सदस्य ने बताया कि सिनोवैक को चीन के बाहर वॉलेंटियर्स की ज़रूरत थी क्योंकि चीन में कोरोना वायरस संक्रमितों की संख्या घट गई है.बांग्लादेश की इंटरनेशनल सेंटर फ़ॉर डायरियल डिज़ीज़ रिसर्च (ICDDR,B) अगले महीने इसका परीक्षण शुरू करेगा.

मॉडर्ना थेराप्युटिक्स एक अमरीकी बॉयोटेक्नॉलॉजी कंपनी है, जिसका मुख्यालय मैसाचुसेट्स में है. इस वैक्सीन के दो क्लीनिकल ट्रायल पूरे हो चुके हैं.

INO-4800 वैक्सीन.

अमरीकी बॉयोटेक्नॉलॉजी कंपनी इनोवियो फ़ार्मास्युटिकल्स का मुख्यालय पेन्सिल्वेनिया में है. इनोवियो फ़ार्मास्युटिकल्स की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक़, पहले फ़ेज़ के नतीजे सकारात्मक रहे हैं.

AD5-nCoV वैक्सीन.

चीनी बॉयोटेक कंपनी कैंसिनो बॉयोलॉजिक्स की इस वैक्सीन का तीसरा ट्रायल होना है. इस प्रोजेक्ट में कैंसिनो बॉयोलॉजिक्स के साथ इंस्टीट्यूट ऑफ़ बॉयोटेक्नॉलॉजी और चाइनीज़ एकेडमी ऑफ़ मिलिट्री मेडिकल साइंसेज़ भी काम कर रहे हैं.

LV-SMENP-DC वैक्सीन.

चीन के ही शेंज़ेन जीनोइम्यून मेडिकल इंस्टीट्यूट में एक और ह्यूमन वैक्सीन LV-SMENP-DC का परीक्षण भी चल रहा है.

जून के महीने में भारत में बनी फ़ैबीफ़्लू दवा को लेकर दावे किए गए कि यह कोरोना का तोड़ है. ग्लेनमार्क फ़ार्मा कंपनी की यह दवा एक रीपरपस्ड दवा है.इस दवा को बनाने वाली फ़ार्मास्युटिकल कंपनी ग्लेनमार्क ने दावा किया है कि कोविड-19 के माइल्ड और मॉडरेट मरीज़ों पर इसका इस्तेमाल किया जा सकता है और परिणाम सकारात्मक आए हैं.ग्लेनमार्क कंपनी का दावा है कि ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ़ इंडिया(डीसीजीआई) ने इस दवा के ट्रायल के लिए सशर्त मंज़ूरी दी है.रूस, जापान और चीन में भी इस दवा पर स्टडी की गई और दावा किया गया कि इसका असर साकारात्मक रहा है.लेकिन अब भारत में इस दवा को लेकर विवाद खड़ा हो गया है. न्यूज़ एजेंसी एएनआई की ख़बर के मुताबिक़, ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ़ इंडिया ने फ़ैबीफ़्लू को लेकर किए जा रहे दावों और उसकी क़ीमत को लेकर कंपनी से स्पष्टीकरण मांगा है.

रेमडेसिविर: कोरोना की दवा नहीं है लेकिन इससे कोरोना से बचाव का दावा किया जा रहा है.इसके क्लीनिकल ट्रायल से पता चला है कि इससे गंभीर तौर पर बीमार रोगी जल्दी ठीक हो सकते हैं. हालाँकि, इससे लोगों के बचने की संभावना बहुत बढ़ जाती हो, ऐसा नहीं देखा गया.जानकारों ने चेतावनी दी है कि इस दवा को कोरोना वायरस से बचने का रामबाण नहीं समझा जाना चाहिए.रेमिडेसिविर को गिलीएड नाम की एक कंपनी बनाती है.NIAID के प्रमुख एंथनी फ़ॉसी ने कहा कि रेमडेसिविर से स्पष्ट देखा गया कि इससे रोगियों में सुधार का समय घट गया है.हालाँकि, रेमडेसिविर से सुधार में मदद मिल सकती है और शायद रोगियोंको आईसीयू में जाने की ज़रूरत ना पड़े, लेकिन इस दवा से इस बात का कोई स्पष्ट संकेत नहीं मिल सका है कि इससे कोरोना संक्रमण से होने वाली मौतों को रोका जा सकता है.

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