City Post Live
NEWS 24x7

दलित, पिछड़ा और अल्पसंख्यक के हित के नारे, राजनीति के शिखर पर पहुँचने की है मजबूत सीढ़ी

- Sponsored -

-sponsored-

- Sponsored -

दलित, पिछड़ा और अल्पसंख्यक के हित के नारे, राजनीति के शिखर पर पहुँचने की है मजबूत सीढ़ी

सिटी पोस्ट लाइव “विशेष” : भारत के गणतंत्र होने के बाद और संविधान लागू होने के बाद तत्कालीन राजनीतिक पार्टियों के पास देश की समृद्धि और देश में समानता का विषय सबसे बड़ा था। लेकिन उस वक्त भी जातिवादी धरा के लोग मुखर राजनीतिज्ञ के तौर पर विभिन्य पार्टियों में मौजूद थे। भरतीय गणतंत्र में पहली सरकार कांग्रेस की बनी। उस समय मेनिफेस्टो और घोषणा पत्र का उतना महत्व नहीं था। लेकिन गरीबी हटाओ और समानता के नाम पर चुनाव लड़े गए थे। बाद के वर्षों में विभिन्य पार्टियों के विधिवत घोषणा पत्र की शुरुआत हुई। आप शुरू से गौर करें,तो कांग्रेस एकमात्र बड़ी पार्टी थी और देश एक बढ़िया विपक्ष विहीन था। सत्ता पर काबिज सरकार से मजबूत विपक्ष का महत्व कम नहीं होता है। यह अलग बात है कि सत्तासीन पार्टियाँ अपने अनुकूल फैसले लेने को आजाद थे लेकिन अगर मजबूत विपक्ष होते, तो कुछ बड़े और तल्ख सवाल जरूर खड़े होते। हांलांकि उस समय भी विपक्ष में कुछ समाजवादी नेता थे, जो लगातार कांग्रेस को घेरने का काम करते थे। लेकिन कम संख्या बल की वजह से आवाज की तल्खी जल्द ही खत्म हो जाती थी।

1974 के जेपी आंदोलन के बाद देश में एक अलग राजनीति की शुरुआत हुई जिसमें जनता हित सर्वोपरि समझने की बाध्यता पर मुहर लगी। लेकिन बाद के वर्षों में जेपी आंदोलन की उपज रहे नेताओं के जत्थे ने जातिवादी राजनीति को शिखर पर पहुँचा दिया। बीते करीब चार दशक की राजनीति पर गौर करें, तो हर पार्टी दलित, पिछड़ा और अल्पसंख्यक के हित की बातकर सत्तासीन होते रहे हैं लेकिन इस वर्ग का भला होने की जगह ज्यादा नुकसान ही हुआ है ।दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यकों के परिवार तक जीवन का मूल शिक्षा की मजबूत पहुँच आजतक नहीं हो सकी है ।इस वर्ग में गरीबी आजतक कुलाचें भर रही हैं ।बड़ा सवाल यह है कि भूखे पेट शिक्षा का लाभ लेना मुश्किल है ।पूर्ववर्ती तमाम सरकार ने गरीबी हटाओ के नाम पर जातीय धरा को सिद्दत से मजबूत किया है ।वेवजह की योजनाओं में लाखों-करोड़ों रुपये हर वर्ष बहाए गए लेकिन वे योजनाएं जमीन पर अपना कोई सार्थक असर नहीं छोड़ सकीं। अगर पहले की सरकारों और नेताओं ने ईमानदारी और निष्ठा से देश को आगे ले जाने का संकल्प लिया होता, तो हिंदुस्तान की तस्वीर विश्व के मानचित्र पर आज कुछ और होती? बीती बातें अब इतिहास का शक्ल ले चुकी है ।इसलिए पीछे की चर्चा छोड़ कर वर्तमान राजनीति की समीक्षा जरूरी है।

आज सभी बड़े दल दलित,पिछड़ा और अल्पसंख्यक को बानगी बनाकर अपनी राजनीतिक अभिलाषाओं की तुष्टि कर रहे हैं। सही मायने में दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यकों को शिखर तक पहुंचाने की किसी पार्टी की मंसा नहीं है। जिस देश के संविधान में समानता की बात की गई हो और एक कानून की बात की गई हो। उसमें पार्टी हित साधने के लिए राजनेताओं ने जमकर छेड़छाड़ की है। हिंदुस्तान में आज सभी तरह के चुनाव जातीय आधार पर लड़े जाते हैं। हम सिर्फ अमेरिका में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव की चर्चा कर रहे हैं। राष्ट्रपति के लिए जो उम्मीदवार नामांकन करते हैं,वे चुनाव से पहले जनता के बीच जाते हैं।डिबेट होते हैं जिसमें प्रत्यासी अपना विजन बताते हैं। मसलन उनका एटॉमिक विजन क्या है? पॉलिटिकल विजन क्या है?इक्नॉमिकल विजन क्या है? विदेश नीति क्या होगी ?एग्रीकल्चर और तकनीकी शिक्षा को लेकर उनका रुख क्या है? कहने का गरज यह है कि वहां मूल और वृहत्तर विकास की बातें होती हैं। लेकिन इससे ठीक उलट यहाँ के चुनाव में यह देखा जाता है कि किस जुमले से सरकार बनाई जाए।

अगर आप दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक के नाम पर चुनाव लड़ रहे हैं,तो सवर्णों के लिए एक अलग देश बना दीजिये। यहाँ पिछड़े की सही परिभाषा से किसी को कोई मतलब नहीं है। पिछड़े का मतलब यह है कि तमाम जातियों के ऐसे लोग जो बेहद गरीबी, तंगहाली, फटेहाली, मुफलिसी और हासिये पर लुढ़के हैं, जिन्हें सरकारी दम से समाज की मुख्यधारा से जोड़ना है। लेकिन यह वाजिब सोच किसी दल के पास नहीं है। सवर्ण के गरीब और पिछड़े को दोयम नजरों से देखा जाता है। इस देश में चुनाव जाति और धर्म के नाम पर लड़े जाते हैं। जिस दलित, पिछड़े,ओबीसी और अल्पसंख्यक नेताओं के करोड़ों के घर में लाखों के सोफे, झूमर, लक्जरी गाड़ियां और तमाम तरह की अत्याधुनिक सुविधाएं मौजूद रहती हैं, वे खुद को पिछड़ों का भगवान होने का दावा करते हैं। देश को आज जाति, वर्ग, पंथ, सम्प्रदाय और धर्म से अलग हटकर राजनीतिक हवा तैयार करने की जरूरत है। इस देश से जातिवाद और धर्मवाद को मिटाने के बाद ही, एक मुकम्मिल हिंदुस्तान की परिकल्पना की जा सकती है।

इस देश को सभी धर्मों के धर्म गुरुओं और नेताओं ने मिलकर बर्बाद कर दिया है। सभी धर्मों के धर्म गुरुओं और नेताओं ने समाज को कई टुकड़ों में बांटकर अपनी राजनीतिक जमीन तैयार की है। समाज में असली मिल्लत, भाईचारे, शांति और अमन के लिए विभिन्य धर्म गुरुओं के साथ-साथ नेताओं को भी कड़े सबक की जरूरत है। मुसीबत के समय पड़ोसी ही काम आयेंगे, चाहे वे किसी जाति और धर्म के हों ।हमें दोगलों की पहचान कर, उन्हें उनकी औकात दिखानी चाहिए। हमारा सामाजिक रिश्ता सबसे ऊपर है। ये भांड कभी हमारी मुसीबत के साझीदार नहीं हो सकते हैं। इस आलेख के जरिये हम देश के सभी जातियों के लोगों को यह बताना चाहते हैं कि मृत्य एकमात्र सच है। हम दूसरे को फायदा पहुंचाने के लिए अपना सामाजिक रिश्ता किसी भी सूरत में खराब ना करें और सदा मिलकर रहें। देश का विकास और देश की समृद्धि हमारा समवेत नारा होना चाहिए।

पीटीएन न्यूज मीडिया ग्रुप से सीनियर एडिटर मुकेश कुमार सिंह की “विशेष” रिपोर्ट

-sponsored-

- Sponsored -

Subscribe to our newsletter
Sign up here to get the latest news, updates and special offers delivered directly to your inbox.
You can unsubscribe at any time

-sponsored-

Comments are closed.