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सप्ताहांत, विशेष सम्पादकीय : सच’ बोलने वाले ‘देशद्रोही’!

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सच’ बोलने वाले ‘देशद्रोही’!

फेसबुक पर लिखने वाले बीस लोगों को, खूंटी भाजपा सांसद कड़िया मुंडा के बॉडीगार्डो के अगवा किये जाने की घटना को आधार बना कर, ‘राजद्रोह’ का अभियुक्त बनाया गया है. खूंटी थाना पुलिस ने 26 जुलाई को 20 लोगों पर एफआईआर दर्ज किया और 27 जुलाई को ‘राजद्रोह’ की इस ‘खबर’ को ‘देशद्रोह’ की शक्ल में अखबार की सुर्खी बना दी गयी!

‘देशद्रोह’ का मतलब सत्ता के खिलाफ विद्रोह. देश की प्रभुसत्ता के खिलाफ साजिश. फेसबुक की संक्षिप्त टिप्पणियों के आधार पर खूंटी थाना पुलिस ने यह गंभीर आरोप लगा दिया. ‘कमाल’ की इस ‘कारवाई’ के तहत खूंटी थाना पुलिस ने आरोप लगाया कि इन बीस लोगों ने फेसबुक पर जो लिखा उससे खूंटी के आंदोलनकारी उत्प्रेरित हुए और उन्होंने कड़िया मुंडा के बॉडीगार्डों को अगवा कर लिया!

जिन लोगों को देशद्रोह का अभियुक्त बनाया गया, उनके नाम हैं – बोलेसा बबीता कच्छप, सुकुमार सोरेन, बिरसा नाग, थॉमस रुन्डा, वाल्टर कंडुलना, घनश्याम बिरुली, धरम किशोर कुल्लू, सामू टुडू, गुलशन टुडू, मुक्ति तिर्की, राकेश रौशन किड़ो, अजल कंडुलना, अनुपम सुमित केरकेट्टा, अजुग्या बिरुआ, स्टेन स्वामी, जे विकास कोड़ा, विनोद केरकेट्टा, आलोका कुजूर, विनोद कुमार और थियोडर किड़ो.नामों से जाहिर है, इनमें अधिकतर ईसाई आदिवासी हैं. यानी, मुंडा आदिवासियों को ईसाई आदिवासी प्रेरित कर रहे हैं.

उक्त केस में सभी पर एक तरह की धारा लगा कर यह दिखाने की कोशिश की गयी कि जैसे वे सभी किसी एक गिरोह के सदस्य हैं. जबकि फेसबुक पर लिखने वाले इन लोगों में कुछ सरकारी कर्मचारी, कुछ अवकाशप्राप्त या कार्यरत बैंककर्मी, कुछ पत्रकार-लेखक, कुछ समाजकर्मी हैं. उनमें से अधिकतर ऐसे हैं जिन्होंने एक दूसरे को पहले ‘रीयल’ दुनिया में देखा भी नहीं, सिर्फ ‘वर्चुअल’ दुनिया में वे एक दूसरे से परिचित हैं और ‘फेसबुक’ की भाषा में ‘फ्रेंड’ हैं.

एफआईआर से जुड़ा एक दिलचस्प तथ्य यह भी है कि उसमें खूंटी की जिस आदिवासी जनता को ‘अशिक्षित’ करार दिया गया, उसके बारे में कहा गया कि वह फेसबुक पढ़-पढ़ कर भ्रमित-परिचालित हो रही है.एफआईआर के साथ जो-जो फेसबुक ‘पोस्ट्स’ और ‘शेयर’ संलग्न किये गए, उनमें से कुछ ये हैं :  चर्चित समाजकर्मी स्टेन स्वामी ने अखबार की एक खबर को शेयर किया – ‘कैथोलिक चर्च यह मांग करता है कि सरना आदिवासियों को सरना आदिवासी कोड दिया जाये – विशप’.लेखिका और समाजकर्मी आलोका का पोस्ट महज एक पंक्ति का है – ‘खूंटी की जूलियानी तिड़ू खतरे में है. ऐसी सूचना मिली है.’

पत्रकार-उपन्यासकार विनोद कुमार ने अपने फेसबुक वाल में एक पंक्ति चस्पां की थी – ‘वे कहते हैं उन्हें आधार कार्ड नहीं चाहिए, पत्थरगड़ी ही उनकी पहचान है.’दिल्ली में रहने वाले बुद्धिजीवी और समाजकर्मी मुक्ति तिर्की का गुनाह (!) बस इतना है कि उन्होंने विनोद कुमार के पोस्ट को शेयर किया.कई अन्य लोग सिर्फ किसी अखबार की किसी खबर को ‘शेयर’ करने के एवज में देशद्रोह के अभियुक्त बना दिये गये.

ज्ञातव्य है कि सर्वोच्च न्यायालय अपने कई फैसलों में स्पष्ट कर चुका है कि सोशल मीडिया पर लिखे जाने को आधार बना कर किसी को पुलिस गिरफ्तार नहीं कर सकती. उसने संविधान के आर्टिकल 19ए, जो अभिव्यक्ति की आजादी को मौलिक अधिकार मानता है, को बहाल रखते हुए आईटी एक्ट धारा 66ए को रद्द कर दिया है, जिसके तहत तीन वर्ष तक की सजा का प्रावधान किया गया था. लेकिन खूंटी पुलिस ने उसी धारा के आधार पर एफआईआर दायर कर 20 लोगों को देशद्रोह का अभियुक्त बना दिया.

कल (शुक्रवार, 10 अगस्त) रांची के ‘शहीद स्मारक’ पर विभिन्न सांस्कृतिक-सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधि जमा हुए और उक्त ‘केस’ को सरकार की सुनियोजित ‘साजिश’ करार देते हुए उसके खिलाफ ‘प्रतिवाद’ का संकल्प व्यक्त किया. इस जमघट का नेतृत्व देश के जाने-माने अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज ने किया. जमघट में जन संस्कृति मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष रविभूषण, फिल्मकार मेघनाथ, वरिष्ठ पत्रकार किसलय, जनवादी लेखक संघ के एम.जेड खान, जसम के जेवियर कुजूर और रांची के विभिन्न कॉलेजों के छात्र-युवा शामिल हुए. कल ही इस सिलसिले में बिहार और झारखंड के विभिन्न जिलों से आये ‘जेपी के लोगों’ (जो 1994 के बिहार आंदोलन में शामिल थे) ने नामकूम (रांची) में बैठक की और इस सरकारी ‘साजिश’ का विरोध कानूनी तरीकों से और जन अभियान के द्वारा करने का फैसला किया.

यूं जन अभियान के द्वारा विरोध का इजहार करने का सिलसिला एक अगस्त से जारी है. 3 अगस्त को इसी सिलसिले में विपक्षी दलों की प्रेस कंफ्रेंस हुई थी, जिसमें पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल ने कहा कि यदि ये लोग देशद्रोही हैं तो हम सब प्रतिपक्ष के नेता भी देशद्रोही हैं. विपक्ष की मांग है कि सरकार इस एफआईआर को फ़ौरन वापस ले. इस बीच गृह सचिव को ज्ञापन भी दिया गया और दिल्ली में भी विरोध-प्रदर्शन हुआ.

अब यह सवाल बेमानी है कि झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास को खूंटी थाना के प्रभारी की इस ‘कमाल की कारवाई’ की जानकारी पहले से थी या नहीं? या कि वह देशद्रोह के केस के महीनों पहले से अखबारों में प्रकाशित पत्थरगड़ी आंदोलन से जुड़े सरकारी बयानों, पुलिसिया कार्रवाइयों तथा उन पर फेसबुकिया प्रतिक्रियाओं से अवगत नहीं थे. क्योंकि मुख्यमंत्री रघुवर दास खुद ‘फेसबुक’ ‘यूसर’ हैं और अपने राज-काज के प्रचार-प्रसार के लिए उसका इस्तेमाल करते हैं.

दरअसल, झारखंड के राजनीतिक गलियारों से लेकर सार्वजानिक मंचों तक से जिस आशय की गूंज लगातार उठती आ रही है, वही सोशल मीडिया में ‘वायरल’ हुई. वह यह कि झारखंड सरकार परंपरागत स्वशासन की आदिवासी प्रक्रिया और उसके तहत जारी ‘जल, जंगल, जमीन बचाओ अभियान’’ को किसी भी कीमत पर दबा देना चाहती है. इसके लिए उसने ‘पत्थरगड़ी’ आंदोलन को निशाना बनाया. उस आन्दोलन को चलाने वालों को पहले बलात्कारी साबित करने की कोशिश हुई. फिर उनके समर्थक ईसाई मिशन की संस्थाओं को बच्चा बेचने का अभियुक्त बना कर देश भर में प्रचारित किया गया.

20 फेसबुक यूजर्स पर खूंटी थाना की ओर से लगाये गए ‘देशद्रोह’ के खिलाफ रांची से लेकर दिल्ली तक के सामाजिक-सांस्कृतिक संगठनों में व्याप्त हलचल, बौद्धिक जमातों की सरगर्मी, और संविधान के नीति-निर्देश और क़ानून के जानकारों के विमर्श का सारांश, ‘समर शेष है’ उपन्यास के लेखक-पत्रकार और अब ‘देशद्रोही’ विनोद कुमार के शब्दों में यह है : “एनडीए सरकार अपनी फासीवादी तरीकों से अब सोशल मीडिया पर ‘सच’ लिखने वालों और उनके झूठ का पर्दाफाश करने वालों की मॉब लिचिंग करवाने के अभियान में लग गई प्रतीत होती है. जिस सोशल मीडिया, यानी, फेसबुक, ट्विटर, वाट्सएप पर ‘संघ परिवार’ से जुड़े टिड्ढी दल झूठी खबरें फैला कर दिन-रात नफरत और सांप्रदायिकता का जहर फैलाते रहते हैं, उसी सोशल मीडिया पर आदिवासी-दलित हितों पर लिखने-बोलने वालों को देशद्रोही करार दिया जा रहा है. उन्हें लगता है कि ईसाई आदिवासियों को टारगेट कर वे सरना आदिवासियों को अपने पक्ष में गोलबंद करने में कामयाब होंगे.”

(हेमंत, रांची से)

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