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छठ की गंगा-राजनीति – 4 

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छठ की गंगा-राजनीति – 4 

वर्ष 2003 तक जूलियन क्रैण्डल हॉलिक की किताब ‘गंगा’ (अंग्रेजी में) प्रकाशित नहीं हुई थी। हालांकि उन्होंने गंगा पर वृत्त-चित्र बनाने और लिखने के लिए गोमुख-गंगोत्री से सुंदरवन और बांग्लादेश तक की यात्रा 2004 में अप्रैल महीने से शुरू की थी और उस दौरान संभवतः अक्टूबर, 2004 में वह पटना से ‘नौका’ पर कोलकाता के लिए रवाना हुए थे  – अपनी जिज्ञासा, सवाल और अध्ययन के हिसाब से उपयोगी, मजबूत और सुंदर नाव बनवाकर। उस यात्रा के विवरण के साथ उनकी किताब छपी वर्ष 2007 में। जाहिर है, ‘इनकी गंगा, उनकी गंगा, हमारी गंगा’ रपटकथा के बिहारी कथानायक ने जूलियन की ‘गंगा’ को न देखा और न पढ़ा। सो उसे शायद यह मालूम न हो सका कि उसकी गंगा मैया की अवधारणा को चुनौती देने के लहजे में जूलियन ने ‘बिहार की गंगा’के साथ-साथ ‘गंगा के बिहार’ पर कुछ सत्य और कुछ अर्धसत्य लेकिन दिलचस्प सांस्कृतिक-सामाजिक ‘बाइट’ लिख ‘मारे’ हैं। वह भी शायद हवालदार त्रिपाठी सहृदय जैसे हिन्दी विद्वानों के गंगा-साहित्य को पढ़े-सुने बगैर। उसके कुछ वाक्य इस प्रकार हैं – “गंगा सबसे लम्बी नदी नहीं है। विश्व की चौतीस नदियां इससे लम्बी हैं। नील, अमेजन, यांग्ट्ज तथा मिसीसिपी। इनमें से प्रत्येक की लम्बाई गंगा से दूनी से भी ज्यादा है। कोई बड़ी राजधानी गंगा से जुड़ी नहीं थी, न यह कभी किसी प्रसिद्ध राजशाही का केन्द्र रही है। इस पर नियंत्रण के लिए शायद ही कोई लड़ाई लड़ी गयी।

“…पाटलिपुत्र तथा अनेक बंगाली राजशाहियां गंगा के किनारे रही हैं, लेकिन कोई यह नहीं कह सकता कि उनकी सत्ता और सम्पन्नता का प्राथमिक आधार गंगा रही है।
“…किसी ने अगर सचमुच इस लम्बी और चौड़ी गंगा की गहरी पड़ताल न की हो तो क्या वह गंगा को जानने-समझने का दावा कर सकता है? क्या ऐसा करना संभव है?

“….आज बहुत कम भारतीय या गैर-भारतीय गंगा को पूरी तरह जानते हैं। दसियों लाख लोग इसके छोटे-छोटे हिस्सों को अलग-अलग जानते हैं। …वाराणसी से गंगा का रूप परिवर्तित हो जाता है। गंगा ज्यादा चौड़ी (बड़ी) हो जाती है। मॉनसून आने पर भूमि और जान-माल का विध्वंस करने लगती है।

“…बिहार में गंगा की आध्यात्मिक परिपूर्णता नहीं दिखती। बल्कि वहां रोज-ब-रोज उसके विराट फैलाव का सामना करना पड़ता है। निश्चय ही आज भी करोड़ों लोग गंगा को देवी मान कर उसकी आराधना करते हैं, लेकिन सामान्यतया आराधना करते समय उनके अंदर बाढ़़ और तूफान का भय भी समाया रहता है…।”

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