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बक्सर जेल में ही क्यों बनाए जाते हैं फांसी के फंदे, जानिये इतिहास.

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बक्सर जेल में ही क्यों बनाए जाते हैं फांसी के फंदे, जानिये इतिहास.

सिटी पोस्ट लाइव : एकबार फिर से बक्सर जेल चर्चा में है. चर्चा की वजह ये है कि यहाँ इसबार एकसाथ फांसी के 10 फंदे बनाए जा रहे हैं. फांसी के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला फंदा पूरे देश में केवल एक ही जगह यानी बक्सर जेल में ही बनता है.गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे से लेकर मुंबई बम धमाकों के दोषी अजमल कसाब और संसद पर हमले के दोषी अफ़जल गुरु को दी गई सभी फांसियों में इस्तेमाल किए गए फांसी के फंदे बक्सर के सेंट्रल जेल में बनाए गए.

एनसीआरबी के अनुसार अभी तक 21 लोगों को फांसी पर लटकाया जा चुका है. करीब 1500 लोगों को फांसी की सजा सुनायी जा चुकी है.लेकिन सवाल ये कि आख़िर हर बार फांसी के फंदे बक्सर सेंट्रल जेल में ही क्यों बनते हैं? क्या कहीं और ऐसे फंदे नहीं बनाए जा सकते?बक्सर जेल के सुपरिटेंडेंट विजय कुमार के अनुसार इंडियन फैक्ट्री लॉ के हिसाब से बक्सर सेंट्रल जेल को छोड़ बाकी सभी दूसरी जगहों पर फांसी के फंदे बनाने पर प्रतिबंध है. पूरे भारत में इसके लिए केवल एक ही जगह पर मशीन लगाई गई है और वो सेंट्रल जेल बक्सर में. और ये आज से नहीं बल्कि अंग्रेजों के समय से है.

बक्सर में ही अंग्रेजों ने क्यों फांसी का फंदा बनाने की मशीन लगाईं, ये सवाल सबके जेहन में उठता है.कुछ लोगों का मानना है कि क्लाइमेट की वजह से.उनका तर्क है कि फांसी का फंदा बनाने वाली रस्सी बहुत मुलायम होती है. उसमें प्रयोग किए जाने वाले सूत को अधिक नमी की ज़रूरत होती है. “बक्सर सेंट्रल जेल गंगा के किनारे है. हो सकता है कि गंगा के किनारे होने के कारण ही मशीन यहीं लगायी गयी.

बक्सर जेल से मिली जानकारी के अनुसार आखिरी बार फांसी का फंदा 2016 में पटियाला जेल को सप्लाई किया गया था. उसके पहले 2015 में 30 जुलाई को 1993 में हुए मुंबई बम धमाकों के दोषी याकुब मेमन के लिए फांसी का फंदा यहीं से बनकर गया था.फांसी के फंदे बनाने के लिए बक्सर जेल में कर्मचारियों के पद सृजित हैं. वर्तमान में चार कर्मी इन पदों पर काम कर रहे हैं. जेलर सतीश कुमार सिंह बताते हैं कि कर्मी केवल निर्देशित करते हैं या प्रशिक्षित करते हैं. फांसी के फंदे बनाने का काम यहां के कैदी ही करते हैं.

फंसी का फंदा बनाना यहां के कैदियों की परंपरा में शामिल हो गया है. जो पुराने कैदी हैं वो इस विधा को पहले से जानते हैं. और जो नए हैं वो देख-देख कर सीखते हैं. इसी तरह ये परंपरा चली आ रही है.जेल सुपरिटेंडेंट विजय कुमार अरोड़ा के अनुसार फांसी का फंदा बनाने के लिए जिस सूत का इस्तेमाल होता है, उसका नाम J34 है. पहले यह सूत विशेष तौर पर पंजाब से मंगाया जाता था, लेकिन अब सप्लायर्स ही सप्लाई कर देते हैं.यह मुख्य रूप से हाथ का काम है. मशीन से केवल धागों को लपेटने का काम होता है. 154 सूत का एक लट बनाया जाता है. छह लट बनते हैं. इन लटों से 7200 धागे या रेशे निकलते हैं. इन सभी धागों को मिलाकर 16 फीट लंबी रस्सी बनती है.

जेलर सतीश कुमार सिंह के मुताबिक फंदा बनाने का अंतिम चरण सबसे महत्वपूर्ण होता है.जब एक बार हम यहां से रस्सी बनाकर भेज देते हैं, तो जहां जाता वहां उसके फिनिशिंग का काम होता है. फिनिशिंग के काम में रस्सी को मुलायम और नरम बनाना शामिल है. क्योंकि नियमों के मुताबिक फांसी के फंदे से केवल मौत होनी चाहिए. चोट का एक भी निशान नहीं रहना चाहिए.

फांसी के फंदों का इतिहास बड़ा रोचक है. कई रिपोर्ट्स में ऐसा पढ़ने को मिलता है कि पहले के समय में फांसी के फंदे जिस रस्सी से बनाए जाते हैं वो फिलिपिंस की राजधानी मनीला से आती थी. इसलिए इसका एक नाम मनीला रस्सी भी पड़ा.जेलर सतीश कुमार सिंह कहते हैं, “1880 में बक्सर सेंट्रल जेल की स्थापना हुई थी. शायद उसी समय अंग्रेजों ने यहा फांसी का फंदा बनाने वाली मशीन लगायी थी. लेकिन ये हमारे रिकार्ड में नहीं है कि मशीन वास्तव में कब लगी थी. शायद पुराने अभिलेखों को देखा जाए तो कुछ अंदाजा लगाया जा सकता है.

एक कैदी के लिए फांसी का फंदा बनाना, अपनी सजा को कम कराना भी है.जेल मैनुअल के अनुसार वैसे कैदी जो जेल में रहते हुए श्रम करते हैं, अच्छा आचरण रखते हैं, उनकी सजा कम की जाती है.सुपरिटेंडेट विजय कुमार अरोड़ा कहते हैं, “इसका अलग हिसाब किताब है. अगर कोई बंदी महीने भर अच्छा काम करता है तो उसकी सजा में से दो दिन कम होगा. अगर वह रविवार को ओवरटाइम में भी काम करता है तो सजा में एक दिन और कम होगा.”बाकी छूटें उसके आचरण, जेल रिकॉर्ड और अधिकारियों के विवेक के आधार पर होता है. कुल मिलाकर देखें तो कोई बंदी अगर अच्छा आचरण करे और अच्छे से काम करे तो साल भर में कम से कम 105 दिन की सजा कम करा सकता है.

बक्सर सेंट्रल जेल में फांसी की सजा पाए फिलहाल दो कैदी बंद हैं. क्या फांसी की सजा पाए अपराधी भी फांसी का फंदा बनाते हैं?जेलर सतीश कुमार कहते हैं, “नहीं. फांसी की सजा पाए कैदी विशेष कैदी होते हैं. उनसे कोई काम नहीं कराया जाता. जिन लोगों को फांसी की सजा आजीवन कारावास में बदल चुकी हैं या जो आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे हैं, वे ही फांसी के फंदे बनाने के काम में लगते हैं.आखिर में, क्या आपको पता है कि एक फांसी के फंदे की कीमत कितनी होती है?जेल सुपरिटेंडेंट के अनुसार, “पिछली बार जो फंदे बनाकर पटियाला जेल भेजे गए थे, उसकी कीमत 1725 रुपए लगायी गयी थी. पर इस बार महंगाई बढ़ गई है. धागे और सूत के दाम तो बढ़े ही हैं, साथ में जो पीतल का बुश गर्दन में फंसाने के लिए लगाया जाता है, उसका भी दाम बढ़ गया है. इस बार हमने कीमत 2120 रुपए रखी है.

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