सजा नहीं मिलने की वजह से आम बात हो गई है मॉब लिंचिंग और भीड़ बन गई राज्य
सिटी पोस्ट लाइव : अब देश में कहीं भी अपरिचित लोगों की जान सुरक्षित नहीं है. आये दिन देश में कहीं न कहीं मॉब लिंचिंग की घटनाएं हो रही हैं. बिहार में भी मॉब लिंचिंग की एक बड़ी घटना हुई है. चोरी के आरोप में तीन लोगों को घेर कर लोगों ने मार दिया. घटना सारण ज़िले के बनियापुर गांव की है. उत्तर प्रदेश में 28 साल के सुजीत कुमार को लोगों ने चोर समझ कर मारा पीटा और जला दिया. सुजीत कुमार अपने ससुराल जा रहे थे. कुत्तों ने उनका पीछा किया तो वे एक घर में छिप गए. लोगों ने उन्हें चोर समझ लिया और पेट्रोल डालकर जलाने की कोशिश की. हर रोज कहीं न कहीं से मॉब लिंचिंग की जो घटनाएं सामने आ रही हैं उनके संदर्भ में स्टेट और सोसायटी के बीच के रिश्ते को समझाना बेहद जरुरी है.समाज और राज्य के बीच का रिश्ता समय के साथ बहुत कमजोर हुआ है. बस गुस्सा आना चाहिए, लोग खुद ही राज्य बन जाते हैं, त्वरित इंसाफ पर उतारू हो जाते हैं. किसी पर पेट्रोल डाल कर जला देने का ख्याल कहां से आ रहा है, किसी को मारते मारते मार देने की सनक कैसे पैदा हो रही है, इसे बारीकी से समझने की ज़रूरत है.
बिहार के पिठौरी नंदलाल टोला में तीन युवकों को मवेशी चुराने के आरोप में ग्रामीणों ने पकड़ लिया. कायदे से उन्हें पुलिस के हवाले कर देना चाहिए था लेकिन लोगों ने पीट पीट उन्हें मार डाला. सोचिए मारते वक्त लोगों के सर पर कितना ख़ून सवार हो गया होगा. सनक की हद तक चले गए होंगे. किसी को रुकने का ख्याल नहीं आया कि यहां से मामला बिगड़ जाएगा. ऐसा लगता है कि गांव वाले मार देने के लिए ही मार रहे थे.
अररिया में मई में महेश यादव को मवेशी चोरी के आरोप में भीड़ ने मार डाला था. पिछले साल देश भर में बच्चा चोरी के आरोप में कई लोगों को भीड़ ने शक के आधार पर पकड़ कर मार दिया. झारखंड में तबरेज़ की हत्या इसी तरह की सनक के कारण हो गई. ईन तमाम घटनाओं में सांप्रदायिक एंगल नहीं है फिर भी भीड़ है. भीड़ तो अस्पताल में भी घुस कर डाक्टरों को मारने लग जाती है. जब चाहे किसी को पकड़ कर मार दे ,कोई डर भय नहीं है.
मॉब लिंचिंग के संबंध सुप्रीम कोर्ट ने गाइडलाइन्स जारी कर दिया है. भीड़ की हिंसा के मामले में किस तरह से जांच होगी, किसकी जवाबदेही होगी. इसी के साथ यह भी कहा है कि केंद्र और राज्य सरकार इस हिंसा को लेकर जागरूक करे. प्रचार प्रसार के ज़रिए लोगों को बताए कि ऐसा करना ठीक नहीं है. लेकिन अगर सुप्रीम कोर्ट सिर्फ इसी बात की स्टेटस रिपोर्ट राज्यों से मंगा ले कि भीड़ की हिंसा को लेकर जागरूक करने के लिए प्रचार प्रसार के कौन से तरीके अपनाए गए तो पता चल जाएगा कि उसके गाइडलाइन्स को लेकर राज्य सरकारें कितनी गंभीर हैं.
2013 के मुज़फ्फरनगर दंगे के 41 मामलों में से 40 में आरोपी बरी हो गए हैं. दंगों के ये मामले भीड़ कि हिंसा से ही संबंधित थी. 65 साल के इस्लाम को लोगों ने दौड़ा कर मार दिया. इस्लाम के रिश्तेदार और पांचों गवाह मुकर गए. पुलिस सबूत से लेकर गवाह तक पेश नहीं कर पाई.2013 के दंगे में 65 लोग मारे गए थे. इससे संबंधित हत्या के 10 मामले दर्ज हुए थे. अगर इस तरह भीड़ सबूतों के अभाव में छूटती रहेगी तो उसका हौसला बढ़ता रहेगा.
मॉब लिंचिंग एक नया राजनीतिक औजार भी बन चुका है. सबको पता है कि बाद में सब कुछ मैनेज हो जाता है. कारण जो भी हों, भीड़ बच जाती है. एक रिपोर्ट के अनुसार अंत में भीड़ बच जाती है. तो ये सवाल उठाना लाजिमी है कि फिर इनकी हत्या करने वाले कहां गए. सजा जब नहीं होना है तो फिर भीड़ को कानून व्यवस्था का डर क्यों रहेगा. भीड़ किसी भी बात पर लाठी तलवार निकाल कर हमला बोल सकती है.इस तरह की हिंसा की घटनाओं से केवल लोगों की जानें ही नहीं जाती है बल्कि बल्कि स्टेट, संविधान और सिस्टम की समझ को सीधी चुनौती मिल रही है.
भोपाल में बीजेपी के पूर्व विधायक सुरेंद्र नाथ सिंह मम्मा को गिरफ्तार किया गया क्योंकि उन्होंने प्रदर्शन के दौरान कह दिया कि मुख्यमंत्री कमलनाथ का भी खून बहेगा. बाद में उन्हें ज़मानत पर रिहा कर दिया गया. सुरेंद्र नाथ सिंह मम्मा की भाषा में जो हिंसा है वो वहां मौजूद सैकड़ों लोगों को नागवार नहीं गुजरता क्योंकि खून की बात करना, खून बहा देना जैसी भाषा का इस्तेमाल कोई गंभीर अपराध नहीं है. सुरेंद्र नाथ सिंह मम्मा यह भी भूल गए कि आकाश विजयवर्गीय के मामले में प्रधानमंत्री ने कहा था कि यह सब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. हालांकि अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई, कार्रवाई तो प्रज्ञा ठाकुर के खिलाफ भी नहीं हुई लेकिन आए दिन इक्का दुक्का की तरह ये जो घटनाएं हो रही हैं, बयान आ रहे हैं लगता है कि यही हमारे समय की भाषा और समझ बन कर रह गई है.
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