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बाढ़ के साथ बिहार में बढ़ गया है बाल तस्करी का खतरा, पुलिस ने की कारवाई.

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सिटी पोस्ट लाइव :बच्चों के लिए काम करने वाली स्वयंसेवी संस्था बचपन बचाओ आंदोलन की सूचना पर मंगलवार की रात पटना जिले के मोकामा में रेलवे पुलिस जीआरपी व रेलवे सुरक्षा बल आरपीएफ की संयुक्त कार्रवाई में महानंदा एक्सप्रेस से दिल्ली ले जाए जा रहे सात बच्चों को दलालों के चंगुल से मुक्त करा लिया गया.पुलिस ने एक मानव तस्कर को भी गिरफ्तार किया. इन बच्चों को तीन हजार रूपये मासिक की पगार का प्रलोभन दिया गया था जबकि पेशगी के तौर पर उनके मां-बाप को एक हजार रुपये दिए गए थे.ऐसा ही एक मामला बुधवार की शाम को सामने आया जब गया जिले की शेरघाटी से गुजरात से ले जाए जा रहे मजदूरों व बाल मजदूरों से भरी बस को डेहरी में पकड़ा गया. पुलिस ने तीन दलालों को भी पकड़ा है. बस में भेड़-बकरी की तरह ठूंसकर इन मजदूरों को सूरत की कपड़ा मिल में काम करने के लिए ले जाया जा रहा था.

बिहार के कई जिलों में विनाशकारी बाढ़ के साथ ही बाल तस्करी का घिनौना खेल शुरू हो जाता है. प्रलयंकारी बाढ़ में सब कुछ गंवा चुके परिवारों पर मानव तस्करों की गिद्ध दृष्टि लगी होती है.सहानुभूति व आर्थिक मदद की आड़ में मानव तस्कर बच्चों के माता-पिता को यह समझाने में कामयाब हो जाते हैं कि उनका बेटा या बेटी पूरे परिवार को भुखमरी से बचाने में कामयाब हो सकता है, बशर्ते बच्चों को उन्हें सौंप दिया जाए. जीवन की चाह में परिवार अपने कलेजे के टुकड़े को उन दलालों के हाथों सौंप देता है. घर से निकलने के बाद फिर उन बच्चे-बच्चियों के साथ जो गुजरता है उसकी कल्पना भर से रूह कांप जाती हैं.

सीमांचल व कोसी बेल्ट यथा किशनगंज, पूर्णिया, अररिया, सहरसा, मधेपुरा, कटिहार व खगड़िया से सस्ते श्रम, मानव अंग, देह व्यापार एवं झूठी शादी के नाम पर बालक-बालिकाओं की तस्करी की जाती है. जाहिर है बाढ़ जैसी भयंकर आपदा के बाद पहले से ही गरीबी की मार झेल रहे परिवारों को गंभीर आर्थिक संकट का सामना करना पड़ता है. गरीबी के कारण उनमें आर्थिक असुरक्षा का भाव आता है. स्लीपर सेल की तरह काम करने वाले दलालों की नजर ऐसे परिवारों पर रहती है. कई बच्चे ऐसे होते हैं जो बाढ़ के दौरान जान बचाने की जद्दोजहद के बीच अपने मां-बाप से बिछुड़ जाते हैं. राहत शिविरों में रह रहे इन बच्चों पर भी मानव तस्करों की पैनी निगाह रहती है.

स्थानीय अपराधियों से मिले ये दलाल दूर-दराज के गांवों में पहुंच जाते हैं. अपने नेटवर्क से मिले इनपुट के आधार पर ये बच्चे-बच्चियों के माता-पिता को बेहतर जिंदगी का सपना दिखाते हैं और एडवांस के तौर पर उनको अच्छी-खासी रकम दे देते हैं. इन तस्करों की सक्रियता पर पुलिस-प्रशासन भी ध्यान नहीं दे पाता है क्योंकि आपदा के समय में उनकी पहली प्राथमिकता लोगों की जान बचाने की होती है. बच्चे या बच्चियां जैसे ही मां-बाप द्वारा उनके हवाले कर दिए जाते हैं, वे उन्हें महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान,पंजाब, कोलकाता ले जाते हैं जहां उनकी मासूमियत को दरकिनार कर उन्हें घरेलू कामगार, ढाबों, ईंट उद्योग, कशीदाकारी, लोहा, चूड़ी या कालीन फैक्ट्री में झोंक दिया जाता है. कुछ दिनों तक तो मां-बाप से संपर्क बना रहता है लेकिन बाद में वह भी टूट जाता है.

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