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कोरोना संकट में श्रमिकों, दिहाड़ी मज़दूरों और बेरोज़गारों के निम्न मुद्दों पर सरकार दिशाहीन

बिहार सरकार से उनकी राय और सवाल पूछा मधुबनी राजद विधायक समीर महासेठ ने

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सिटी पोस्ट लाइव : आज अपने आवास पर शारीरिक दूरी(सोशल डिस्टेंसिनग) का पालन करते हुए मधुबनी के राजद विधायक समीर महासेठ ने प्रेसवार्ता आयोजित कर बिहार की सरकार से पूछे कई सवाल, कई मुद्दों पर नीतीश कुमार को घेरा। उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि कोरोना के मामले में या फिर प्रवासियों के घर वापसी का मामला हो सरकार हर मोर्चे पर फैल साबित हुई है।

उन्होंने प्रेसवार्ता में निम्न सवाल बिहार सरकार से किये:-
1). सरकारी आँकड़ो के अनुसार अभी तक 30 लाख से अधिक श्रमिक बाहरी राज्यों से वापस बिहार आयें हैं। विगत कुछ दिनों से सरकार उनको राज्य के भीतर ही रोज़गार मुहैया कराने का आश्वासन दे रही है। मैं सरकार से जानना चाहूँगा की उनके पास इसके लिए आश्वासन के अलावा क्या रोड्मैप है? किन-किन क्षेत्रों में नौकरी देंगे और हर क्षेत्र के लिए बनाई गई कार्य योजना का विस्तृत ब्यौरा सार्वजनिक करे। ताकि सभी बेरोज़गारों के इसके बारे में अपडेटेड जानकारी मिले।

2). सरकार बताए कि बाहर से आए हमारे सभी मज़दूर भाईयों ने क्वारंटाइन के लिए तय समय सीमा को पूरा कर लिया? क्या सरकार ने उनके आगमन पर सभी प्रकार की जाँच व कोरोना टेस्टिंग किया? श्रमिकों के संक्रमण रोकने के लिए क्या बचाव, उपचार और उपाय किए गए?

3). बिहार के विधि व्यवस्था एडीजी के एक पत्र के अनुसार हमारे श्रमिक भाईयों के आगमन पर बिहार में कानून व्यवस्था की स्थिति बिगड़ेगी। हम यह जानना चाहते हैं कि क्या सरकार श्रमवीरों भाईयों को चोर, लुटेरा और अपराधी समझ रही है? क्यों सरकार इन्हें आरम्भ से ही अपराधियों के समान समझ पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर पशुवत व्यवहार करती रही?

4). सरकार का यह पत्र श्रम की गरिमा और मानव की गरिमा की धज्जियाँ उड़ा रहा है। अपने ही प्रदेशवासियों को दोयम दर्जे का नागरिक ही नहीं अपितु उन्हें लुटेरा और अपराधी समझा जा रहा है। प्रवासी शब्द पर प्रवचन देने वाले मुख्यमंत्री जी, आपकी सरकार श्रमिकों को प्रवासी ही नहीं बल्कि अपराधी भी बोल रही है।

5). एडीजी के पत्र के अनुसार रोजगार नहीं मिलने पर हमारे श्रमिक भाई उग्र होने वाले हैं, तो क्या सरकार यह मान चुकी है कि उनके लिए हमारे श्रमवीरों को रोजगार देना असम्भव है? फिर सरकार रोज नए दावे कर श्रमवीर भाईयों को भ्रमित क्यों कर रही है? क्या ये हवाई घोषणाएं बस चुनाव तक के लिए बिहारवासियों को मूर्ख बनाने की कवायद तो नहीं?

6). सरकार ये बताए कि इनके पंद्रह साल के शासन में कितने कल-कारख़ाने, फ़ैक्टरी और उद्योग बंद हुए और कितने नए उद्योग लगाये गए है? 15 साल में कुल कितने युवाओं को नौकरी दी गयी? कुल कितने बेरोज़गार प्रदेश में है?

7). औसत एक परिवार का आकार में पांच सदस्य भी माने तो सिर्फ़ श्रमवीरों के वापस आने से 1.5 करोड़ लोग प्रभावित हैं। उसके अलावा राज्य के अंदर पहले से लगभग सात करोड़ युवा बेरोज़गार हैं। लॉक्डाउन में तक़रीबन पचास लाख रेहड़ी-पटरी, ठेला-रिक्शा वाले और दिहाड़ी मज़दूर भी लगभग ढाई-तीन महीने से रोज़गार से वंचित रहें। सरकार इन लगभग 8-9 करोड़ बेरोज़गारों को कैसे तत्काल रोज़गार के अवसर उपलब्ध कराएगी? प्रदेशवासियों को इस पर विस्तृत रूप से समझाया जाए।

इसके अलावा उन्होंने सरकार से कुछ मांगें भी की हैं। जो निम्न हैं:-

1). सरकार से हम माँग करते हैं की सभी दिहाड़ी मज़दूरों और श्रमिकों को जो लगभग इस लॉकडाउन के पूर्ण होने तक 100 दिन यानि तीन महीने से बिना काम के घर बैठे हैं, और उन्हें आगामी तीन महीने यानि लगभग 100 दिन और कोई काम नहीं मिलेगा।

2). हमारी माँग है कि बिहार सरकार इन सभी श्रमिकों को शुरू में न्यूनतम 200 दिन का एकमुश्त ₹10000 नक़द राशि भत्ता दे।

3). हर श्रमिक भाई पर औसतन पांच लोग आश्रित हैं। ₹200 दिन प्रति श्रमिक ₹10000 का भत्ता देने पर हर श्रमिक को मात्र ₹50 प्रतिदिन मिलेगा और यदि औसतन पांच व्यक्ति प्रति श्रमिक के हिसाब से जोड़े तो हर व्यक्ति को प्रतिदिन ₹10 ही देना है।

4). सरकार से हम माँग करते हैं कि इन सभी श्रमिकों को ₹10000 की एकमुश्त मदद की राशि यथाशीघ्र उपलब्ध करवाए, क्योंकि सरकार प्रदत्त लम्बी बेरोजगारी और उत्पीड़न झेल रहे सभी श्रमिकों पर कई लोग आश्रित हैं।

5). जब महागठबंधन सरकार थी, तब बिहार विकास मिशन के अंतर्गत शुरुआती तौर पर प्रदेश के 65 लाख बेरोज़गारों को बेरोज़गारी भत्ता देने की योजना थी। लेकिन बीजेपी के साथ जाते ही मुख्यमंत्री वह भुल गए। हमारी माँग है कि इस गंभीर संकट में सभी बेरोज़गारों को बेरोज़गारी भत्ता दिया जाए।

6). हम ये भी माँग करते हैं की राज्य सरकार विशेष सत्र बुलाकर कोरोना संकट के उपरांत उत्पन्न चुनौतियों को देखते हुए फिस्कल खर्च में संसोधन करे। ग़ैर-ज़रूरी योजनाओं के फंड्स को रोज़गार सृजन, स्वास्थ्य व्यवस्था में खर्च करने हेतु निर्धारित करे।

7). बाहर से आए हमारे श्रमिक भाई कुशल कारीगर हैं। ऐसा मौक़ा शायद फिर नहीं मिलेगा जब स्किल्ड लेबर इतनी संख्या में आपके पास उपलब्ध हो। इन्होंने दूसरे राज्यों में विभिन्न क्षेत्रों में काम किया है। सरकार को इन्हें इनके कौशल और अनुभव का फ़ायदा राज्य के विकास के लिए बिना वक़्त गवाएँ लेना चाहिए। जिलावार रोज़गार कैम्प लगाकर इनको नौकरी देने का काम शुरू करना चाहिए।

अंत मे उन्होंने कहा कि विगत 15 वर्षों से सरकार सोती रही और आज ज़मीन खिसकते देख लोगों को रोज़गार देने का ढोंग और स्वांग कर रही है। चुनावी घोषणा और लफ़्फ़ाज़ी से इतर सरकार को इस पर गम्भीरता से विचार कर अपना मंतव्य रखने की हम उम्मीद करते हैं।

मधुबनी से सुमित कुमार की रिपोर्ट

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