बिहार का स्वर्ग कहे जाने वाले शीतल जल प्रपात में सैलानियों की उमड़ती भीड़
सिटी पोस्ट लाइव : बिहार के नवादा ज़िले से 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक ऐसा जलप्रपात जो सुंदरता और प्राकृतिक सौंदर्य के लिहाज से बिहार का स्वर्ग माना जाता है. यह एक ऐसा मनोरम पर्यटक स्थल है, जहां लोग गर्मियों की छुट्टियां बिताने पहुंचते हैं. सदियों से प्रकृति प्रेमियों और पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहा यह जलप्रपात आज भी सैलानियों के लिए बेहद खास है. जिसका नजारा आजकल आपको ककोलत में दिखाई देगा. जहां लोगों की भीड़ इन दिनों गर्मी में शीतल जल का मज़ा लेने उमड़ पड़ी है. ककोलत जलप्रपात में जब से सतुआनी मेले की शुरुआत हुई है तब दे दिन प्रतिदिन सैलानियों की संख्या में इजाफा होने लगा है. यहां दूर-दूर से लोग पिकनिक मनाने और शीतल जल का लुप्त उठाने पहुंच रहे हैं, जिसके कारण आए दिन दो किलोमीटर से भी ज्यादा गाड़ियों की कतारें जाम के कारण लग जाती है. प्रसाशन द्वारा किये गए इंतजामों के बाद भी लोगों को जलप्रपात तक पहुँचने में काफी समय लग जाता है. बता दें ककोलत जलप्रपात अपने आप में कश्मीर से कम नहीं. जहां न सिर्फ घुमने फिरने और शीतल जल का आनंद मिलता है बल्कि यहां की पौराणिक महत्व भी है. प्रत्येक वर्ष यहां पांच दिवसीय ‘सतुआनी मेला’ लगता है, जिसमें बड़ी संख्या में लोग जुटते हैं. धर्मिक मान्यता है कि दुर्गा सप्तशती के रचयिता ऋषि मार्कंडेय का ककोलत में निवास था. जनश्रुतियों के अनुसार, वैशाखी के अवसर पर इस जलप्रपात में स्नान करने से सांप योनि में जन्म लेने से प्राणी को मुक्ति मिल जाती है. कहा जाता है कि त्रेता युग में एक राजा किसी ऋषि के श्राप से अजगर बनकर इस जलप्रपात के समीप रह रहा था, ऋषि मार्कंडेय ने उसे जलप्रपात में स्नान करने को कहा और उसे सांप योनि से मुक्ति मिल गई थी. मान्यता है कि अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने भी यहां कुछ दिनों तक निवास किया था.स्थानीय लोग बताते हैं कि अंग्रेजों के शासन काल में इस जलप्रपात में स्नान करने वालों में यहां के तालाब में एक पत्थर फेंकने का नियम था. बताया जाता है कि जलप्रपात के नीचे एक तालाब हुआ करता था, जो काफी गहरा था. गहराई की जानकारी नहीं रहने के कारण लोग स्नान करते समय दुर्घटना के शिकार हो जाते थे. सरकार ने हालांकि वर्ष 1994 में इस तालाब को मिट्टी से भरवा दिया, जिसके बाद यहां जलप्रपात में स्नान करने वालों की सहूलियत बढ़ गई. यहां आने वाले पर्यटकों और स्थानीय लोगों का कहना है कि यदि राज्य सरकार इस ‘बिहार के कश्मीर’ को विकसित कर दे तो यहां न केवल विदेशी सैलानियों की आमद बढ़ेगी, बल्कि स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिलने लगेगा. बिहार का स्वर्ग कहे जाने वाले शीतल जलप्रपात में सैलानियों की उमड़ती भीड़ देखकर अनुमान लगाया जा सकता है कि सरकार इसपर थोडा ध्यान दे तो कश्मीर के बदले लोग ककोलत आना ज्यादा बेहतर समझेंगे.बताते चलें कि ककोलत पहुंचने के लिए पटना से बसें मिलती हैं या पर्यटकों को खुद वाहन का इंतजाम करना पड़ता है. अन्य प्रदेश से आने वाले पर्यटक पटना रेलवे स्टेशन पर उतरकर बस से 118 किलोमीटर की दूरी तय कर ककोलत पहुंच सकते हैं. कोलकाता से इसकी दूरी 490 किलोमीटर है. यह पर्यटन स्थल पटना-रांची-कोलकाता राजमार्ग से महज 17 किलोमीटर की दूरी पर है.
बिहार में सुरक्षित नहीं रहीं बेटियां
Comments are closed.