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नीतीश राज में शहाबुद्दीन है जेल में जिस अधिकारी पर गोली चलायी वह हैं बिहार के DGP

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सिटी पोस्ट लाइव : बिहार चुनाव में लालू यादव के जंगल राज की कहानी सामने आयी है। सीवान की वो कहानी सामने आयी जब बाहुबली शहाबुद्दीन ने जिले के एसपी पर ही गोली चला दी थी।

बात उस वक्त की है जब राजद के पूर्व सांसद मो. शहाबुद्दीन अपने समर्थकों व विरोधियों के बीच रॉबिनहुड के रूप में जाने जाते थे। तब सीवान में कानून का राज नहीं बल्कि शहाबुद्दीन का शासन चलता था।मो. शहाबुद्दीन को लंबे समय तक राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद का राजनीतिक संरक्षण मिलता रहा और आज भी उनके साथ ही है।

उसी दौर की बात है जब आज बिहार के डीजीपी एसके सिंघल उस वक्त सीवान के एसपी हुआ करते थे।1996 में लोकसभा चुनाव के दिन ही एक बूथ पर गड़बड़ी फैलाने के आरोप में उन्हें गिरफ्तार करने निकले तत्कालीन एसपी एसके सिंघल पर गोलियां चलाई गई। आरोप था कि खुद शहाबुद्दीन ने गोलियां दागी और सिंघल को जान बचाकर भागना पड़ा। इस कांड में शहाबुद्दीन को दस वर्ष की सजा हो चुकी है।

अब आपको बताते हैं कि आखिर बीच चुनाव के वक्त में इसकी चर्चा आखिर क्यों हो रही है। तो ये चर्चा छेड़ दी है बीजेपी के राष्टीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने। नड्डा इन दिनों बिहार में बीजेपी के स्टार प्रचारक के तौर पर कैंपेनिंग कर रहे हैं।नवादा में एक चुनावी सभा में उन्होंने लालू यादव के जंगल राज की चर्चा करते हुए कहा कि मोहम्मद शहाबुद्दीन ने जिस पुलिस अफसर पर गोली चलाई थी वह आज के मौजूदा डीजीपी हैं और आज नीतीश सरकार के आने के बाद शहाबुद्दीन जेल में बंद है।

नड्डा ने लालू के जंगल राज की चर्चा करते हुए ये भी कहा कि जब बिहार में एक दलित डीएम को मार दिया गया और उसके हत्यारे खुलेआम बिहार में घूमते थे। नड्डा ने कहा कि इंजीनियर को यह मालूम नहीं होता था कि अगर ठेकेदार से हाथ नहीं मिलाएंगे तो वो रोलर के नीचे आ जायेगा। यह पूरा बिहार जानता है जब स्वर्णिम चतुर्भुज का काम हो रहा था तब उस समय देश के उच्च दर्जे के तीन इंजीनियरों की हत्या कर दी गई थी। इसलिए वोट देते समय इन सभी चीजों को जनता याद रखें।

जेपी नड्डा ने कहा कि लालू यादव ने पूरे बिहार को चारागाह में बदल डाला और तब तक चैन नहीं लिया जब तक बिहार में चारा घोटाला नहीं कर डाला। चरवाहा विद्यालय देने वाले बताएंगे कि बिहार को बदल देना है। जंगल राज की बात सुनाते हुए नड्डा ने कहा कि पटना के डाक बंगला चौराहा 90 के दशक में शाम को ही पूरा माहौल सुनसान हो जाता था। जब डॉक्टर सुबह घर से नाश्ता कर निकलते थे तो उन्हें यह पता नहीं होता था कि रात में घर का खाना नसीब होगा या नहीं।

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