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लोकसभा चुनाव : बेगूसराय से क्यों नहीं लड़ना चाहते हैं फायर ब्रिगेड नेता गिरिराज सिंह

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लोकसभा चुनाव : बेगूसराय से क्यों नहीं लड़ना चाहते हैं फायर ब्रिगेड नेता गिरिराज सिंह

सिटी पोस्ट लाइव -बिहार में अगर सबसे अधिक सीट बंटवारे  को लेकर कोई नेता चर्चा में है तो वो हैं   गिरिराज सिंह . गिरिराज सिंह बीजेपी के फायर ब्रिगेड नेता माने जाते है. बीजेपी ने उनकी सीट अब अपने सहयोगी दल लोजपा  के झोली में डाल दी है. वहीं अब गिरिराज सिंह को बेगूसराय लोकसभा सीट दिया जा रहा है. लाजमी है ,गिरिराज सिंह नाराज होंगे. क्योंकि अभी वे नवादा लोकसभा सीट से सांसद हैं और वे चाहते हैं कि उन्हें भाजपा वहीं से टिकट दे. उनकी वहाँ एक पहचान जनता में बन चुकी है जबकि बेगूसराय सीट उनके लिए बिलकुल नई है . लेकिन बीजेपी पार्टी की भी मजबूरी है कि वह अपने सहयोगी पार्टियों को नाराज नहीं कर सकती .

लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह  है कि गिरिराज सिंह नवादा से बेगूसराय क्यों नहीं जाना चाहते हैं? क्या वह कन्हैया कुमार का सामना नहीं करना चाहते हैं?  अगर हम इस मामले में पर गौर करें तो देखते हैं कि लखीसराय के मूल निवासी गिरिराज सिंह के सामने बेगूसराय जिले के ही कन्हैया कुमार  सीपीआई के टिकट पर खड़े हो सकते हैं. ऐसे में उन्हें यह डर सता रहा है कि कहीं स्थानीय बनाम बाहरी के मुद्दे ने जोर पकड़ा तो उनके लिए राह आसान नहीं होगी. यही नहीं कन्हैया के नाम पर भाजपा विरोधी मतों की गोलबंदी गिरिराज सिंह के लिए मुश्किलें बढ़ा सकता है. सबसे बड़ी बात तो यह है कि दोनों स्वजातीय है.

वहीं अगर हम बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से गिरिराज सिंह के सम्बन्ध के बारे में बात करें तो दोनों का सम्बन्ध कभी अच्छा नहीं रहा है. मंत्रिमंडल में दो ऐसे मंत्री रहे हैं जो हमेशा नीतीश सरकार के खिलाफ बोलते रहे हैं , उनमें एक नाम गिरिराज सिंह का था और दूसरा अश्विनी चौबे का.  ये दोनों लोग गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का खुलकर समर्थन करते थे. जाहिर है ऐसे हालात में नीतीश कुमार उनका समर्थन करेंगे या नहीं यह देखना दिलचस्प होगा.

आपको यह भी बता दें कि गिरिराज सिंह ने जब बेगुसराय जाने का विरोध किया तो उनकी ही पार्टी के कई नेताओं ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया जिससे भी उनकी परेशानी बढ़ गई है. विधान पार्षद रजनीश कुमार और पूर्व एमएलसी विवेक ठाकुर (डॉ सीपी ठाकुर के पुत्र) ने गिरिराज सिंह के तेवर का खुलकर विरोध किया . मतलब साफ़ है कि उन्हें सबसे पहले अपनी पार्टी के अंदरूनी कलह से निपटना होगा जो इतने अल्प समय में संभव नहीं दिखाई देता.

जे.पी चंद्रा की रिपोर्ट

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